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मधुबनी पेंटिंग पर मशीन की मार कलाकारों का छिन रहा रोजगार

मधुबनी पेंटिंग, जो भारत की लोक संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, आज मशीनों के खतरे में है। यह कला महिला सशक्तीकरण और आर्थिक विकास में सहायक रही है। सरकार ने इसे जीआई टैग दिया है, लेकिन मशीनों के...

Newswrap हिन्दुस्तान, मधुबनीFri, 11 April 2025 05:16 PM
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मधुबनी पेंटिंग पर मशीन की मार कलाकारों का छिन रहा रोजगार

मधुबनी। मधुबनी पेंटिंग की धमक आज देश और दुनिया में है। यह कला भारत की महान लोक संस्कृति का अटूट हिस्सा है। एक तरफ जहां मधुबनी पेंटिंग सदियों के लोक जीवन की बानगी प्रस्तुत करती है। वहीं, इसने नए दौर में महिला सशक्तीकरण के सशक्त माध्यम के रूप में अपनी उपयोगिता साबित करने में सक्षम साबित हुई है। साथ ही,बदलते समय के साथ इस चित्रकारी ने हजारों परिवारों को आजीविका मुहैया कराने का भी काम किया है। मधुबनी को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाली मधुबनी पेंटिंग पर अब मशीनीकरण पूरी तरह से हावी हो चुका है। जिले में करीब 50 हजार से अधिक कलाकार इस विधा से जुड़कर अपनी आजीविका चला रहे हैं। अबतक नौ कलाकारों को मिल चुका है पद्मश्री: अर्वाचीन मिथिला कला की प्रमुख प्रीति कुमारी ने बताया कि मधुबनी चित्रकारी के महत्व का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अब तक इस लोक कला के कुल नौ कलाकारों को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार दिया जा चुका है। पीढ़ियों तक सींचने और कागज से दीवारों और कपड़ों सहित लगभग सभी मुमकिन सरफेस पर बनाई जा रही मधुबनी पेंटिंग आज एक अनचाहे चुनौती का सामना कर रही है। इसके मूल में है इसका मशीनों के द्वारा छापा जाना। इस नई चुनौती ने इससे जुड़े हजारों कलाकारों को आशंकित कर दिया है। आमजनों से लेकर सरकारी स्तर पर भी इसके संरक्षण की दिशा में पहल करने की ज़रूरत है।

मधुबनी पेंटिंग को मिल चुका है जीआई टैग: कलाकार मंजू चौधरी और रानी झा ने बताया कि सरकार ने इसे जीआई टैग दिया है। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के रूप में भी इसे मान्यता प्राप्त है। परन्तु, मशीनों से मिल रही चुनौती से इसे बचाने की दिशा में समय रहते पहल करनी होगी। इसके कई उपाय हो सकते हैं। सरकार इसके बचाव के लिए कड़े नियम बना सकती है। इसके अतिरिक्त राज्य के विभिन्न महोत्सवों में हस्तनिर्मित मोमेंटो के रूप में इसे तरजीह दी जा सकती है। सरकार द्वारा इस हस्त निर्मित लोककला को प्रोत्साहित करने के परिप्रेक्ष्य में प्रचार-प्रसार सहित अन्य कई तरीक़ों से इसको व्यापक स्तर पर बढ़ावा दे सकती है।

कलाकारों को अपनी कला में लाना होगा निखार: कलाकार प्रीति सिंह ने कहा कि मशीन से बनायी गयी पेंटिंग सस्ती जरूर हो सकती है पर ऑरिजनल हैंडमेड मधुबनी पेंटिंग के आगे उनकी चमक हमेशा फीकी ही रहेगी। उन्होंने पूर्ण विश्वास जताते हुए कहा कि स्थानीय लोककला को संरक्षित करने की दिशा में समाज के लोगों को आगे आना चाहिये ताकि हजारों साल की हमारी लोक परंपरा को इसके स्वर्णिम दौर में पहुंचाया जा सके। इसके लिए कलाकारों को अच्छी पेंटिंग बनाने और अपने काम को निखारने के लिए लगातार प्रयास करते रहना होगा।

