मदर्स डे: कोरोना वॉरियर्स...मां तुझे सलाम
आज मदर्स डे है। कोरोना महामारी के बीच हजारों माताओं की जिम्मेदारियां भी बढ़ गई है। मां 24 घंटे ध्यान देने वाली सुरक्षा गार्ड है। कई ऐसी माताएं हैं जो अपने बच्चों के साथ ही दूसरों के बच्चों को भी...

आज मदर्स डे है। कोरोना महामारी के बीच हजारों माताओं की जिम्मेदारियां भी बढ़ गई है। मां 24 घंटे ध्यान देने वाली सुरक्षा गार्ड है। कई ऐसी माताएं हैं जो अपने बच्चों के साथ ही दूसरों के बच्चों को भी सुरक्षित रखने, स्वस्थ रखने के लिए बाहर निकल रही हैं। इस मुश्किल की घड़ी में वह अपने बच्चों को छोड़ना नहीं चाहती है, लेकिन कर्तव्य और देश के लाखों बच्चों को कोरोना से बचाने के लिए सड़क से लेकर अस्पताल तक में मुस्तैदी के साथ जुटी है। पढ़िये कुछ ऐसी माताओं की कहानी...।
मुझे करोड़ों मां के चेहरे पर मुस्कान लानी है : डॉ. संगीता
एनएमसीएच की डॉक्टर संगीता कहती हैं कि मेरी ड्यूटी एनएमसीएच अस्पताल में है। यह फिलहाल कोरोना अस्पताल भी है। कभी भी इमरजेंसी ड्यूटी लग जाती है और हमें अस्पताल में जाना पड़ जाता है। डॉक्टर हूं इसलिए अपने बच्चे को कम समय दे पाती हूं। मेरे दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। बेटी तीन साल की है और बेटा छह साल का। ऐसे में अस्पताल जाते और आते समय एहतियात रखना पड़ता है। सबसे अधिक खतरा मोबाइल से होता है। इसलिए अस्पताल से आने के साथ मैं अपने फ्लैट में नहीं जाती हूं। दूसरे फ्लैट में जाकर खुद को पूरी तरह सैनेटाइज करती हूं। खासकर मोबाइल को अधिक सैनेटाइज करना पड़ता है, क्योंकि जाते ही बच्चे मोबाइल ले लेते हैं और गेम खेलने लगते हैं। कोरोना के जद में बुजुर्ग से लेकर बच्चे तक आ रहे हैं। डॉ. संगीता बताती हैं एनएमसीएच के कोरोना वार्ड में अब तक कई बच्चे भर्ती हो चुके हैं। इसमें पॉजिटिव बच्चे की मां की रिपोर्ट निगेटिव रहती है। बच्चे वार्ड में भर्ती रहते हैं, लेकिन मां की ममता ऐसी कि वह वार्ड के बाहर से ही अपने बच्चे पर निगरानी रखती है। जोर से खांसने और या छींकने पर ही मां भागकर डॉक्टर के पास पहुंचती है। कोरोना संक्रमण की परवाह किये बगैर ऐसा समर्पण कौन दिखा सकता है। स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में भी कई गर्भवती महिलाएं आती हैं। उनकी खास देखभाल करनी पड़ती है।
बेटी देखकर रोने न लगे इसलिए सुलाकर जाती हूं
जधानी के र्बोंरग रोड चौराहे पर ट्रैफिक सिपाही भानू प्रिया मुस्तैदी के साथ ड्यूटी में लगी हैं। कोई भी बच्चा, युवा या युवती बिना मतलब के सड़क पर घूमते दिखते हैं तो उन्हें घर जाने को कहती हैं। नहीं मानने वाले को घर की राह दिखाती है। भानू प्रिया एक मां हैं। उनकी डेढ़ साल की बच्ची है। भानू बताती है कि एक मां के लिए बच्चे उनकी दुनिया होते हैं। बच्चे के लिए मां हर सितम सहती है। अभी घर में रहकर कोरोना से लड़ने का समय है। मैं अपनी डेढ़ साल की बच्ची को छोड़कर आ रही हूं, जबकि मेरे पति के सिवा कोई नहीं है। बच्ची के लिए केयर लीव ले सकती थी पर पहले ड्यूटी है। ड्यूटी से आने से पहले बेटी को सुलाकर आती हूं, ताकि वह आते वक्त देखकर रोने न लगे। घर के साथ ही सबसे पहले बाथरूम में जाकर नहाती हूं। सारे यूनिफॉर्म को धोने के बाद, पूरी तरह सेनेटाइज होकर ही बेटी के पास जाती हूं।
बेटी की सुरक्षा के लिए हरसंभव प्रयास करती हूं
जिला सहकारिता पदाधिकारी हूं। मुझे आईबीएफ के माध्यम मां बनने का सौभाग्य मिला। अभी मेरी बेटी पौने साल की है। मैं मां के साथ एक जिम्मेदार पदाधिकारी भी हूं। यह कहना है जिला सहकारिता पदाधिकारी लवली कुमारी का। वह बताती हैं कि अभी जिले में धान और गेहूं खरीद की प्रक्रिया चल रही है। इसमें पेंच है। इसको लेकर मुझे प्रखंडों का निरीक्षण करना पड़ता है। कभी सुबह के छह बजे भी निकलना पड़ता है और कभी दस बजे भी काम पर जाना पड़ता है। ऐसे में बेटी को पति के हवाले छोड़कर आना पड़ता है। यही नहीं जब कार्यालय में बैठती हूं तो बेटी साथ में आने की जिद्द करती है। एक मां के तौर पर छोड़ना बेटी को छोड़ना कितना मुश्किल होता है, बता नहीं सकती। लेकिन अभी कोरोना में किसानों की मदद करना अधिक जरूरी है। घर में बेटी के स्वास्थ्य से लेकर सुरक्षित रखने के लिए हर संभव प्रयास करती हूं।
जीवन की आधार है मां, खुशियों की संसार है मां...
जीवन की आधार है मां..कानपुर की श्रुति बंसल ने मदर्स डे की पूर्व संध्या पर मां को लेकर अपने जज्बातों को कुछ यूं बयां किया। वहीं श्वेतांगी झुनझुनवाला ने मां को लेकर अपनी बात कुछ इस तरह कही... मां और क्षमा दोनों एक। मदर्स डे की पूर्व संध्या पर शनिवार को बिहार अग्रवाल महिला सम्मेलन की ओर से आयोजित ऑनलाइन नारा (स्लोगन) और लघु कविता लेखन प्रतियोगिता में इन दोनों स्लोगन ने बाजी मारी है। सम्मेलन की ओर से शनिवार को आयोजित ऑनलाइन स्लोगन एवं कविता में करीब एक सौ से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। ऑनलाइन प्रतियोगिता होने के कारण पटना, दिल्ली, कानपुर, पुणे, गया, नोएडा, बरेली, लखनऊ आदि जगहों से भी लोगों ने भाग लिया। इसमें पांच साल से लेकर 69 साल की महिलाओं ने भाग लिया। सम्मेलन की अध्यक्ष डॉ. गीता जैन ने कहा कि लॉकडाउन में प्रतियोगिता ऑनलाइन करनी पड़ी है। आज के युग में लोगों में मां के प्रति वह आदर, प्यार, सम्मान नहीं रहा है जो पहले था। इसे बढ़ाने के लिए ही मदर्स डे का आयोजन किया जाता है। मां को धरती से भी बड़ा माना गया है। मां ही है जो हमारे जीवन का आधार है। मां की ममता का कर्ज कभी नहीं चुकाया जा सकता है।