रक्सौल-काठमांडू लिंक रेल लाइन का फाइनल लैंड सर्वे शुरू, एक साल में होगा पूरा
रक्सौल से काठमांडू तक नई रेल लाइन बिछाने की तैयारी अंतिम चरण में है। कोंकण रेलवे कॉपोरेशन लिमिटेड ने अंतिम जमीन सर्वे शुरू किया है। इस परियोजना से भारत-नेपाल के बीच व्यापार, पर्यटन और सांस्कृतिक संबंध...

मुजफ्फरपुर, सोमनाथ सत्योम। रक्सौल से नेपाल के काठमांडू तक नई रेल लाइन बिछाने की तैयारी अंतिम चरण में है। कोंकण रेलवे कॉपोरेशन लिमिटेड ने इसके लिए अंतिम जमीन सर्वे (एफएलएस) शुरू किया है। सर्वे का काम एक साल में पूरा होगा। रेलवे सर्वे पर 37 करोड़ रुपये खर्च करेगा। एफएलएस की रिपोर्ट के आधार पर रेल लाइन की डीपीआर तैयार होगी। फिर पटरी बिछाने को टेंडर की प्रक्रिया होगी। रक्सौल से काठमांडू के बीच 13 विभिन्न स्टेशन होंगे। दरअसल, वर्ष 2023 में रक्सौल-काठमांडू 136 किलोमीटर लिंक रेल लाइन सर्वे कराया गया था। तब इस परियोजना पर करीब 25 हजार करोड़ रुपए खर्च आने अनुमान लगाया गया था।
अब अंतिम डीपीआर तैयार होने पर प्रोजेक्ट वैल्यू थोड़ा बढ़ सकता है। इस परियोजना के पूरा होने पर नई दिल्ली से काठमांडू रेलमार्ग से जुड़ जाएगा। रेलमार्ग के लिए 2022 में शुरू हुई थी पहल : नई दिल्ली से काठमांडू को रेलमार्ग से जोड़ने की कवायद वर्ष 2022 में शुरू हुई थी। रेलवे बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक अंतिम सर्वे शुरू है। इसमें फिजिबिलिटी और जमीन की उपलब्धता देखी जा रही है। दिल्ली से रक्सौल तक पहले से रेलवे ट्रैक है। दिल्ली से काठमांडू को जोड़ने के लिए रक्सौल से काठमांडू तक 136 किमी नई लाइन बिछानी होगी। इसे लेकर पूर्व मध्य रेलवे के डिप्टी सीवीओ इंजीनियरिंग के सचिव मंटू कुमार ने रिपोर्ट जारी की है। रक्सौल नेपाल का सबसे नजदीकी स्टेशन : नई रेल लाइन बनने से नेपाल के साथ कारोबार बढ़ाने में भारत सड़क मार्ग के साथ रेलमार्ग का इस्तेमाल करेगा। नेपाल सीमा से सटा रक्सौल रेलवे स्टेशन सीधे दिल्ली से जुड़ा है। भारत को रक्सौल से काठमांडू तक महज 136 किमी नई रेल लाइन बनानी होगी। रक्सौल से काठमांडू की दूरी करीब 136 किमी है। सड़क मार्ग से इस दूरी को तय करने में 5 घंटे लगते हैं। रेल मार्ग तैयार होने पर यह दूरी दो-तीन घंटे में तय हो सकेगी। भारत-नेपाल रेल सेवा से बढ़ेगा पर्यटन : पासपोर्ट और वीजा की अनिवार्यता नहीं होने के कारण दोनों देशों के पर्यटकों का एक दूसरे के यहां आना-जाना लगा रहता है। नेपाल की जिन जगहों पर भारतीय पर्यटक पहुंचते हैं, उनमें प्रमुख रूप से पोखरा, काठमांडू, फेवा झील, गुप्तेश्वर गुफा, चंद्रागिरी हिल्स के अलावा एवरेस्ट बेस कैंप ट्रैक, अन्नपूर्णा बेस कैंप ट्रैक शामिल हैं। वहीं, नेपाल के पर्यटक भारत में वैशाली, केसरिया और राजगीर आते हैं। दोनों देशों के बीच रेल सेवा से पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी। धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध होंगे प्रगाढ़ : भारत की तरह नेपाल भी हिंदू बहुल देश है। भारतीयों के लिए नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर, मुक्तिनाथ मंदिर, भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी, जनकपुर और बागलुंग का कालिका मंदिर आस्था का केंद्र हैं, तो नेपाल के लोगों के लिए सीतामढ़ी, खगेश्वरनाथ मंदिर, देवघर स्थित बाबा धाम, थावे मंदिर, अम्बा मंदिर आस्था का केंद्र हैं। इसके अलावा नेपाल का सांस्कृतिक स्थल मंकी टेम्पल भारतीयों की पसंदीदा जगह रहे हैं। रेल सेवा से यह संबंध और मजबूत होगा। सुधर सकते हैं आर्थिक और सामरिक संबंध : रेल सेवा से नेपाल और भारत के बीच व्यापार बढ़ेगा। वर्तमान में सड़क मार्ग ही व्यापार का एकमात्र जरिया है, जिससे खर्च और समय ज्यादा लगता है। रेल सेवा से यह सुविधा बढ़ जाएगी और भारत से निर्यात होने वाले सामान सुगमता से नेपाल पहुंच पाएंगे। इससे आर्थिक संबंध मजबूत होंगे और नेपाल में चाइना की सक्रियता कम करने और उसके प्रभुत्व को चुनौती देने का काम भी इस रेल सेवा के माध्यम से किया जा सकेगा। राजनीतिक परिदृश्य पर पड़ेगा बड़ा असर : भारत-नेपाल के लिए नियमित रेल सेवा से राजनीतिक हालात बदलेंगे। नेपाल भारत का स्वाभाविक मित्र रहा है, लेकिन चीनी दखल के कारण आपसी विश्वास में थोड़ी कमी आई है। राजनीतिक संबंध में भी खाई पैदा हुई है। वर्तमान वैश्विक परिस्थिति में भारत और नेपाल दोनों को एक स्वाभाविक मित्र की जरूरत है, जो विश्व मंच पर एक दूसरे का समर्थन कर सकें।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।