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रूस और यूक्रेन ने दी जंग की नई तकनीक, कैसे ड्रोन वारफेयर बन रहा 'भविष्य का हथियार'

  • न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक रूस और यूक्रेन दोनों ही देशों की ओर से 70 से 80 फीसदी मामलों में ड्रोन का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार तीसरे साल में दोनों ने ही एक-दूसरे को पहले से ज्यादा नुकसान पहुंचाया और इसका माध्यम ड्रोन बने हैं।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, मॉस्कोThu, 6 March 2025 02:24 PM
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रूस और यूक्रेन ने दी जंग की नई तकनीक, कैसे ड्रोन वारफेयर बन रहा 'भविष्य का हथियार'

रूस और यूक्रेन के बीच फरवरी 2022 में जंग की शुरुआत हुई थी। यह जंग जब छिड़ी थी तो जमीनी हमले किए गए और इसके साथ ही वायुसेना ने भी एयरस्ट्राइक की थीं, लेकिन अब तीन सालों के अंतराल के बाद भी यह जंग तो खत्म नहीं हुई है, लेकिन इसका तरीका बदल चुका है। यह तरीका ड्रोन वारफेयर का है। बड़ी संख्या में जंग में अब ड्रोनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। रिमोट से संचालित ड्रोन ही अब दुश्मन देश के इलाके में हमला करने का माध्यम बन गए हैं। ऐसे में इस जंग से ईजाद हुई ड्रोन वारफेयर भविष्य के युद्धों का अहम हिस्सा बन जाए तो कुछ अचरज भी नहीं होगा। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक रूस और यूक्रेन दोनों ही देशों की ओर से 70 से 80 फीसदी मामलों में ड्रोन का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार तीसरे साल में दोनों ने ही एक-दूसरे को पहले से ज्यादा नुकसान पहुंचाया और इसका माध्यम ड्रोन बने हैं।

रिपोर्ट कहती है कि कुर्स्क समेत कई इलाकों में हर महीने करीब 1800 ड्रोन हमले हो रहे हैं। जंग के शुरुआती दिनों में तो यह आंकड़ों 200 के करीब ही था। इस तरह अब ड्रोन हमलों की संख्या 9 गुना अधिक हो चुकी है। अब तक इस जंग में 10 लाख सैनिकों के मारे जाने की जानकारी है। इन सैनिकों की अब तक मोर्टार, होवित्जर और टैक आदि के हमलों में ही मौत हुई है, लेकिन अब ड्रोन ही तमाम मिलिट्री हथियारों से ज्यादा विध्वंसक साबित हो रहे हैं। ड्रोन एक ऐसा हथियार है, जो कम दाम में ज्यादा असर करता है। ऐसे में भविष्य में यदि परंपरागत हथियारों का इस्तेमाल युद्ध में सीमित होता चला जाए तो हैरानी की कोई बात नहीं होगी।

दिलचस्प बात यह है कि कई बार ड्रोन खिलौनों के आकार के ही होते हैं, लेकिन दुश्मन के ठिकानों पर बम गिराकर उसे नेस्तनाबूद जरूर कर सकते हैं। दोनों ही तरफ से सैनिकों तक की कमी हो गई है। ऐसे में ड्रोन अब बिना जान के नुकसान के ही दूसरे पक्ष को बैकफुट पर धकेलने का दम रखते हैं। यहां तक कि इन पर लागत भी कम आती है। ऐसे कई ड्रोन हैं, जो इस्तेमाल हो रहे हैं, लेकिन उनकी कीमत काफी कम है। युद्ध में जहां लाखों डॉलर लगते हैं। वहीं ड्रोन्स का खर्च काफी कम है। अब सवाल यही है कि कुछ डॉलर्स में तैयार ड्रोन जंग के लिए बेहतर विकल्प है या फिर हजारों करोड़ के फाइटर जेट्स काम की चीज हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार ड्रोन्स की तकनीक में भी बदलाव हो रहे हैं। अब ऐसे ड्रोन भी तैयार किए जा रहे हैं, जो हवा में ही फाइटर जेट्स तक को मार गिराएं। इनकी खासियत यह है कि निशाना सटीक होता है और यदि ड्रोन को ही मार गिराया जाए तो होने वाला नुकसान भी काफी कम होता है। यूक्रेन ने तो कई ऐसे ड्रोन भी तैयार किए हैं, जो 700 मील दूर तक जाकर अटैक कर सकते हैं। वहीं कुछ ड्रोन ऐसे हैं, जो दुश्मन देशों पर सीधा बम गिरा सकते है। एक बार चार्ज करने के बाद ये घंटों तक उड़ सकते हैं। यही कारण है कि जंग की तकनीक ही अब शिफ्ट होकर ड्रोन वारफेयर की ओर बढ़ चली है।

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क्या भारत के लिए भी चिंता की बात है ड्रोन वारफेयर

ड्रोन वारफेयर भी एक नई चुनौती के रूप में बीते करीब दो वर्षों में उभरा है। भारत में भी जम्मू से लेकर पंजाब तक के क्षेत्र में पाकिस्तान से आने वाले ड्रोनों की संख्या तेजी से बढ़ी है। ड्रोन एक नई चुनौती हैं, जो जमीन पर निगरानी के बाद अब आसमान पर भी पैनी नजर बनाए रखने को विवश करते हैं। बिना किसी दुश्मन के एक डिवाइस कैसे पूरी सुरक्षा प्रणाली में सेंध लगा सकती है, इसका अध्ययन किया जाना जरूरी है। मेडिया बेंजामिन की पुस्तक 'ड्रोन वारफेयर: किलिंग बाय रिमोट कंट्रोल' में इसका विस्तार से जिक्र किया गया है। मेडिया बेंजामिन की यह पुस्तक ड्रोन वारफेयर पर अपनी तरह की पहली रचना है। बेंजामिन लिखती हैं कि ड्रोन वारफेयर असल में युद्धों की दुनिया में रोबोटिक्स की शुरुआत है।

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