बोले कटिहार : 15 साल से कर रहे इंतजार, न संविदाकर्मी का दर्जा मिला न सम्मानजनक मानदेय
कटिहार जिले में किसान सलाहकार 2010 से काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें 15 वर्षों में न तो संविदाकर्मी का दर्जा मिला है और न ही स्थायीकरण हुआ है। वे चुनाव, जनगणना जैसे गैर-कृषि कार्यों में भी लगे हैं।...
कटिहार जिले में वर्ष 2010 से कार्यरत किसान सलाहकारों की हालत बदतर है। प्रगतिशील किसानों को कृषि मार्गदर्शन के लिए बहाल किये गये थे, लेकिन समय के साथ सरकारी कर्मचारियों की तरह कार्यभार दे दिया गया। न मानदेय में उचित वृद्धि हुई, न संविदाकर्मी का दर्जा मिला। 15 वर्षों में महज 1,000 रुपये की बढ़ोतरी और ईपीएफ कटौती हुई। बावजूद उन्हें स्थायीकरण से वंचित रखा गया। पंचायतों से दूर तैनाती, लंबी दूरी की आवाजाही और न्यूनतम वेतन के बीच किसान सलाहकार सम्मानजनक जीवन की आस में हैं। सरकार से स्थायी नियुक्ति और सम्मानजनक मानदेय की मांग कर रहे हैं। 15 वर्षों से किसानों को विभागीय योजनाओं की जानकारी और लाभ दिला रहे
01 सौ 87 किसान सलाहकार जिले के विभिन्न पंचायतों में हैं कार्यरत
16 प्रखंडों में कृषि विभाग के कार्यों को पहना रहे हैं अमली जामा
कटिहार जिले की पंचायतों में वर्ष 2010 में बहाल किए गए किसान सलाहकार बीते 15 वर्षों से स्थायीकरण और उचित मानदेय की आस में हैं। कृषि विभाग ने प्रगतिशील किसानों को तकनीकी मार्गदर्शन के लिए इस पद पर तैनात किया था। आज किसान सलाहकार सरकारी तंत्र की अनदेखी और उपेक्षा के शिकार हो गए हैं। शुरुआत में इनकी जिम्मेदारी किसानों को खेती के नए तरीके सिखाने तक सीमित थी, लेकिन समय के साथ इनसे हर प्रकार के सरकारी कार्य करवाए जाने लगे। चाहे वह चुनाव ड्यूटी हो या जनगणना, पशुगणना, पौधों की गिनती या अन्य विभागीय काम। इसके बावजूद न तो इन्हें संविदाकर्मी का दर्जा मिला और न ही स्थायी नियुक्ति का रास्ता साफ हुआ।
15 वर्षों में सिर्फ एक बार बढ़ा है मानदेय :
जिला किसान सलाहकार संघ के सदस्यों का कहना है कि बहाली के वक्त शर्तों में साफ कहा गया था कि इन्हें कृषि से जुड़े कार्यों तक ही सीमित रखा जाएगा। लेकिन विभाग ने काम का दायरा बढ़ाकर इन्हें एक पूर्णकालिक कर्मचारी की तरह उपयोग करना शुरू कर दिया। हालत यह है कि कई किसान सलाहकार प्रतिदिन औसतन 150 किमी दूरी तय करते हैं, जिससे मानदेय का बड़ा हिस्सा आवाजाही में ही खत्म हो जाता है। वित्तीय हालात की बात करें तो 15 वर्षों में सिर्फ एक बार, 2021 में, इनके मानदेय में महज 1,000 रुपये की बढ़ोतरी हुई। ऊपर से 2023 से ईपीएफ की कटौती शुरू हो गई, जिससे इनका टेक-होम वेतन घटकर मात्र 11,400 रुपये रह गया है। इतनी कम राशि में आज के दौर में परिवार चलाना किसान सलाहकारों के लिए चुनौती बन चुका है।
स्थायीकरण की मांग को लेकर कई बार हुआ आन्दोलन :
