ट्रंप के सपनों को पलीता लगाने पर तुले उनके ही दो यार, मिडिल-ईस्ट में क्यों नया मैदान-ए-जंग तैयार?
सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद के पतन के तीन महीने बाद ये दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है क्योंकि दोनों ही देश सीरिया पर कब्जा करने के इरादे से आगे बढ़ रहे हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दूसरा कार्यकाल संभालते ही वैश्विक शांति दूत बनने की अपनी इच्छा जगजाहिर कर चुके हैं। इसी कड़ी में वह गाजा में युद्ध विराम और हमास पर इजरायली बंधकों को छोड़ने का भारी दबाव बना रहे हैं। दूसरी तरफ रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए भी यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की पर भारी दबाव बनाए हुए हैं लेकिन इस बीच उनके दो खास करीबी दोस्त आपस में ही उलझते जा रहे हैं और ट्रंप के शांति दूत बनने के सपनों को चकनाचूक करने के रास्ते पर बढ़ते जा रहे हैं।
हम बात कर रहे हैं इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन की, जिनके बीच सीरिया को लेकर खतरनाक प्रतिद्वंद्विता बढ़ती जा रही है। ये दोनों देश अमेरिका के मित्र राष्ट्र हैं और उनके राष्ट्र प्रमुख ट्रंप के करीबी हैं। सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद के पतन के तीन महीने बाद ये दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है क्योंकि दोनों ही देश सीरिया पर कब्जा करने के इरादे से आगे बढ़ रहे हैं। इससे मिडिल-ईस्ट में एक और जंग की आहट महसूस होने लगी है।
गोलान हाइट्स से आगे बढ़ा इजरायल
हमास, हिज्बुल्लाह, हूती विद्रोहियों और ईरान समर्थित आतंकी संगठनों पर मिडिल-ईस्ट में बढ़त बनाकर उत्साहित नजर आ रहे इजरायल ने अब सीरिया में बशर-अल असद के पतन के बाद की अराजकता का फायदा उठाते हुए गोलान हाइट्स से आगे दक्षिणी भूमि के अधिक हिस्सों पर कब्जा कर लिया है और दुश्मनों से निपटने के लिए एक नया बफर जोन बना लिया है। इसके अलावा इजरायली रक्षा बलों ने भी सीरियाई सैन्य ठिकानों पर भी हवाई हमले तेज कर दिए हैं।
सीरियाई विपक्षी गुटों से संबंध प्रगाढ़ कर रहा तुर्की
उधर, तुर्की, जो एक प्रभावशाली क्षेत्रीय शक्ति है और अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो गठबंधन का सदस्य देश है, ने भी असद शासन के अंत के बाद सीरिया के उत्तरी इलाकों में अपनी मौजूदगी बढ़ा दी है। इसके अलावा सहयोगी ईरान और रूस की अनुपस्थिति में अपनी स्थिति को मजबूत कर तुर्की सीरियाई विपक्षी गुटों के साथ संबंधों को प्रगाढ़ कर रहा है। तुर्की ने हाल ही में सीरिया और इराक से कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) द्वारा चलाए जा रहे दशकों पुराने विद्रोह को दबाने के लिए भी युद्धविराम समझौता किया है।
राष्ट्रपति ट्रंप दोनों ही देशों के प्रमुखों यानी नेतन्याहू और एर्दोगन की तारीफ कर चुके हैं और उन्हें मिडिल-ईस्ट के बड़े सहयोगी के रूप में बता चुके हैं, बावजूद इसके दोनों नेता मिडिल-ईस्ट को फिर से एक युद्ध में झोंकने की तैयारी कर रहे हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ट्रंप ने बहुत जल्द इन दोनों मित्रों को नहीं समझाया-बुझाया तो इस क्षेत्र में फिर से नया टकराव देखने को मिल सकता है और हिंसा और अराजकता का दौर लौट सकता है।
सीरिया पर इजरायल और तुर्की क्यों आमने-सामने?
न्यूजवीक ने बार-इलान यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर और बिगिन-सादात सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक स्टडीज में वरिष्ठ अनुसंधान फेलो इफरात अवीव के हवाले से लिखा है कि किसी भी समय इजरायल और तुर्की के बीच टकराव हो सकता है। हालांकि अवीव ने कहा कि यह टकराव छोटे पैमाने पर हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इजरायल और तुर्की दोनों ही सीरिया को अपने-अपने हितों से जुड़ा हुआ मान रहे हैं क्योंकि दोनों ही देश की भौगोलिक स्थिति सीरिया से उन्हें निकट बनाती है।
सीरिया लंबे समय से गृहयुद्ध की आग में झुलस रहा है और यह ईरान समर्थित मिलिशिया का भी केंद्र रहा है। अवीव ने यह भी कहा है कि सीरिया में तुर्की के अरबों डॉलर के निवेश से इजरायल की भौंहें तनी हुई हैं। इसके अलावा भारी निवेश की वजह से सीरिया में तुर्की की सैन्य मौजूदगी भी बढ़ी हो, जो इजरायल के लिए टेंशन की बात है। तुर्की नहीं चाहता कि इजरायल गोलान हाइट से आगे बढ़े। अगर ऐसा होता है तो दोनों के बीच टकराव हो सकता है।
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