बोले जमुई : गर्मी छुट्टी में भी ट्रांसपोर्ट चार्ज लेते हैं, रिजल्ट का जिम्मा नहीं
सरकार के दिशा निर्देशों के बावजूद सिमुलतला के निजी स्कूलों में अभिभावकों को किताबों की महंगाई और मनमानी फीस के कारण आर्थिक व मानसिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है। स्कूल एनसीईआरटी की किताबें लागू करने...
सरकार की ओर से दिशा निर्देश जारी होने के बावजूद सिमुलतला के तमाम निजी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावकों की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। कभी किताबों की महंगाई, कभी मनमानी फीस तो कभी ट्रांसपोर्ट का जबरन शुल्क, गर्मी की छुट्टियों में भी वसूली, हर मोर्चे पर अभिभावकों को आर्थिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित होना पड़ रहा है। शिक्षा का बाजार बना दिया गया है। जहां बच्चों की पढ़ाई से ज्यादा मुनाफा देखा जाता है। सरकार की ओर से दिशा-निर्देश जारी होने के बावजूद तमाम निजी स्कूल अपना नियम खुद बनाते हैं। अभिभावक चाह कर भी विरोध नहीं कर पाते, क्योंकि डर होता है कि बच्चा स्कूल में प्रताड़ित न हो। संवाद के दौरान अभिभावकों ने अपनी परेशानी बताई।
03 से पांच हजार तक होती है किताबों की कीमतें
10 से 25 फीसदी तक हर वर्ष बढ़ा दी जाती है फीस
15 सौ से तीन हजार तक हर वर्ष लेते हैं वार्षिक फीस
सरकार ने कक्षा छह से निजी स्कूलों में भी एनसीआरटी की किताबें लागू करने का स्पष्ट निर्देश जारी किया है। यह किताबें सस्ती गुणवत्तापूर्ण और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम से जुड़ी होती है। लेकिन निजी स्कूल इन निर्देशों की खुलेआम अवहेलना करते हैं। उनका तर्क होता है कि एनसीईआरटी की किताबों में गहराई नहीं है या वह पाठ्यक्रम की जरूरत को पूरा नहीं करती। लेकिन हकीकत यह है कि निजी प्रकाशकों की किताबें लगवाने पर उन्हें अच्छा खासा कमीशन मिलता है। अभिभावक बताते हैं कि यदि किसी निजी स्कूल में एनसीईआरटी की किताबें लग भी जाती है तो उसके साथ तीन से चार अतिरिक्त किताबें भी अनिवार्य कर दी जाती है। इन अतिरिक्त किताबों की कीमत इतनी ज्यादा होती है कि किताबों की कुल खर्च 1700 से 2500 रुपये तक पहुंच जाता है। कुछ स्कूलों में यह 3000 से 4000 रुपये तक चला जाता है। यह बोझ सीधे अभिभावकों की जेब पर पड़ता है। अगर केवल एनसीईआरटी की किताबें ही लगे तो न केवल किताबों की लागत कम होगी बल्कि पूरे देश में एक समान पाठ्यक्रम होने के कारण ट्रांसफर जैसी स्थितियों में भी छात्रों को नई किताबें खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इससे अभिभावकों को मानसिक और आर्थिक दोनों से राहत मिलेगी।
हर साल बढ़ जाती है ट्यूशन फीस :
