नागार्जुन की कविता भारतीय समाज के शोषित-वंचित वर्गों की आवाज है : डॉ तारकेश्वर
हाजीपुर। संवाद सूत्र नागार्जुन की कविता भारतीय समाज के शोषित-वंचित वर्गों की आवाज है : डॉ तारकेश्वरनागार्जुन की कविता भारतीय समाज के शोषित-वंचित वर्गों की आवाज है : डॉ तारकेश्वरनागार्जुन की कविता...

हाजीपुर। संवाद सूत्र देवचन्द महाविद्यालय, हाजीपुर में हिन्दी विभाग की ओर से शुक्रवार को ‘‘नागार्जुन की कविताः संवेदना और शिल्प विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का संयोजन एवं मंच संचालन हिन्दी विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ. मीना ने किया। संरक्षक महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो.(डॉ.) तारकेश्वर पंडित तथा मुख्य अतिथि प्रो. (डॉ.) शरदेन्दु कुमार, पूर्व-अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना उपस्थित रहें। हिन्दी विभाग की डॉ. मीना ने विषय प्रवेश करते हुए कहा कि नागार्जुन का काव्य-संसार विविध आयामों से युक्त है -जहां एक ओर करुणा है, वहीं दूसरी ओर विद्रोह भी। वे कविता के माध्यम से समाज के हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज बनते हैं।
सहायक प्राध्यापक, डॉ. प्रकाश कुमार ने कहा कि नागार्जुन की कविताएं केवल साहित्यिक रचनाएं नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का औजार हैं। उनकी कविताओं में स्त्री विमर्श, ग्रामीण जीवन और राजनीतिक विमर्श समाहित है। बी.ए. चतुर्थ सेमेस्टर की छात्रा अंजली कुमारी ने नागार्जुन की कविता के माध्यम से अपने विचार व्यक्त की। डॉ. अवनीश कुमार मिश्र, सहायक प्राध्यापक, हिन्दी विभाग ने कहा कि नागार्जुन का शिल्प जितना सहज है, उतना ही प्रभावशाली भी। वे अपनी कविता में आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए गंभीर विषयों को बेहद प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करते हैं। डॉ. आलोक कुमार सिंह, अध्यक्ष हिन्दी विभाग ने पीपीटी के माध्यम से अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि नागार्जुन की कविताओं में जनपक्षधरता और यथार्थ का अद्भुत समन्वय है। वे शब्दों के माध्यम से सामाजिक क्रांति की जमीन तैयार करते हैं। प्राचार्य प्रो.(डॉ.) तारकेश्वर पंडित ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि नागार्जुन की कविता भारतीय समाज के शोषित-वंचित वर्गों की आवाज है। उनकी कविताएं केवल साहित्य नहीं, बल्कि एक दस्तावेज हैं, जो सामाजिक अन्याय और व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष का उद्घोष करती हैं। मुख्य अतिथि प्रो. (डॉ.) शरदेन्दु कुमार ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में कहा कि नागार्जुन की कविता में ग्राम्य जीवन की गंध, राजनीतिक चेतना और शोषण के विरुद्ध तीव्र आक्रोश देखने को मिलता है। उनकी भाषा की सादगी और विचारों की तीव्रता उन्हें जनकवि बनाती है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि नागार्जुन की रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं। कार्यक्रम में महाविद्यालय के अन्य प्राध्यापकगण, शिक्षकेत्तर कर्मचारी, विद्यार्थी एवं आमंत्रित अतिथिगण बड़ी संख्या में उपस्थित थे। हाजीपुर-14- संगोष्टि को सम्बोधित करती वक्ता प्राध्यापिका।
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