सरहद की रक्षा करने वालों के बच्चे मांग रहे मेडिकल-इंजीनियरिंग में आरक्षण
मुजफ्फरपुर में पूर्व सैनिकों ने अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता जताई है। उनका कहना है कि मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में आरक्षण की कमी के कारण उनके बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं...
मुजफ्फरपुर। तपती हुई रेत से लेकर बर्फीले पहाड़ पर, सागर की लहरों से लेकर घने बादलों के बीच से देश की निगहबानी कर चुके सैनिक आज बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं में कड़ी प्रतिस्पर्धा और भीड़ के बीच उनके बच्चे पीछे छूट रहे हैं। पूर्व सैनिकों और उनके बच्चों ने कई समस्याएं साझा कीं। इनका कहना था कि अगर मेडिकल, इंजीनियरिंग सहित व्यावसायिक परीक्षाओं में अन्य राज्यों की तरह पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षण का प्रावधान हो तो कॅरियर की राह की बड़ी बाधा दूर हो जाएगी। फी में रियायत सहित इनकी कई अपेक्षाएं हैं। इनका कहना है कि जिन्होंने पूरी जिंदगी सिर्फ देश की परवाह की, सरकार को आज उनके बच्चों की चिंता करनी चाहिए।
बिहार में पूर्व सैनिकों के बच्चों के लिए सरकारी और गैरसरकारी मेडिकल व इंजीनियरिंग कॉलेजों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। इससे उनके बच्चे चाहकर भी इस क्षेत्र में नहीं जा पा रहे हैं। सूबे में महज दर्जनभर सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेज सारे बच्चों के सपने पूरे नहीं कर पा रहे हैं। कठिनाइयां झेलते हुए राज्य से बाहर मेडिकल के क्षेत्र में सपने संवार रहे जिले के पूर्व सैनिकों के बच्चों ने कॅरियर की राह की कई बाधाओं के बारे में चर्चा की। पूरी जिंदगी सरहद की सुरक्षा में खपा देने वाले पूर्व सैनिकों और उनके बच्चों को राज्य में विशेष सुविधाएं नहीं होने का मलाल है। उम्मीद जतायी कि सरकार जल्द उनके लिए पहले करेगी।
मुजफ्फरपुर जिले में आठ हजार पूर्व सैनिक हैं। इनके बच्चों का कहना है कि उच्च शिक्षा या व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में दूसरे राज्यों की तरह आरक्षण नहीं होने से वे खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। इन्हें मेडिकल, इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की तैयारी कराने वाले संस्थानों में आमलोगों की तरह धक्के खाने पड़ते हैं। ऐसे में पूर्व सैनिकों को अपने बच्चों के भविष्य की चिंता सता रही है। इनका कहना है कि हर साल पूर्व सैनिकों के दर्जनों बच्चे मेडिकल में क्वालिफाई करते हैं, लेकिन सरकारी स्तर पर लाभ नहीं मिलने के कारण वे अच्छे कॉलेज में नामांकन लेने से वंचित रह जाते हैं।
पंजाब, यूपी व ओडिशा की तरह आरक्षण दे सरकार :
पूर्व वायु सैनिक नवीन कुमार मिश्रा, पंकज कुमार ठाकुर, अरविंद प्रसाद सिंह, प्रफुल्ल चंद्र ने बताया कि मुजफ्फरपुर में मेडिकल की तैयारी कर रहे इनके बच्चों को कई स्तरों पर समस्याओं से जूझना पड़ता है। विशेष सुविधा नहीं होने के कारण बिहार से बाहर जाकर पढ़ाई करनी पड़ती है, जहां रहनेे, भाषा, क्षेत्रवाद आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बताया कि जिले से तकरीबन हर साल दो दर्जन पूर्व सैनिकों के बच्चे नीट कम्प्लीट करते हैं। इनमें से कुछ को ही बेहतर कॉलेज मिल पाता है। उन्हें भी सामान छात्रों के साथ लंबी कतार में लगना पड़ता है। जबकि, पंजाब, उत्तर प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों में पूर्व सैनिकों के बच्चों का मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए अच्छी संख्या में सीटें उपलब्ध हैं। वे भी पहले अपने राज्यों के पूर्व सैनिकों के बच्चों को प्राथमिकता देते हैं। अगर उनसे सीट बच जाए तो बिहार या अन्य प्रदेशों के बच्चों को जगह मिल पाती है।
पढ़ाई के लिए कम ब्याज दर पर मिले बैंकों से ऋण :
पंकज ठाकुर, नवीन कुमार मिश्रा ने कहा कि हमलोगों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि महंगी पढ़ाई का खर्च सहजता से उठा सकें। मेडिकल की पढ़ाई पर 50 लाख से लेकर दो करोड़ से अधिक रुपए खर्च आते हैं। बैंकों से ऋण लेकर कॉलेजों की फीस भरनी पड़ती है। बैंक को लोन देने की प्रक्रिया और शर्तों को सरल करना चाहिए। कम समय में लोन की प्रक्रिया पूरी कर कम ब्याज दर पर अधिक से अधिक राशि दी जानी चाहिए।
सरकार दे कोचिंग की सुविधा :
पूर्व सैनिक अशोक प्रसाद सिंह ने कहा कि नीट क्वालिफाई करने के लिए बच्चों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। साथ ही बेहतर कोचिंग की भी सहायता लेनी पड़ती है। ऐसे में पूर्व सैनिकों के बच्चों को सरकारी स्तर पर कोचिंग की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर पूर्व सैनिकों को राहत मिल सके। उन्होंने कहा कि कोचिंग संस्थानों व निजी कॉलेजों की फीस पर भी सरकार को अंकुश लगाना चाहिए। यह फैसला मेधावी छात्रों के हक में होगा।
कॉलेजों में बढ़ाई जाए सीटें :
पूर्व सैनिकों ने कहा कि प्रतिभागी छात्रों की तुलना में मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस में 50 फीसदी सीट और बढ़ाने की जरूरत है। इससे अधिक छात्र एमबीबीएस में नामांकित होंगे। दूसरी ओर नीट की परीक्षा से असफल हुए बच्चे डिप्रेशन के शिकार नहीं होंगे। पूर्व सैनिक प्रफुल्ल चंद ने कहा कि सीटें कम हैं, जिससे अधिक से अधिक छात्र परीक्षा के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाते और वे अवसाद में आ जाते हैं। सीटें बढ़ने से उनके बच्चों को भी लाभ मिलेगा।
बोले जिम्मेदार :
अभी पूर्व सैनिकों के बच्चों के लिए मेडिकल और अन्य व्यावसायिक परीक्षाओं में आरक्षण का कोई प्रवाधान नहीं है। उत्तर प्रदेश, पंजाब जैसे कुछ राज्यों ने नीट क्वालिफाई के बाद सीटों में पूर्व सैनिकों को आरक्षण दिया है। मैं भी पूर्व सैनिकों के बच्चों के हित में इसे लेकर सैनिक कल्याण निदेशालय को पत्र लिखूंगा।
-विंग कमांडर यूके त्रिपाठी, जिला सैनिक कल्याण पदाधिकारी
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