स्थायीकरण की मांग को लेकर कई बार आंदोलन हुए और विभागीय कमेटी ने इनके पक्ष में सिफारिश भी की, लेकिन उच्च अधिकारियों ने इन्हें प्रगतिशील किसान बताते हुए प्रस्ताव ठुकरा दिया। किसान सलाहकारों का सवाल है कि जब ईपीएफ कटौती हो रही है तो संविदा कर्मचारी का दर्जा क्यों नहीं दिया जा रहा है। सरकारी तंत्र की बेरुखी के बीच किसान सलाहकार आज भी न्याय और सम्मानजनक जिंदगी की उम्मीद में संघर्ष कर रहे हैं।
शिकायत
1. बहाली के 15 साल बाद भी किसान सलाहकारों को संविदाकर्मी का दर्जा नहीं दिया गया।
2. काम का दायरा बढ़ाकर चुनाव, जनगणना, पशुगणना जैसे गैर-कृषि कार्य भी सौंपे जा रहे हैं।
3. तय मानदेय में 15 साल में महज 1,000 रुपये की बढ़ोतरी की गई।
4. ईपीएफ की कटौती के बावजूद टेक-होम वेतन घटकर 11,400 रुपये, जिससे परिवार चलाना मुश्किल।
5. गृह पंचायत में पदस्थापित करने के बजाय दूर-दराज की पंचायतों में भेजा जाता है, जिससे सफर में ही मानदेय खर्च हो जाता है।
सुझाव:
1. किसान सलाहकारों को संविदाकर्मी का दर्जा दिया जाए और स्थायी नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की जाए।
2. मानदेय में समय-समय पर उचित वृद्धि सुनिश्चित की जाए ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें।
3. सेवा शर्तों के अनुसार सिर्फ कृषि से जुड़े कार्यों में ही इनकी ड्यूटी लगाई जाए।
4. गृह पंचायत या निकटवर्ती पंचायतों में ही पदस्थापना की व्यवस्था की जाए।
5. विभागीय कमेटी की सिफारिश के अनुरूप जनसेवक पद पर वेटेज देकर समायोजन किया जाए।
इनकी भी सुनें
सरकार ने हमसे हर तरह का काम लिया, लेकिन न संविदाकर्मी का दर्जा दिया और न स्थायी नियुक्ति। ईपीएफ कटौती के बाद भी वेतन बहुत कम है। अब परिवार चलाना भी मुश्किल हो रहा है। सरकार को हमारी मांगों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
-अंबुल कुमार मंडल
हम किसान सलाहकारों से सरकारी कर्मचारी जैसे काम लिए जा रहे हैं, लेकिन पहचान अब भी प्रगतिशील किसान की दी जाती है। रोजाना सफर और खर्च में आधा मानदेय खत्म हो जाता है। सरकार को हमारी स्थिति समझनी चाहिए और जल्द समाधान देना चाहिए।
-विवेक कुमार
15 साल से हम सिर्फ वादे सुन रहे हैं। काम का बोझ लगातार बढ़ रहा है, लेकिन न वेतन बढ़ा और न पद का सम्मान मिला। सरकार को चाहिए कि किसान सलाहकारों को संविदाकर्मी मानकर स्थायी करने की प्रक्रिया जल्द शुरू करे।
- इकबाल हुसैन
हमारा मानदेय इतना कम है कि पेट पालना भी मुश्किल हो गया है। विभाग की अनदेखी से हम बेहद निराश हैं। सरकार ने अब तक कोई स्थायी हल नहीं निकाला। हम चाहते हैं कि हमें संविदा कर्मचारी का दर्जा तुरंत दिया जाए।
-भास्कर विश्वास
किसान सलाहकारों से हर तरह का कार्य लिया जा रहा है, लेकिन जब अधिकार और सुविधा की बात आती है तो हमें प्रगतिशील किसान बताकर टाल दिया जाता है। यह सरासर अन्याय है। सरकार को हमारी हालत पर ध्यान देना होगा।
- सुमन प्रताप सिंह