निजी स्कूलों की फीस संरचना नियम कायदे में नहीं है। हर स्कूल अपने सुविधा और मुनाफे के हिसाब से फीस तय करता है। अभिभावकों की मानें तो हर साल फीस में 10 से 20 प्रतिशत की वृद्धि कर दी जाती है। वह भी बिना किसी स्पष्ट सूचना या कारण बताए। जब अभिभावक स्कूल प्रशासन से सवाल पूछते हैं, तो दो टूक जवाब मिलता है अगर दिक्कत है तो सरकारी स्कूल में पढ़ लीजिए। वहां किताबें ड्रेस और खाना सब फ्री मिलता है। स्कूल में ट्यूशन फीस के अलावा कंप्यूटर, स्मार्ट क्लास, लाइब्रेरी, स्पॉट, एक्टिविटी फंक्शन आदि के नाम पर अलग से चार्ज वसूला जाता है। कई बार यह राशि 1000 से 2500 रुपये अतिरिक्त हो जाती है। मगर इसका कोई पारदर्शी हिसाब स्कूल नहीं देता।
छुट्टी में भी वसूलते हैं ट्रांसपोर्ट शुल्क :
कुछ स्कूल गर्मी की छुट्टी में भी पूरा ट्रांसपोर्ट चार्ज लेते हैं। जबकि छुट्टी के दौरान बसें चलती ही नहीं है। इनका कोई औचित्य नहीं होता, लेकिन अभिभावकों की कोई सुनवाई नहीं होती ट्रांसपोर्ट का यह जबरन वसूला गया पैसा भी सालाना फीस का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। इस स्थिति में सरकार को तत्काल हस्तक्षेप कर न्यूनतम और अधिकतम फीस की सीमा तय की जानी चाहिए। ताकि हर स्कूल मनमानी न कर सके। इसके साथ ही किसी भी स्कूल को एक्टिविटी या किसी अन्य नाम पर अतिरिक्त शुल्क लेने से पहले इसका स्पष्ट आधार और विवरण देना अनिवार्य किया जाए। एक रेगुलेटरी अथॉरिटी हो जो स्कूल के सालाना बजट फीस ढ़ांचे और उसे प्राप्त सुविधाओं की निगरानी करे। गर्मी की छुट्टियां छात्रों के लिए तो एक राहत होती है लेकिन अभिभावकों के लिए यह एक और आर्थिक बोझ का कारण बन जाती है। खासकर तब जब स्कूल ट्रांसपोर्ट की पूरी फीस बिना किसी कटौती के वसूलते हैं। अभिभावकों की मांग है कि जब स्कूल गर्मी की छुट्टियों में पूरी तरह बंद रहते हैं तो ट्रांसपोर्ट फीस या तो पूरी माफ की जाए या न्यूनतम 50 प्रतिशत तक कम की जाए या एक व्यावहारिक और न्याय संगत उपाय होगा सरकार को भी इस मुद्दे पर स्पष्ट दिशा निर्देश जारी करने चाहिए।
पांच घंटे स्कूल में देने के बाद भी पढ़ाई की जिम्मेदारी नहीं :
जब अभिभावक अपने बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंता जताते हैं या शिकायत करते हैं कि सिलेबस पूरा नहीं हो पा रहा है तो अधिकतर निजी स्कूलों का जवाब होता है आप अपने बच्चों को घर में पढ़ते नहीं है। ट्यूशन नहीं लगवाया है हम स्कूल में सिर्फ चार-पांच घंटे में क्या कर सकते हैं। यह सुनकर किसी भी अभिभावक को यह सवाल उठाना लाजमी है कि जब हजारों रुपए फीस दी जा रही है तो पढ़ाई की जिम्मेदारी कौन लेगा। पांच घंटे स्कूल की पढ़ाई में नहीं सीखते तो एक घंटे के ट्यूशन में क्या सीखेंगे। अभिभावकों यह शिकायत आम होती जा रही है कि स्कूल सिर्फ दिखावे की पढ़ाई करते हैं। प्रोजेक्ट एक्टिविटी डांस ड्रामा और फैंसी ड्रेस प्रतियोगिताओं में तो बच्चों को खूब शामिल किया जाता है लेकिन विषय वस्तु की गहराई गायब है। न शिक्षक नियमित होते हैं ना समय पर होमवर्क जांच होती है। परीक्षा से दो हफ्ते पहले हड़बड़ी में सिलेबस पूरा करने का दबाव छात्रों पर डाल दिया जाता है। पूरी व्यवस्था पर पुनर्विचार करना जरूरी हो जाता है।
