Struggles of Former India Wagon Employees Unpaid Dues and Forced Retirement समझौते के तहत हो वेतन भुगतान, तो लौटे भारत वैगन कर्मियों के चेहरे की मुस्कान, Muzaffarpur Hindi News - Hindustan
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समझौते के तहत हो वेतन भुगतान, तो लौटे भारत वैगन कर्मियों के चेहरे की मुस्कान

भारत वैगन मुजफ्फरपुर के पूर्व कर्मचारियों ने कंपनी बंद होने के बाद अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में चिंता जताई है। कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें जबरदस्ती स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई है और उनका बकाया...

Newswrap हिन्दुस्तान, मुजफ्फरपुरTue, 15 April 2025 08:10 PM
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समझौते के तहत हो वेतन भुगतान, तो लौटे भारत वैगन कर्मियों के चेहरे की मुस्कान

मुजफ्फरपुर। जिस कंपनी की बेहतरी के लिए जवानी के 30 साल दिए, उसने बुढ़ापे में आज सड़क पर ला दिया है। यह पीड़ा है भारत वैगन मुजफ्फरपुर इकाई के कर्मचारी रहे करीब 300 लोगों की। इनका कहना है कि जिस समय हमलोगों को रोजगार की अत्यधिक जरूरत थी, उस समय ही जमा-जमाया रोजगार हाथ से छीन लिया गया। आरोप लगाया कि कर्मचारी कंपनी की वादाखिलाफी और जबरन स्वैच्छिक सेवानिवृत कराए जाने का दोहरा दंश झेलने को मजबूर हैं। आज हमलोग सेवांत पर मिलने वाले लाभ के लिए भी अदालती आदेश की बाट जोह रहे हैं। वेतन समझौते के अनुसार वीआरएस राशि का जल्द भुगतान हो तो हमलोग घर-परिवार चला सकें।

उत्तर बिहार को औद्योगिक हब के रूप में विकसित करने के लिए 60 के दशक में कार्ययोजना तैयार की गई थी। इस सपने को साकार करने के लिए 1962 में ब्रिटेनिया इंजीनियरिंग कंपनी ने निजी क्षेत्र में भारत वैगन के नाम से मुजफ्फरपुर और मोकामा में इकाई स्थापित की गई। शुरुआती वर्षों में दोनों इकाइयों में उत्पादन और उत्पाद की मांग के कारण इसका तेजी से विकास हुआ, लेकिन नई शताब्दी में प्रवेश के साथ ही इसके दुर्दिन शुरू हो गए। कभी 5000 कर्मचारियों और अधिकारियों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार देनेवाली कंपनी पर 2017 के अक्टूबर में ताला लग गया। इसके साथ ही उस समय काम कर रहे मुजफ्फरपुर और मोकामा इकाई के 570 कर्मचारियों के नसीब पर भी ताले पड़ गए। इनमें से अधिकतर ऐसे लोग थे, जिन्होंने अपनी जवानी के तीस साल कंपनी को समर्पित कर दिये थे, लेकिन कंपनी बंद होने और समझौते के अनुसार भुगतान नहीं होने से वे आज सड़कों पर आने को मजबूर हैं।

भारत वैगन वर्कर्स यूनियन के महासचिव सज्जन कुमार शर्मा, शिवजी प्रसाद शुक्ला, ओमप्रकाश सिंह कहते हैं कि कंपनी प्रबंधन ने जब बंदी की घोषणा की थी, उस समय यूनियन के साथ हुए समझौते को लागू करने से मुकर गई। नतीजतन हमारे पास कोर्ट जाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। आज आठ साल बीत चुके हैं, लेकिन कर्मचारियों को अपना हक पाने के लिए कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। हमारी सुध लेने वाला कोई नहीं है। न तो सही तरीके से स्वैच्छिक सेवानिवृति का लाभ दिया गया गया है और न ही पीएफ, ग्रेच्युटी आदि का भुगतान ही किया जा रहा है। हालत इतनी खराब हो चुकी है कि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई तक पर आफत आई हुई है।

न वेतन संशोधित किया और न अंतरिम राहत दी :