पारंपरिक हस्तशिल्प को खत्म कर रही मशीन, इस पर हो दंडात्मक कार्रवाई

मधुबनी चित्रकला संस्थान सौराठ के कनीय आचार्य प्रतीक प्रभाकर ने बताया कि पारंपरिक हस्तनिर्मित संस्कृति पर हो रहा अतिक्रमण चिंतनीय है। सदियों से हस्तशिल्प स्थानीय कलाकारों के लिए आजीविका का साधन रहा है और आजादी के बाद भी इन्हीं हस्तशिल्पियों ने अपनी कलाकृतियों के निर्माण और बिक्री से देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। सरकार ने भी इन हस्तशिल्पियों की बहुत मदद की और देश दुनिया का बाजार उपलब्ध कराया। सरकार के अथक प्रयास और प्रोत्साहन का ही परिणाम है कि आज हमारे राज्य और देश में हस्तशिल्प फल फूल रहा है।

ग्रामीण क्षेत्र के कलाकारों खासकर महिलाओं के लिए हस्तशिल्प रोजगार का मुख्य साधन है और इनसे विकास भी हुआ है। मिथिला चित्रकला तो बेसहारा के लिए सहारा साबित हुआ है। हजारों महिलाओं ने मिथिला चित्रकला के माध्यम से खुद को स्थापित किया है और आर्थिक रूप से मजबूत हुई हैं। बिहार सरकार ने भी मिथिला चित्रकला के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए संस्थान की स्थापना की है लेकिन अब हस्तशिल्प पर खतरा मंडरा रहा है और बड़े-बड़े व्यवसायी पारंपरिक हस्तशिल्पों का डिजिटल प्रिंट कराकर बाजारों में बेचना शुरू कर चुके हैं। प्रिंट और हाथ से बनाये उत्पादों के बीच लागत का अंतर बहुत अधिक है और दिखने की गुणवत्ता लगभग समान है। अब प्रिंट और हस्तनिर्मित में ग्राहक एक जैसा दिखने के कारण अंतर नहीं समझ पाते और कम कीमत होने के कारण प्रिंट किया हुआ उत्पाद खरीद लेते हैं।

अब इस कारण हस्तशिल्पियों को काम मिलना बंद हो रहा है। कलाकार गरीबी के दलदल में धंसते जा रहे हैं। उन्होने सरकार से अनुरोध किया कि मशीनें पारंपरिक हस्तशिल्प को खत्म कर रही हैं। अगर इसी तरह मशीनें मधुबनी पेंटिंग की प्रिंट करती रही तो इस कला पर संकट गहराता जाएगा। हस्तशिल्प के मशीनी प्रिंट को तुरंत रोका जाय और इसे दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान करें अन्यथा सदियों से जो सांस्कृतिक हस्तशिल्प लोगों को रोजगार मुहैया करा रही है वह ख़ुद समाप्ति के तरफ़ अग्रसर हो जाएगी।

हस्तकला की ये खूबी रही है कि इसमें एक कलाकार अपने हाथों से कलाकृति का निर्माण करता है। हर एक कलाकृति अपने आप में अद्वितीय होती है। हस्तकला के डिज़ाइन, विम्बों आदि का प्रिंटिंग के माध्यम से व्यवसायीकरण इस क्षेत्र में काम कर रहे हज़ारों कलाकारों के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है। इससे ये कला अपने अनोखेपन को खोकर, मात्र व्यावसायिक वस्तु रह जाएगी। प्रशासन और सरकार के स्तर पर कलाकारों को बाजार से और मजबूती से जोड़ने, उत्सवों और महोत्सवों में स्थान देने, कलाग्राम के निर्माण जैसे पहल की जा रही है। इससे कलाकार अपने काम को ज़्यादा से ज्यादा लोगों के बीच में प्रस्तुत कर सकें। कई कलाकारों द्वारा प्रिंटिंग के नुकसान को लेकर चिंता व्यक्त की गई है, संबंधित विभागों को इससे अवगत कराया जाएगा।

-नीतीश कुमार, जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी, मधुबनी।

मधुबनी पेंटिंग में मशीनों के उपयोग से तो इसकी आत्मा ही मर जाएगी। मिथिला की महान संस्कृति में रची-बसी इस लोक कला को बचाने के लिए समाज को आगे आना ही होगा। मधुबनी की पहचान मधुबनी पेंटिंग से ही देश-विदेश में हैं। ऐसे में इस कला के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए समाज के हर वर्ग को आगे आना होगा।

-डॉ. मीनाक्षी कुमारी, राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित।

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