शिकायत
1. सरकार के निर्देश के बावजूद निजी स्कूल महंगे निजी प्रकाशकों की किताबें लगवाते हैं, खर्च 2000 से 5000 रुपए तक हो जाता है।
2. हर साल स्कूल फीस में मनमाने तरीके से वृद्धि कर देते हैं। कोई पारदर्शी नियम नहीं होता।
3. छुट्टियों के दौरान बसें नहीं चलतीं, फिर भी पूरे महीने की ट्रांसपोर्ट फीस वसूलते हैं।
4. स्कूल सिलेबस पूरा नहीं कराते और बच्चों के कमजोर होने का ठीकरा अभिभावकों पर फोड़ते हैं। ट्यूशन लगवाने की सलाह दे देते हैं।
5. स्पोर्ट्स डे, कल्चरल फेस्ट, पिकनिक, स्मार्ट क्लास जैसी चीजों के नाम पर 1000 से 5000 रुपए तक अलग से चार्ज वसूला जाता है।
सुझाव
1. शिक्षा विभाग सख्त आदेश जारी करे कि पहली से बारहवीं तक सिर्फ एनसीईआरटी की किताबें ही लगें। इसका उल्लंघन करने वाले स्कूलों पर आर्थिक जुर्माना लगे।
2. हर जिले में एक फीस रेगुलेटरी कमेटी बने, जो न्यूनतम और अधिकतम फीस की सीमा तय करे और हर स्कूल के बजट को पारदर्शी बनाए।
3. जिन महीनों में बस सेवा नहीं चलती, उनमें ट्रांसपोर्ट फीस स्वत: माफ या आधा कर दिया जाए। इसे स्कूल की वेबसाइट पर पब्लिकली साझा किया जाए।
4. यदि सिलेबस अधूरा रहता है, तो इसकी जिम्मेदारी स्कूल प्रशासन की मानी जाए। निरीक्षण के लिए एक शैक्षणिक मूल्यांकन टीम बनाई जाए।
5. कोई भी एक्टिविटी शुल्क साल की शुरुआत में ही घोषित किया जाए। इसके बिना किसी भी आयोजन में अनिवार्य भागीदारी न कराई जाए।
हमारी भी सुनें
यदि स्कूल और अभिभावक एक-दूसरे की परिस्थितियों को समझें और पारदर्शिता रखें, तो किसी को भी कोई शिकायत नहीं रहेगी। मेरी यही उम्मीद है कि स्कूल ऐसा वातावरण बनाएं, जिसमें अभिभावक की आवाज सुनी जाए।
-संतोष कुमार
अगर एनसीईआरटी किताबों का विकल्प सभी स्कूलों में हो, तो यह पूरे देश के लिए लाभकारी होगा। छात्र कहीं से कहीं शिफ्ट हो जाएं तो भी किताबें और सिलेबस एक जैसे होंगे। इससे मोबाइल फैमिली को बहुत सुविधा होगी और छात्रों की पढ़ाई नहीं टूटेगी।
-नागेश्वर यादव
एक क्लास में 40 से 50 बच्चे बैठते हैं। शिक्षक 45 मिनट में कैसे सभी पर ध्यान दे पाएगा। सभी का क्लास वर्क और होमवर्क हो जाए, यही बहुत है। स्कूल में शिक्षक और ट्यूशन में ट्यूटर सभी अपना काम निपटा भर रहे हैं। कोई बच्चे की जिम्मेदारी नहीं लेता।
-धर्मेन्द्र यादव
