बोले हजारीबाग : नल सूखे, हताशा बढ़ी, मोहल्ले में मचा हाहाकार
हजारीबाग के नूरा मोहल्ले में पानी की कमी से लोग हर सुबह संघर्ष करते हैं। नगर निगम की सप्लाई अनियमित है, जिससे महिलाएं घंटों लाइन में लगती हैं। चापाकल भी सूख रहे हैं और निजी बोरिंग भी कभी-कभी काम नहीं...
जिस मुहल्ले के चारों ओर जिलाधिकारी का निवास हो, पुलिस लाइन हो और जहां भूतपूर्व सांसद का आवास भी हो, वहां पानी के लिए हर सुबह संघर्ष हो रहा हो, यह सुनना जितना आश्चर्यजनक है उतना ही कष्टदायक भी। यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि हजारीबाग के नूरा मोहल्ले की सच्चाई है। गर्मी के मौसम में यहां के निवासियों के लिए दिन की शुरुआत पानी के संघर्ष से होती है। बोले हजारीबाग कार्यक्रम के दौरान नूरा मोहल्ले के लोगों ने हिन्दुस्तान से अपनी पीड़ा साझा करते हुए जलसंकट से निजात दिलाने की मांग की। हजारीबाग। नगर निगम का सप्लाई पानी आना भी किसी लॉटरी जीतने जैसा है। पानी नियमित नहीं आता, बल्कि दिन में एक-दो बार कुछ घंटों के लिए सप्लाई दी जाती है। जब पानी आता है, तो लोग बाल्टी-बर्तन लेकर लाइन में लगते हैं। जो उस समय उपलब्ध हो सके, वही जीवन की गाड़ी खींचने के लिए काफी है। अगर सप्लाई के समय चूक गए, तो फिर इंतजार करना पड़ता है अगले अनिश्चित जल आगमन का।सप्लाई पानी न मिलने पर चापाकल ही एकमात्र सहारा बचता है। लेकिन चापाकलों पर भी भीषण भीड़ का नजारा आम बात है।
भीषण गर्मी में जब भूजल स्तर नीचे चला जाता है, तब कई चापाकल भी जवाब दे जाते हैं। ऐसे में जिनके घरों में निजी बोरिंग या कुएं हैं, वे कुछ राहत में रहते हैं, लेकिन मई-जून की भीषण गर्मी में कई बार बोरिंग भी फेल हो जाते हैं और तब उन लोगों को भी सार्वजनिक जल स्रोतों पर लाइन में लगना पड़ता है।
सुबह-सुबह पानी के लिए लगने वाली भीड़ में अक्सर महिलाओं के बीच झगड़े-गाली गलौज हो जाते हैं। स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि मोहल्ले से गुजरना भी कठिन हो जाता है। शहरी जीवन की यह विद्रूप तस्वीर देख कर समझना कठिन हो जाता है कि आखिर लोग गांव छोड़कर किस बेहतर जीवन की तलाश में शहर आते हैं। स्थिति तब और भयावह हो जाती है जब पानी की लड़ाई में पुरुष भी कूद पड़ते हैं। पड़ोस में रहने वाले लोग, जो एक-दूसरे के सुख-दुख में साझेदार होने चाहिए, पानी के लिए कट्टर विरोधी बन जाते हैं।
नूरा मोहल्ले में छड़वा डैम से जलापूर्ति की जाती है। हर वर्ष गर्मी आते ही पानी का संकट गहराता है, लेकिन आज तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकाला गया है। मई में छड़वा डैम का जलस्तर तेजी से घटने लगता है, जिससे सप्लाई और भी अनियमित हो जाती है।
छड़वा जल ट्रीटमेंट प्लांट वर्षों से बदहाल स्थिति में पड़ा है। मशीनें खराब हैं और संविदा आधारित कर्मचारियों के भरोसे ही शहर को जलापूर्ति की जा रही है। जब मशीनें ही ठीक नहीं, तो जल की गुणवत्ता सुनिश्चित करना एक बेमानी बात हो जाती है। बताया जाता है कि छड़वा डैम का पानी देखने में साफ हो सकता है, लेकिन पीने योग्य नहीं है। इसके बावजूद नूरा के निवासी इसी पानी के लिए रोजाना तकरार करते हैं।
