बोले पटना : कमीशन और कर के बोझ से कैब चालकों की हालत पस्त
पटना के कैब और टैक्सी चालकों को ईंधन की बढ़ती कीमतों, करों और कंपनी के भारी कमीशन के कारण आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है। ड्राइवरों की मासिक आय केवल 20 से 25 हजार रुपये है, जिसमें से अधिकांश...
पटना के कैब और टैक्सी चालक ईंधन के बढ़ते खर्च, करों का बोझ और कंपनियों के भारी भरकम कमीशन की वजह से आर्थिक तंगी झेल रहे हैं। वे हर दिन दूसरों को मंजिलों तक पहुंचाते हैं, लेकिन खुद जीवन की राह तलाश रहे हैं। जिस कंपनी के प्लेटफॉर्म से जुड़कर वे काम करते हैं, वहां मेहनत के अनुरूप सुविधाएं नहीं हैं। चालकों का कहना है कि पटना में कैब कंपनियों का कोई कार्यालय भी नहीं है, जहां ये अपनी शिकायत कर सकें। ऑनलाइन शिकायत करने पर कोई सुनवाई नहीं होती है। वे इसी माहौल में काम करने को मजबूर हैं। वे चाहते हैं कि कंपनियां अपना स्थानीय कार्यालय खोले, जिससे चालकों के साथ-साथ ग्राहक भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकें।
आज ‘बोले पटना अभियान में पढ़ें कैब और टैक्सी चालकों की समस्याओं के बारे में। पटना की सड़कों पर दिन-रात दौड़ती टैक्सियां और कैब केवल सवारी ही नहीं ढोतीं, बल्कि वे चालकों की टूटी उम्मीदों, अधूरे ख्वाबों और आर्थिक तंगी का बोझ भी उठाती हैं। जो लोग दूसरों को उनकी मंजिल तक पहुंचाते हैं, उनके अपने रास्ते धुंधले होते जा रहे हैं। महंगाई की मार और ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी ने चालकों की कमर तोड़ दी है। ऊपर से टैक्स और एप कंपनियों का भारी कमीशन उनकी मेहनत की कमाई में सेंध लगाते हैं। कैब चालक बताते हैं कि जितना दिनभर कमाते हैं, उसका एक बड़ा हिस्सा टैक्स, किस्त और पेट्रोल-डीजल में चला जाता है। पहले इसमें कमाई थी। लेकिन दिन-प्रतिदिन बढ़ती महंगाई और प्रतिस्पर्धा के कारण अब इससे परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। कैब चालक और नेशनल कंपेन फॉर को-ऑपरेटिव इन प्लेटफार्म एंड इकोनॉमी के स्टेट प्रेसिडेंट शिव शंकर ने बताया कि पटना के चार हजार ड्राइवर प्रतिदिन दो सौ रुपये का भुगतान कैब कंपनियों को करते हैं। इसे कंपनी से जुड़ने को जरूरी भुगतान माना जाता है। प्रतिदिन कैब कंपनी को लाखों की कमाई होती है। लेकिन एक कैब ड्राइवर की मासिक कमाई मात्र 20 से 25 हजार की होती है। इतनी कमाई में उन्हें गाड़ी का ईएमआई भी भरना होता जो लगभग 10 से 12 हजार रुपये के आसपास होता है। इसके बाद शेष पैसे से परिवार चलाने में काफी दिक्कत होती है। कैब ड्राइवर मनोज कुमार ने बताया कि कंपनियों द्वारा पहले हमें कमाने की गारंटी दी जाती थी। एक दिन में दस राइड करने पर अलग से इंसेंटिव मिलता था। वह भी अब बंद कर दिया गया है। पिछले दिनों परिवहन नियमों के अनुसार कैब में पैनिक बटन लगाना पड़ा जिसके लिए दस हजार रुपये का भुगतान कंपनी को किया गया। कंपनियों के कैब में एसओएस (पैनिक बटन) रहता है। यह बटन कस्टमर और ड्राइवर दोनों के पास रहता है। अगर शिकायत