आज बच्चों में सबसे अधिक दिक्कत अनुशासन की कमी का है। न पढ़ने का समय है और न खेलने का। आउटडोर गेम तो जैसे खत्म ही हो गए हैं। घर पर मोबाइल से चिपके रहते हैं। होमवर्क हुआ नहीं कि पढ़ाई खत्म। हमारे समय में घर से संस्कार तो स्कूल से अनुशासन की सीख मिलती थी।
-चंदन कुमार
अभिभावकों की यह अपेक्षा रहती है कि स्कूल सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, मूल्य आधारित शिक्षा भी दें। एक्टिविटी फीस या स्मार्ट क्लास के नाम पर बार-बार शुल्क वसूली से बेहतर है कि साल के आरंभ में स्पष्ट शुल्क संरचना दी जाए और उसी में सारी सुविधाएं समाहित हों।
-गुलटन यादव
सरकार के निर्देश को स्कूल पालन करे एनसीआरटी की किताबें ही चलाए। और सरकार को निजी स्कूलों में न्यूनतम और अधिकतम फीस तय करनी चाहिए।
-आलोक राज
गर्मी की छुट्टियों में ट्रांसपोर्ट चार्ज का पूरा पैसा लिया जाता है, जबकि बसें नहीं चलतीं। मेरा मानना है कि यह खर्च आधा कर देना चाहिए या फिर केवल कार्य दिवस के हिसाब से ही चार्ज किया जाए।
-रीना कुमारी
एनसीईआरटी की किताब से पढ़ाई हो। छुट्टी में वाहन फीस नहीं लगना चाहिए और ट्यूशन, छुट्टियां के समय फ्री माफ हो या 50 प्रतिशत हो। इस पर स्कूल को विचार करना चाहिए।
-पिंकी कुमारी
स्कूल को सिलेबस में साल-दर-साल बदलाव से बचना चाहिए। इससे पुरानी किताबें अनुपयोगी हो जाती हैं। यदि बदलाव जरूरी हो तो वैकल्पिक उपयोग की व्यवस्था सुझाई जानी चाहिए। एनसीईआरटी की किताबें सबसे उपयोगी मानी जाती हैं।
-परशुराम कुमार
यदि स्कूल की किताबें साल दर साल बदलनी पड़ें तो इसके पीछे शैक्षणिक कारण और सुधार की जरूरत स्पष्ट होनी चाहिए। यूं ही प्रकाशन बदलना केवल खर्च बढ़ाता है। इससे पुराने संसाधनों का उपयोग नहीं हो पाता।
-दीपक कुमार
सुझाव के अनुसार हर स्कूल में एक पैरेंटल काउंसिल होनी चाहिए, जिसमें किताब, फीस और शैक्षणिक व्यवस्था पर संवाद हो सके। अगर हम सब मिलकर बैठें, तो समस्याएं बिना टकराव के सुलझ सकती हैं। शिक्षा एक साझेदारी है, व्यापार नहीं।
-बबलू कुमार
स्कूलों में पैंरेंट्स टीचर्स मीट सिर्फ कहने के लिए होता है। इसमें बच्चे की तारीफ या शिकायतें ही होती हैं। अभिभावकों को कुछ बोलने का अवसर ही नहीं दिया जाता। बच्चा किसी विषय में कमजोर है तो क्या करें यह कोई नहीं बताता।
-चेतन यादव
कोई भी स्कूल बच्चों के ग्रोथ की जिम्मेदारी नहीं लेते। जब शिकायत करो तो कहते हैं घर में नहीं पढ़ाते। ट्यूशन नहीं लगाया। तीन से चार स्कूल बदल चुका हूं, हर स्कूल में सिर्फ रटवाया जा रहा है। स्मार्ट क्लास नाम का है। एक्टिविटी के नाम पर सिर्फ डांस, आर्ट एंड क्राफ्ट, मार्शल आर्ट्स की कक्षाएं चलाई जा रही हैं।
-शंकर यादव
फीस में अगर कोई बढ़ोतरी हो तो उसकी पूर्व सूचना देना और कारण स्पष्ट करना जरूरी है। स्कूल को साल की शुरुआत में न्यूनतम और अधिकतम फीस का ढ़ांचा घोषित करना चाहिए, ताकि अभिभावक योजना बनाकर खर्च प्रबंधन कर सकें। हर साल ट्यूशन फीस में 10 प्रतिशत से अधिक वृद्धि न हो।
