असुरक्षा की भावना, लक्ष्य पूरा करने का दबाव एमआर को बना रहा बीमार
बेतिया शहर में लगभग 800 रजिस्टर्ड मेडिकल रिप्रजेंटेटिव हैं, लेकिन 2000 से अधिक बिना रजिस्टर्ड हैं। इनकी समस्याओं में जॉब सिक्योरिटी की कमी, वेतन कटने का खतरा, और स्वास्थ्य बीमा की गैरमौजूदगी शामिल...
बेतिया शहर में इन दिनों रजिस्टर्ड मेडिकल रिप्रजेंटेटिव की संख्या लगभग 800 है। इनमें दो हजार से अधिक ऐसे मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव अपनी सेवाएं दे रहे हैं, जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं किया गया है। कड़ी मेहनत करने वाले इस पेशे से जुड़े लोगों की समस्याओं की फेहरिश्त काफी लंबी है। जॉब सिक्यूरिटी का संकट, टारगेट पूरा नहीं होने पर वेतन कटने का खतरा, नि:शुल्क मेडिकल बीमा नहीं होने से परेशानी, वेतन में बढ़ोतरी नहीं होने की समस्या, जीपीएस मॉनिटरिंग का टेंशन तथा टारगेट पूरा करने का दबाव आदि कारणों से एमआर को कई तरह की परेशानी झेलनी पड़ती है। जितेंद्र मिश्रा ने बताया कि पहले हम भी मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव हुआ करते थे, लेकिन अभी के हालात ऐसे हैं कि हम सिर्फ सेल्समैन बन कर रह गए हैं।
इससे हमलोगों को परेशानी होती है। हमारी समस्या सुनने वाला कोई नहीं है। हमारी समस्या का समाधान नहीं हो पाता है। बातचीत के क्रम में इन लोगों ने सामूहिक रुप से यह बताया कि सरकार को इस पेशे से जुड़े लोगों के लिए एक मिनिमम बेंचमार्क तय करना चाहिए, ताकि निचले स्तर से शुरुआत कर इस पेशे से जुड़े लोग अपनी काबिलियत से शीर्ष तक पहुंच सकें। इनलोगों ने यह भी बताया कि हमारा भविष्य इस पेशे में सुरक्षित ही नहीं है। हमें कभी भी हटा दिया जाता है। अमित कुमार, प्रदीप कुमार, सुनील कुमार, नीरज श्रीवास्तव, मनीष कुमार, जितेंद्र मिश्रा, अमरेश कुमार व आशुतोष कुमार आदि एमआर ने अपनी-अपनी समस्याएं साझा की। प्रदीप कुमार ने बताया कि मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के राइट की जानकारी सभी को नहीं है। जॉब मैनुअल के बारे में भी सही जानकारी हमें नहीं दी जाती है। हमारा कोई लीगल प्रोटेक्शन है या नहीं, इसकी जानकारी हमें नहीं है। सुनील कुमार ने बताया कि इस पेशे से जुड़ा मिनिमम वेज निर्धारित नहीं किया गया है। इस कारण अधिक काम लेकर हमारा आर्थिक और मानसिक रूप से शोषण किया जाता है। नीरज श्रीवास्तव ने बताया कि आजकल हमारी सेवा से जीपीएस सिस्टम को जोड़ दिया गया है। इससे हमें अधिक भाग दौड़ करनी पड़ती है। टारगेट पूरा करने व क्लाइंट से मिलने का जो टास्क है वह अत्यंत पीड़ादायक है, लेकिन उस अनुरूप में हमे उचित मेहनताना भी नहीं मिलता है। हम अक्सर जिला मुख्यालय से दूरदराज के क्षेत्रों में भी काम करने जाते हैं। लेकिन सरकार व कंपनियों की ओर से हमारे लिए नि:शुल्क बीमा की सुविधा मुहैया नहीं करायी गयी है। सुरक्षा के लिए हमें स्वयं सक्रिय रहना पड़ता है। पुलिस प्रशासन को भी सुरक्षा के मामले में हमारे लिए विशेष सुविधा बहाल करनी चाहिए। कंपनी हमारे ही वेतन की राशि से टर्म इंश्योरेंस अथवा ग्रुप इंश्योरेंस कराती है। इससे हमारा आर्थिक भविष्य पूरी तरह से असुरक्षित है। इधर एमआर मनीष कुमार ने बताया कि टारगेट पूरा नहीं होने पर अक्सर ट्रांसफर होने व हटा दिये जाने का खतरा बना रहता रहता है। परिवार को लेकर एक जगह से दूसरी जगह भटकने की स्थिति बनी रहती है। इससे बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है। कंपनियां हमारी समस्याओं को दूर करने के प्रति संजीदा नहीं है। इससे परेशानी होती है। प्रस्तुति : मनोज कुमार राव डॉक्टर से मिलने का समय तय होने से होगी सुविधा हमें कंपनी और चिकित्सक के बीच में काम करना