करनी है तो इस बटन को दबाना होता है। लेकिन यह बटन काम नहीं करता। ऐसे में कस्टमर से भी रोज झिकझिक होती है। हर दिन अलग-अलग किराया तय करती है कंपनी कैब चालक राकेश राय ने बताया कि महीने में आठ से दस दिन ऐसा होता है जब 15 से 18 घंटे गाड़ी चलाते हैं। लेकिन आमदनी ज्यादा नहीं होती है। कंपनी की ओर से किराया भी तय नहीं है। कभी हाजीपुर जाने का भाड़ा एक हजार बताया जाता है तो कभी तीन सौ रुपये में ही कंपनी की ओर से जाने को कहा जाता है। कस्टमर को बुकिंग के समय जितना दिखाया जाता है, कस्टमर उतना ही पैसा देता है। हाजीपुर जाने के लिए अच्छा खासा इंधन खर्च होता है। पिछल कई महीनों से कंपनियों के बीच में प्रतिस्पर्धा हो गई है। इसका असर हम ड्राइवरों की कमाई पर पड़ता है। हर कंपनी चाहती है कि उनके एप से अधिक से अधिक बुकिंग हो। इससे भाड़ा कम करके दिखाती है। इससे गंतव्य तक पहुंचने पर किराया लेते समय ग्राहक से झिकझिक होती है। कैब चालकों की एक बड़ी समस्या सुरक्षा की भी है। अपराधी तत्व के लोग पहले बुकिंग करते हैं और रास्ते में गाड़ी भी छिन लेते हैं। आय दिन गाड़ी छिनने व चालकों के साथ मारपीट की भी घटनाएं होती हैं। चालक शिव शंकर ने बताया कि केवल 2024 में 15 से ज्यादा घटनाएं हुईं हैं जिसमें कैब चालकों के साथ मारपीट कर लूटपाट की गई है। बुकिंग रद्द होने पर नहीं मिलती चालकों को राशि कोरोना के समय वर्ष 2020 में बड़ी संख्या में प्रवासियों ने घर वापसी की। मुंबई, दिल्ली, दक्षिण भारत, गुजरात आदि जगहों से जैसे तैसे प्रवासी वापस आएं कि परिवार के साथ रहेंगे। वापस आने के बाद कर्ज लेकर गाड़ी खरीदी और कॉमर्शियल वाहन चलाने लगे। लेकिन अब ये कंपनी द्वारा यहां शोषण का शिकार होना पड़ता है। कैब चालक मिथिलेस कुमार ने बताया 2013 में मुंबई कमाने गया। वहां टैक्सी चलाकर परिवार का भरण पोषण करता था। लेकिन वर्ष 2020 में कोरोना काल के दौरान पटना वापस आ गया। इसके बाद मैने ईएमआई पर कार खरीदी और यहीं चलाने लगा। परिवार के बीच रहने का सुकून तो मिला लेकिन कंपनी तरह-तरह से परेशान करती है। बुकिंग के समय जो पैसा दिखाया जाता है वो कंपनी हमें नहीं देती। कस्टमर अगर बुकिंग कैंसिल करते हैं तो कस्टमर से तो कैंसिलेशन चार्ज ले लेती है। लेकिन कंपनी वो पैसे हमें नहीं देती है। जबकि कई बार कस्टमर के बुकिंग प्लेस पर पहुंचने बुकिंग कैंसिल कर दी जाती है। हमारे पेट्रोल भी खर्च होते हैं लेकिन उसका पैसा भी नहीं मिलता है। कई दिन तो पेट्रोल का भी खर्च नहीं निकल पाता है। बीमा का लाभ नहीं, इंधन में भी नौ नखरे : कंपनी हर सवारी पर छह फीसदी जीएसटी लेती है। इसके साथ ही हर सवारी पर 20 फीसदी इंश्योरेंस भी लेती है। लेकिन जब किसी ड्राइवर की मौत गाड़ी चलाते वक्त होती है तो संबंधित कंपनी कुछ नहीं करती है। हमें कोई इंश्योरेंस का लाभ नहीं मिलता है। इसके अलावा सीएनजी फ्यूल भराने में भी कैब ड्राइवर से अधिक पैसे वसूले जाते हैं। ड्राइवर इंद्रजीत कुमार ने बताया कि सीएनजी भराने के लिए हर बार हमें दस से 15 रुपये अतिरिक्त