उर्दू के उत्थान में गैर मुस्लिम साहित्यकारों की भी भूमिका
मुंगेर में उर्दू फोरम की मासिक बैठक का आयोजन हुआ, जिसमें अध्यक्ष डॉ. एमएओ जौहर ने उर्दू साहित्य के विकास पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि उर्दू साहित्य में यथार्थवाद और सामाजिक चेतना का योगदान है। बैठक...

मुंगेर। उर्दू साहित्यिक संस्था उर्दू फोरम की मासिक बैठक फोरम के सदस्य हकीम फैय्याज हसन फ़ैज़ी के आवास पर दिलावरपुर में आयोजित की गई। बैठक की अध्यक्षता उर्दू फोरम के संयोजक सेवानिवृत्त प्रो. डॉ. एमएओ जौहर ने की।उन्होंने कहा के 20वीं शताब्दी के तीसरे दशक में प्रगतिवादियों के एक शक्ति के रूप में उभरने से, उर्दू साहित्य में उल्लेखनीय विकास हुआ। वे उर्दू शायरी में यथार्थवाद लाए ओर इसे एक नई व्यवस्था के लिए सामाजिक चेतना जगाने का माध्यम बनाया। अबू मोहम्मद ने कहा के उर्दू भाषा की उत्पत्ति और विकास भारतीय उपमहाद्वीप के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिवर्तनों से जुड़ी हुई है। यह एक मिश्रित भाषा है, जो मुख्य रूप से हिंदी और फारसी, अरबी, तुर्की भाषाओं के तत्वों से विकसित हुई है। डॉ शराफ़त हुसैन ने कहा के उर्दू केवल मुसलमानों की ज़बान नहीं बल्कि इसके उत्थान में गैर मुस्लिम साहित्यकारों की एक बहुत बड़ी भूमिका रही है क्यों के उर्दू की मिठास व इसकी तहजीब बरबस ही लोगों को अपनी ओर खिंचती है। बैठक में फोरम के सदस्य राइसुर रज़ा, अताउल् हक़, प्रो. मंसूर नियाज़ी, अहमद इरफ़ान, शाह नज्म अज़ीज़ नजमी, रखशां हाशमी, फर्रह शकेब, डॉ गजाली अनवर, हिलाल, मोहम्मद एजाज़ आदि मौजूद थे।
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