15 वर्षों से मेहनत करने के बाद भी हम अस्थायी ही हैं। न तो मानदेय पर्याप्त है, न पद की सुरक्षा। सरकार हमारे साथ हो रहे इस भेदभाव को खत्म करे और स्थायीकरण की प्रक्रिया शुरू करे। अब और इंतजार संभव नहीं है।
-सीमा कुमारी
हम किसान सलाहकार दिन-रात काम कर रहे हैं। इतनी कम तनख्वाह में परिवार की जरूरतें भी पूरी नहीं हो रहीं। चुनाव, जनगणना जैसे कार्य तो कराए जाते हैं, पर संविदा का दर्जा नहीं दिया जा रहा। सरकार से स्थायीकरण की मांग है।
-गुड्डी कुमारी
सरकार ने हमें बहाल करते समय जो वादे किए थे, वे आज भी अधूरे हैं। काम का दायरा तो बढ़ा दिया गया लेकिन मानदेय जस का तस है। स्थायीकरण और सम्मानजनक वेतन हमारा हक है, इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
-रंजीत कुमार सिंह
सरकार हमारी सेवाओं का पूरा लाभ उठा रही है लेकिन जब वेतन और स्थायित्व की बात आती है तो बहाने बना दिए जाते हैं। ईपीएफ कटौती हो रही है, फिर भी संविदाकर्मी नहीं माना जा रहा। यह स्थिति बदलनी चाहिए।
-सुधीर कुमार सिंह
हम दिन-रात मेहनत करते हैं, दूर-दूर की पंचायतों में जाकर किसानों के लिए काम करते हैं। मानदेय इतना कम है कि महीने के अंत तक पैसे नहीं बचते। सरकार को हमारी जायज मांगें मानकर स्थायीकरण करना चाहिए।
-शैलेश कुमार
किसान सलाहकारों की स्थिति बेहद खराब है। इतने वर्षों से अस्थायी रहना मानसिक तनाव भी बढ़ाता है। हमारी मेहनत का सरकार को सम्मान करना चाहिए और स्थायी नियुक्ति की प्रक्रिया को जल्द लागू करना चाहिए।
-बेबी सिन्हा
सरकार हमसे काम तो लेती है पर अधिकार और सुविधा नहीं देती। जब काम का बोझ सरकारी कर्मचारियों जैसा है तो वेतन और दर्जा भी वैसा मिलना चाहिए। स्थायीकरण की मांग पूरी न होने तक संघर्ष जारी रहेगा।
-कुमार गौरव
हमारे साथ भेदभाव साफ दिखाई देता है। 15 साल से मेहनत के बावजूद हम संविदा या स्थायी का दर्जा नहीं पा सके। सरकार को हमारी स्थिति पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए और जल्द समाधान निकालना चाहिए।
-शशि कुमार
किसान सलाहकारों की आवाज बार-बार दबा दी जाती है। हम सिर्फ प्रगतिशील किसान कहलाकर रह गए हैं, जबकि काम सरकारी कर्मचारी जैसा करते हैं। सरकार को हमारी मांगें माननी होंगी और सम्मानजनक वेतन देना होगा।
-संतोष कुमार
हमसे सरकारी कर्मचारी की तरह पूरा काम लिया जा रहा है लेकिन अधिकार शून्य हैं। परिवार का पालन-पोषण इस मानदेय से मुमकिन नहीं। सरकार यदि ईपीएफ काटती है तो संविदा का दर्जा और स्थायीकरण भी दे।
-रोहित कुमार रजक
सरकार से बार-बार गुहार लगाने के बावजूद आज तक न संविदा का दर्जा मिला, न स्थायीत्व। हम किसान सलाहकार हर जिम्मेदारी निभा रहे हैं, मगर हमें उचित मान-सम्मान नहीं मिल रहा। यह स्थिति बदलनी चाहिए।
-धर्मनाथ चौधरी
हम किसान सलाहकारों को सिर्फ काम करने के लिए रखा गया है, अधिकार देने में सरकार हमेशा पीछे हटती है। मानदेय इतना कम है कि घर चलाना मुश्किल हो गया है। हमारी स्थायीकरण की मांग पूरी होनी चाहिए।