देने होते हैं। वहीं कई बार आठ किलो के सीएनजी सिलेंडर में कम फ्यूल डाला जाता है। इसकी शिकायत हमने गेल से की तो फ्यूल स्टेशन पर एक नोटिस चिपकाकर खानापूर्ति कर दी गई। शिकायतें 1. कैब और टैक्सी का दूरी के अनुसार किराया का निर्धारण नहीं है 2. कैब और टैक्सी में लगा चैट बोर्ड काम नहीं करता है, जिससे ड्राइवर व कस्टमर को परेशानी होती है 3. रात्रि भत्ता को बंद कर दिया गया है, जबकि पहले दस बजे रात के बाद गाड़ी चलाने पर कंपनी पैसे देती थी 4. सीएनजी फ्यूल स्टेशन की संख्या बहुत कम है, लंबी लाइन लगानी पड़ती है 5. कंपनियों का कार्यालय पटना में नहीं है, इससे शिकायत दर्ज करने का कोई प्लेटफार्म नहीं है सुझाव 1. कैब और टैक्सी का दूरी के आधार पर किराया तय किया जाये 2. कैब और टैक्सी का चैट बोर्ड ठीक हो, जिससे कस्टमर और ड्राइवर अपनी शिकायत दर्ज कर सकें 3. रात्रि भत्ता अगर शुरू होगा तो कस्टमर की सुविधा बढ़ेगी। इससे चालक भी रात में भी गाड़ी चलाएंगे 4. सीएनजी फ्यूल स्टेशन की संख्या को बढ़ाया जाये, इससे चालकों को समय की बचत होगी 5. कैब की हर कंपनी का कार्यालय पटना में बनाया जाये। जहां पर ड्राइवर और कस्टमर शिकायत दर्ज करा सकें जमीन हकीकत : कैब ने राजधानी के लोगों को कहीं आने-जाने का दिया बेहतर विकल्प पटना के लोगों के लिए कैब व टैक्सी लाइफलाइन बन चुकी है। कामकाजी हो या सामान्य लोग, परिवार के साथ राजधानी में एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए कैब की बुकिंग करते हैं। तुरंत अस्पताल पहुंचने की स्थिति में भी कैब की सुविधा से समय पर जरूरी उपचार मिल पाता है। वर्ष 2016 में सबसे पहले एक कंपनी ने पटना से इसकी शुरुआत की। मांग बढ़ने पर दो और कंपनियों ने सुविधा शुरू की। आज आठ हजार से अधिक कैब चालक और मालिक इससे जुड़े हैं। राजधानी में एक जगह से दूसरी जगह पर जाने के लिए ऑटो, रिक्शा या बस ही एक मात्र माध्यम रहा है। राजधानी पटना के बाहर निजी टैक्सी लेकर ही जाने का विकल्प था। कोरोना के बाद सैकड़ों की संख्या में प्रवासी जो अन्य राज्यों में ड्राइवर का काम कर रहे थे, वो वापस पटना में आकर गाड़ी चलाने लगे। इससे पटना में लगातार कैब की संख्या बढ़ने लगी। इसका असर है कि शहर की अच्छी खासी आबादी एक जगह से दूसरी जगह जाने को कैब पर भी निर्भर है। पटना के सैकड़ों कामकाजी कार्यालय आने-जाने के लिए कैब की सेवा ही लेते हैं। पटना स्टेशन, एयरपोर्ट से 30 से 35 फीसदी होती है बुकिंग : कैब की सुविधा राजधानी पटना से अन्य जिलों के लिए भी है। ऐेसे में पटना एयरपोर्ट, पटना जंक्शन, दानापुर जंक्शन आदि जगहों से लोग कैब को ऑनलाइन बुकिंग करते हैं। पिछले पांच साल की बात करें तो अन्य जिलों के 35 फीसदी लोग एयरपोर्ट से ऑनलाइन बुकिंग करके अपने शहर में जाते हैं। इससे उनका समय भी बचता है और वो जल्दी और आसानी से अपने शहर में पहुंच जाते हैं। जबकि पहले यह सुविधा नहीं होने से लेागों को बस स्टैंड या ट्रेन का इंतजार करना होता था।
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