बच्चों को धर्म व आध्यात्म का ज्ञान दें अभिभावक : स्वामी रामप्रप्पनाचार्य जी
जीवन में सत्संग व शास्त्रों में बताए आदर्शों का लोग करें श्रवण, उसरी बाजार में आयोजित श्रीमदभागवत कथा ज्ञान यज्ञ में स्वामी रामप्रपन्नाचार्य जी महाराज ने जीवन में सत्संग व शास्त्रों में बताए आदर्शों...

जीवन में सत्संग व शास्त्रों में बताए आदर्शों का लोग करें श्रवण भागवत कथा सुनने मात्र से ही पापों से मिलती है मुक्ति मेहन्दीया, एक प्रतिनिधि। उसरी बाजार में आयोजित श्रीमदभागवत कथा ज्ञान यज्ञ में स्वामी रामप्रपन्नाचार्य जी महाराज ने जीवन में सत्संग व शास्त्रों में बताए आदर्शों का श्रवण करने का आह्वान करते हुए कहा कि सत्संग में वह शक्ति है, जो व्यक्ति के जीवन को बदल देती है। उन्होंने कहा कि व्यक्तियों को अपने जीवन में क्रोध, लोभ, मोह, हिंसा, संग्रह आदि का त्यागकर विवेक के साथ श्रेष्ठ कर्म करने चाहिए। भक्त प्र“ाद ने माता कयाधु के गर्भ में ही नारायण नाम का मंत्र सुना था।
जिसके सुनने मात्र से भक्त प्र“ाद के कई कष्ट दूर हो गए थे। कथा का आगाज गुरु वंदना के साथ किया गया। उन्होंने कहा कि बच्चों को धर्म का ज्ञान बचपन में दिया जाता है, वह जीवन भर उसका ही स्मरण करता है। ऐसे में बच्चों को धर्म व आध्यात्म का ज्ञान दिया जाना चाहिए। माता-पिता की सेवा व प्रेम के साथ समाज में रहने की प्रेरणा ही धर्म का मूल है। अच्छे संस्कारों के कारण ही ध्रुव जी को पांच वर्ष की आयु में भगवान का दर्शन प्राप्त हुआ। इसके साथ ही उन्हें 36 हजार वर्ष तक राज्य भोगने का वरदान प्राप्त हुआ था। ऐसी कई मिसालें हैं, जिससे सीख लेने की जरूरत है। भक्ति के लिए कोई उम्र बाधा नहीं है। भक्ति को बचपन में ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए क्योंकि बचपन कच्चे मिट्टी की तरह होता है। उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है। कथा के दौरान उन्होंने बताया कि पाप के बाद कोई व्यक्ति नरकगामी हो, इसके लिए श्रीमद् भागवत में श्रेष्ठ उपाय प्रायश्चित बताया गया है। अजामिल उपाख्यान के माध्यम से इस बात को विस्तार से समझाया गया। साथ ही प्र“ाद चरित्र के बारे में विस्तार से सुनाया और बताया कि भगवान नृसिंह रुप में लोहे के खंभे को फाड़कर प्रगट होना बताता है कि प्र“ाद को विश्वास था कि मेरे भगवान इस लोहे के खंभे में भी है और उस विश्वास को पूर्ण करने के लिए भगवान उसी में से प्रकट हुए एवं हिरण्यकश्यप का वध कर प्र“ाद के प्राणों की रक्षा की।
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