231 पंचायतों में 150 पंचायत सरकार भवन बने पर सुविधाएं नहीं
कटिहार में 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया गया। यहां 231 पंचायतों में से लगभग 150 में भवनों का निर्माण हो चुका है, लेकिन ये भवन केवल दिखावे तक सीमित हैं। ग्रामीणों को सेवाओं के लिए...

कटिहार। जिले में गुरुवार 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जा रहा है, तो यह सवाल उठाना जरूरी है कि क्या गांवों तक सशक्त शासन की सोच ज़मीनी स्तर पर साकार हो पाई है। कटिहार जिले की बात करें तो यहां 231 पंचायतों में से अब तक लगभग 150 में पंचायत सरकार भवनों का नर्मिाण हो चुका है। लेकिन सवाल यह नहीं कि कितने भवन बने, असली सवाल यह है कि क्या इन भवनों से बदलाव आया। बताते चलें कि सरकार की मंशा थी कि प्रत्येक पंचायत में ऐसा भवन हो, जहां ग्रामीण विकास से जुड़ी सभी सेवाएं एक छत के नीचे मिलें। लेकिन कई पंचायतों में ये भवन केवल फोटो खिंचवाने और ताले लगाने तक सीमित रह गया है। फलका प्रखंड के मुखिया संघ के अध्यक्ष राजेश रंजन ने बताया कि कुछ पंचयत में भवन का नर्मिाण हो रहा है। जबकि कुछ जगी भवन बना है। लेकिन अभी तक सही मायने में सभी अधिकारी नहीं बैठते हैं। जिसके कारण लोगों को प्रखंड आना ही पड़ता है। सिरसा पंचायत की गृहिणी पुष्पा देवी कहती हैं कि हमारी पंचायत में भवन तो है, लेकिन महीने में दो बार ही खुलता है। रोजगार सेवक आते नहीं, सचिव फोन नहीं उठाते।
अधूरे इंतजाम, अधूरी व्यवस्था: जिन पंचायतों में भवन मौजूद हैं, वहां बिजली, इंटरनेट और साफ-सफाई की बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। कुछ जगहों पर भवन बनने के बाद वर्षों से फर्नीचर तक नहीं पहुंचा है। जिला पंचायत राज पदाधिकारी योगेन्द्र प्रसाद के के मुताबिक कई पंचायतों में भवन नर्मिाण पूरा हो चुका है, लेकिन नियमित स्टाफ की तैनाती और फॉलोअप में विलंब हो रहा है। वहीं कुछ पंचायतों के मुखिया मानते हैं कि यदि अधिकारी और कर्मी नियमित कार्यालय में मौजूद रहें, तो गांवों की तस्वीर बदल सकती है।
पंचायत भवन का मतलब सिर्फ दीवारें नहीं: कई ग्रामीणों ने बताया कि पंचायती राज भवन ग्रामीण स्वशासन का प्रतीक हैं, लेकिन अगर ये सर्फि दिखावे की इमारत बनकर रह जाएं, तो लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होंगी। सरकार को चाहिए कि इन भवनों को पूरी तरह क्रियाशील बनाया जाए ताकि समय पर कार्यालय खुले, अधिकारी जवाबदेह हों और ग्रामीणों को सुलभ सेवाएं मिलें। आज भी लोग प्रखंड के चक्कर लगाने को मजबूर हैं।
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