-बालो ठाकुर
आज कल अधिकतर स्कूल ही ड्रेस भी देते हैं। इनकी कीमत बाजार मूल्य से अधिक होती है। ड्रेस खराब हो तो दूसरा ड्रेस खरीदने की सलाह दी जाती है। लेकिन, स्कूल इनकी जिम्मेदारी नहीं लेता। वह कहता है कि आपने सही से इस्तेमाल नहीं किया।
-साधु सिंह
किताबों को लेकर थोड़ी पारदर्शिता होनी चाहिए। स्कूल अगर एनसीईआरटी की किताबें लागू करे तो काफी राहत मिलेगी, क्योंकि ये सस्ती होती हैं और हर जगह उपलब्ध भी रहती हैं। अगर स्कूल को पूरक सामग्री जरूरी लगती है तो वो अतिरिक्त वर्कबुक की सूची अलग से दे सकते हैं।
-क्षैतिज कुमार
बोले जिम्मेदार
प्राइवेट स्कूलों में कौन किताबें चलाई जाएं, ऐसा कोई निर्देश विभाग द्वारा नहीं दिया गया है। हालांकि स्कूल परिसर में किताब बेचना गलत है। यदि इस प्रकार की शिकायत मिलेगी तो कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा प्राइवेट स्कूलों में पोर्टल के माध्यम से बच्चों को स्कूल आवंटन किया जा रहा है। विभाग की ओर से पूरी कोशिश की जा रही है । विज्ञापन और जागरूकता अभियान चलाकर अभिभावकों को अगले सत्र के लिए प्रेरित किया जाएगा।
-राजेश कुमार, शिक्षा पदाधिकारी, जमुई।
बोले जमुई फॉलोअप
नीलगाय से फसल क्षति का मिले मुआवजा
जमुई। जिले के कई प्रखंडों में नीलगाय से फसल को काफी नुकसान पहुंचता है। 28 फरवरी को हिन्दुस्तान ने बोले जमुई संवाद के दौरान किसानों समस्या प्रमुखता से प्रकाशित की थी। इस दौरान किसानों ने कहा था कि नीलगाय से होने वाले नुकसान का सरकार मुआवजा उपलब्ध कराए। दो दशक पहले खेती में खर्च कम होता था। अच्छी वर्षा होती थी। जिसके कारण बड़े पैमाने पर धान, गेहूं, जौ, मकई, दलहन चना, खेसारी, उरद, मूंग, अरहर, तेलहन राई, तीसी, सरसों, मेथी, मंगरेला, धनिया, लहसुन आदि सभी प्रकार के फसलों का उत्पादन होता था। जिले के जमुई सदर, खैरा, झाझा, अलीगंज में गोभी व मसाला उत्पादक किसानों ने कहा कि सहयोग मिले तो किसानों की आमदनी पांच से दस गुना बढ़ जाएगी। अलीगंज में प्रचुर मात्रा में धनिया, मसाला, मेथी, मंगरेला, सौंफ, लाल मिर्च, जमायन आदि की खेती भरपूर मात्रा में होती है। अलीगंज प्रखंड में नीलगाय का आतंक काफी रहता है। फसल को बर्बाद कर देती है। इसके अलावा वे खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की इकाई अगर जमुई में स्थापित कर दें तो मसाला के साथ-साथ फूलगोभी के उत्पादों को तैयार करने का प्रशिक्षण मिल सकता है। किसान फूलगोभी का अचार, सुखौट बना लेते हैं। फूल गोभी का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित हो। आपदा की स्थिति में मुआवजा का प्रावधान सरकार को करना चाहिए।
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