पड़ता है। अगर सुझायी गयी दवाओं को चिकित्सक मरीजों कीे पर्ची पर लिखना शुरू भी कर देते हैं, तो केमिस्ट उसमें से अपने कमीशन की मांग करते हैं। इसके अलावा दवाओं के डिस्ट्रीब्यूटर के पास भी कई बार कमीशन को लेकर परेशानी होती है। इससे हमलोगों को आर्थिक समस्या झेलनी पड़ती है। प्रवीण राय ने बताया कि सैलरी से जुड़े हमारे बेसिक को जल्दी नहीं बढ़ाया जाता, क्योंकि इससे कंपनियों को हमें पीएफ देने में परेशानी होती है। आशुतोष कुमार ने बताया कि मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव का जीवन जोखिम भरा है। हमारे पास कोई सामाजिक सुरक्षा, मेडिकल सुविधा और आपातकालीन सुविधा नहीं है। कुछ मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव ने बताया कि चिकित्सकों द्वारा इस पेशे से जुड़े लोगों से मिलने का कोई समय निर्धारित नहीं किया गया है। पहले सुबह नौ से लेकर शाम के छह बजे के बीच कभी भी चिकित्सक और एमआर की मीटिंग हो जाती थी, लेकिन अभी के हालात बदल गए हैं। अब चिकित्सक अपनी सुविधा के अनुसार कभी भी मिलने के लिए बुलाते हैं। इससे काफी परेशानी होती है। सरकारी अस्पतालों में एमआर की पहुंच नहीं है। वहां पर जनऔषधि दवाओं की ही बिक्री होती है लेकिन कई बार चिकित्सक गुप्त रूप से एमआर से कनेक्ट होकर दवा लिखते हैं और बदले में सुविधाएं भी लेते हैं। इससे हमें परेशानी होती है। श्रम अधिनियम में हर किसी के लिए काम करने व काम लेने का समय निर्धारित हैं । इसमें किसी तरह का दबाव नहीं दिया जा सकता है। मेडिकल कंपनियां भी अपने मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव को उसी अधिनियम के तहत व शर्त पर बहाली करती हैं। शर्त के अनुरूप काम भी लेता है। श्रम अधिक लेने पर उसके मुताबिक मेहनताना के साथ- साथ इंसेंटिव देने का प्रावधान है। किशुन देव साह,श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी बेतिया से दूर दराज देहाती इलाके में अपनी पेशेगत सेवाएं देने के लिए जाने वाले मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव किसी भी विपरित स्थिति में वहां के स्थानीय पुलिस से मोबाइल पर अपनी सुरक्षा के लिए संपर्क कर सकते हैं। अविलंब एक्शन लिया जाएगा। अपनी आवाजाही के बारे में पहले से भी गंतव्य स्थान की सूचना पुलिस को दे सकते हैं। सभी की सुरक्षा करना हमारी प्राथमिकता है। विवेक दीप, एसडीपीओ सुझाव 1.रजिस्टर्ड और गैर रजिस्टर्ड एमआर की पहचान कर उसी अनुरूप सेवाएं ली जाय। रजिस्टर्ड को अधिक अवसर मिले। 2.सैलरी में बेसिक बढ़ाया जाना चाहिए, ताकि हम भी बेहतर स्लैब में आएं और पीएफ की सुविधा पा सकें। 3. इस पेशे से जुड़े लोगों को सामाजिक सुरक्षा, मेडिकल सुविधा और आपातकालीन सुविधा मिलनी चाहिए। 4. हमलोगों के लिए नि:शुल्क बीमा की सुविधा सरकार की ओर से मुहैया करायी जानी चाहिए। 5. मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के लिए काम के घंटे तय होने चाहिए ताकि तनाव की स्थिति उत्पन्न नहीं हो। शिकायतें 1. रजिस्टर्ड एमआर की संख्या 800 हैं लेकिन लगभग दो हजार बिना रजिस्टर्ड एमआर क्षेत्र में हैं। इससे परेशानी होती है। 2. इस पेशे में सिक्यूरिटी नहीं है। हमें कभी भी हटाया जा सकता है। टारगेट पूरा नहीं होने पर ट्रांसफर का भी खतरा रहता है। 3. हमारे ही वेतन से टर्म इंश्योरेंस या ग्रुप इंश्योरेंस कराया जाता है। इससे हमारा आर्थिक भविष्य पूरी तरह से असुरक्षित है। 4.डॉक्टर के लिखने पर भी केमिस्ट कमीशन की मांग करते हैं। दवाओं के डिस्ट्रीब्यूटर भी सुविधा मांगते हैं। इससे परेशानी है। 5.सैलरी में बेसिक को नहीं बढ़ाया जाता। इससे हमारा पीएफ कम बनता है। इससे समस्या होती है।
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