बालेंदु शर्मा, नरेन्द्र शर्मा, रामनंदन चौधरी ने बताया कि कारखाने में काम करने वाले कर्मचारियों व मजदूरों को 1992 से लंबित वेतन समझौते का लाभ दिया जाना था। आंदोलन दर आंदोलन के बाद 2007 में वेतन पुनरीक्षण कर वेतन भुगतान की बात कही गई थी। तब तक के लिए 35 प्रतिशत की दर से वेतन संशोधित करना और अंतरिम राहत देना था। लेकिन, 33 साल बीतने के बाद भी ना तो वेतन संशोधित किया गया और न अंतिरम राहत दी गई। इस बीच कंपनी को केंद्र सरकार ने बंद करने का निर्णय ले लिया। आरोप है कि इसके आलोक में कंपनी प्रबंधन ने कर्मचारियों को जबरदस्ती वीआरएस दिला दिया। इनमें बहुत सारे ऐसे लोग थे, जिनकी नौकरी 10 से 12 साल तक बची हुई थी। लेकिन, उनको भी वीआरएस नीति के नियम का उल्लंघन करते हुए डेढ़ या दो साल का ही वेतन दिया गया। कहा गया कि शेष राशि का भुगतान वेतन पुनरीक्षण होने के बाद किया जाएगा, जो आज तक नहीं हो पाया। इससे उन लोगों को भी आर्थिक नुकसान हुआ, जो 2010 से 2017 तक सेवानिवृत हुए। सेवानिवृति के दौरान मिलने वाले ग्रेच्युटी, पीएफ सहित अन्य लाभ अभी तक बकाया है। घर की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई है। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई सब चौपट हो रही है। कोई उम्मीद की किरण नहीं दिख रही है।

दुश्वारियां ये भी :

1. ऊंट के मुंह में जीरा जितनी मिल रही पेंशन

किशोर भगत, कृष्णदेव प्रसाद सिंह, सत्यनारायण राय आदि कर्मचारियों ने बताया कि वीआरएस लेने के बाद कंपनी द्वारा दी जा रही पेंशन उंट के मुंह में जीरा समान है। पेंशन की हालत यह है कि प्रबंधकीय पद से सेवानिवृत होनेवालों को भी अधिकतम 35 सौ रुपये मिल रहे हैं, जबकि कर्मचारियों को 12 सौ से लेकर 25 सौ रुपये पेंशन मिल रही है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि कर्मचारियों को अपने घर-परिवार का खर्च चलाने के लिए क्या-क्या जुगत करनी पड़ती होगी। कई लोग तो अब किसी दुकान में सेल्समैन का काम करने को मजबूर हैं, क्योंकि सरकार ने कंपनी बंद करने पर पुर्नवास की योजना नहीं बनाई।

2. पीएफ राशि निकालने को मांगते नजराना

राम हुलास राय, कृष्णनंदन पंडित, नरेन्द्र प्रसाद मिश्र कहते हैं कि सबसे बड़ी परेशानी पीएफ खाते से पैसों की निकासी को लेकर है। पीएफ कार्यालय में बिना पैसे लिए काम नहीं करते हैं। दो हजार से लेकर तीन हजार रुपये की मांग की जाती है। जिन्होंने दे दी, उनको भुगतान मिल गया, लेकिन उनके जैसे लोग आज भी पीएफ कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं। आठ साल होने को आ रहे हैं, लेकिन भुगतान के लिए दस्तावेज के नाम पर दौड़ाया जा रहा है। जब कंपनी ही बंद हो गई, तो दस्तावेज कहां से लाया जा सकता है। किस अधिकारी से हस्ताक्षर कराया जाए, यह समझ ही नहीं आ रहा है। यह हालत तब है, जबकि इसके भुगतान के लिए 2023 के जनवरी महीने में मुजफ्फरपुर डीएम के साथ एक बैठक हुई थी, जिसमें पीएफ आयुक्त ने 15 दिनों के भीतर सभी आवेदकों को उनके खातों में ब्याज सहित राशि भुगतान करने का आश्वासन दिया था। अभी भी 80 प्रतिशत लोगों का पीएफ भुगतान अटका हुआ है।

बोले जिम्मेदार :

कर्मचारियों के हक को लेकर करूंगा प्रयास :

भारत वैगन के कर्मचारी रहे लोगों के बकाए भुगतान का मामला चूंकि कोर्ट में लंबित है, इसलिए इस पर ज्यादा कुछ नहीं कह सकता हूं। उनकी बेहतरी के लिए केंद्र सरकार के संबंधित विभाग के अधिकारियों और मंत्री से चर्चा कर आउटऑफ कोर्ट सेटलमेंट कराने का प्रयास किया जाएगा। नि:संदेह कर्मचारियों से साथ नाइंसाफी हुई है। उनको हक दिलाने के लिए हर स्तर पर प्रयास करूंगा। जनप्रतिनिधि होने के नाते यह मेरी प्राथमिकता है।

-विजेंद्र चौधरी, नगर विधायक

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