- बबलू यादव
हम हर तरह के सरकारी काम में लगे रहते हैं लेकिन जब सुविधाओं की बात आती है तो हमें नजरअंदाज कर दिया जाता है। सरकार से मांग है कि स्थायीकरण की प्रक्रिया शीघ्र शुरू की जाए ताकि हमारा भविष्य सुरक्षित हो।
-संजू कुमारी
बोले जिम्मेदार
किसान सलाहकार हमारी कृषि योजनाओं की सफलता में अहम भूमिका निभा रहे हैं। उनकी समस्याओं से विभाग भलीभांति अवगत है। मानदेय में वृद्धि और संविदा का दर्जा देने संबंधी प्रक्रिया पर विभाग गंभीरता से विचार कर रहा है। नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत में भुगतान में थोड़ी देरी जरूर हुई है, लेकिन अगले माह से इसका समाधान कर दिया जाएगा। किसान सलाहकारों की सेवा शर्तों पर भी उच्चस्तरीय समीक्षा की जा रही है, ताकि उन्हें सम्मानजनक वेतन और स्थायीत्व मिल सके। विभाग उनके हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
-मिथिलेश कुमार, जिला कृषि पदाधिकारी, कटिहार
बोले कटिहार असर
कलाकार पंजीकरण पोर्टल से कलाकारों को मिलेगा मंच
कटिहार। कला संस्कृति एवं युवा विभाग बिहार सरकार द्वारा बिहार कलाकार पंजीकरण पोर्टल का विमोचन किया गया। यह जानकारी जिला सांस्कृतिक पदाधिकारी रीना गुप्ता ने दी। उन्होंने बताया कि कला संस्कृति एवं युवा विभाग की ओर से प्रदेश के कलाकारों को उनकी नई पहचान दिलाने के लिए विभाग की ओर से बिहार कलाकार पंजीकरण पोर्टल का विमोचन किया गया। इस पोर्टल के जरिए बिहार के कलाकारों को मंच मिलने के साथ-साथ उनकी प्रतिभा को भी पहचान मिलेगी। कलाकारों को राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए पोर्टल मील का पत्थर साबित होगा। पोर्टल के जरिए हर जिले, प्रखंड और गांव में रहने वाले कलाकार अपने बारे में जानकारी देंगे। शास्त्रीय नृत्य, शास्त्रीय गायन, लोकगीत, लोक नृत्य, नाट्य, चित्रकला, मूर्तिकला आदि विधा में कार्य कर रहे कलाकार इस पोर्टल के माध्यम से अपने आप को रजिस्टर्ड कर सकते हैं। पंजीकृत कलाकारों को विशिष्ट पहचान संख्या दी जाएगी, जो भविष्य में सरकारी योजनाओं, पुरस्कारों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और सांस्कृतिक योजनाओं में भागीदारी के लिए अनिवार्य होगा। इस पोर्टल से कलाकारों की ना केवल पहचान सुनिश्चित होगी, बल्कि सरकार को यह जानने में भी सुविधा होगी कि कहां और कौन से क्षेत्र के कलाकार उपलब्ध हैं तथा उन्हें किस प्रकार का सहयोग चाहिए। बता दें कि बोले कटिहार के तहत 29 मार्च के अंक में जिले के कला साधकों की समस्या पर प्रशिक्षण को डिग्री कॉलेज हो तो रोजगार में होगी बढ़ोतरी शीर्षक से खबर प्रकाशित हुई थी। जिले के कलाकारों ने शहर में कला को लेकर होने वाली समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया था और अपनी पहचान की चिंता व्यक्ति की थी। कलाकारों ने सरकार और बोले कटिहार संवाद का आभार व्यक्त किया।
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