नगर निगम की हालत यह है कि वह जल आपूर्ति के सुधार को लेकर पूरी तरह निष्क्रिय है, लेकिन पानी का बिल वसूलने में कोई कोताही नहीं करता। जब न नियमित जल आपूर्ति हो रही है और न ही पीने योग्य पानी मिल रहा है, तो फिर पानी के बिल वसूलने का औचित्य ही क्या है? नूरा के निवासियों की मांग है कि जब तक स्थायी समाधान नहीं निकले, नगर निगम को कम से कम टैंकरों के माध्यम से दिन में तीन बार पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए। इससे पानी के लिए हो रही रोजाना की मारामारी कुछ हद तक कम हो सकती है।
यदि नगर निगम और पीएचइडी विभाग समय रहते समन्वित प्रयास नहीं करते हैं, तो स्थिति और बिगड़ सकती है। अभी तक जो झड़पें हो रही हैं, वे किसी दिन बड़े हिंसक संघर्ष में भी बदल सकती हैं। मोहल्ले में पानी के लिए खूनी संघर्ष होना कोई असंभव बात नहीं लगती। जरूरत है कि प्रशासन इस विकराल समस्या को गंभीरता से ले। केवल कागजी योजनाओं से बात नहीं बनेगी, बल्कि जरूरी है कि छड़वा डैम के जलस्तर को बढ़ाने के उपाय किए जाएं, ट्रीटमेंट प्लांट को तत्काल दुरुस्त किया जाए और वैकल्पिक जल स्रोतों को भी सक्रिय किया जाए। साथ ही, नियमित जल परीक्षण कर पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित की जाए। पानी जीवन का आधार है और अगर एक शहरी मुहल्ला, जो प्रशासनिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, वहां जल संकट से जूझ रहा है, तो यह पूरे नगर व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिह्न है।
हर सुबह पानी के लिए करना पड़ता है संघर्ष
नूरा मुहल्ले की हालत चौंकाने वाली है। जिलाधिकारी आवास, पुलिस लाइन और भूतपूर्व सांसद के निवास जैसे प्रतिष्ठानों के बावजूद यहां पानी के लिए सुबह-सुबह संघर्ष होता है। नगर निगम के सप्लाई नल से अनियमित समय पर पानी आता है, जिससे लोगों को घंटों लाइन में लगना पड़ता है। यदि सप्लाई के समय पानी नहीं मिला, तो निरास होकर लौटना पड़ता है। गर्मी में भूजलस्तर नीचे चले जाने से चापाकल भी सूखने लगते हैं। ऐसे में निजी बोरिंग वाले भी संकट में आ जाते हैं। पानी के लिए हर सुबह हाहाकार मचता है। नियमित पानी की सप्लाई नहीं होने से लोगों को काफी परेशानी होती है।
टैंकर से तीन बार पानी उपलब्ध कराने की मांग
नूरा मोहल्ले के लोगों की मांग हैं कि जबतक जलसंकट का स्थायी समाधान नहीं निकाला जाता हे, जबतक नगर निगम टैंकर से दिन में तीन बार पानी उपलब्ध कराए। अगर प्रशासन ने समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए, तो पानी के लिए हिंसक संघर्ष भी हो सकता है। छड़वा डैम का संरक्षण, ट्रीटमेंट प्लांट की मरम्मत और वैकल्पिक जल स्रोत विकसित करना अत्यंत जरूरी हो गया है। पानी जीवन का आधार है और यदि शहर के महत्वपूर्ण मुहल्ले में जल संकट गहरा रहा है, तो यह पूरी शहरी व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिन्ह है। मोहल्लेवासियों ने गर्मी में लोगों पानी की किल्लत न हो इसकी व्यवस्था करने की मांग की है।
पानी के लिए अक्सर होती है लड़ाई
पानी के लिए लाइन में लगने के दौरान महिलाओं के बीच अक्गा रसली-गलौज और झगड़ा आम हो गया है। जब पानी की लड़ाई में पुरुष भी शामिल होते हैं तो संघर्ष हिंसक हो जाता है। कमजोर परिवारों को अक्सर अपमान और पिटाई झेलनी पड़ती है। पड़ोसियों के बीच रिश्ते बिगड़ जाते हैं। जो लोग एक-दूसरे के साथ त्योहार मनाते थे, वही अब पानी के लिए एक-दूसरे के दुश्मन बनते जा रहे हैं। शहर की यह दुर्दशा शहरीकरण की विफलता को उजागर करती है। मुहल्ले के लोगों ने कई बार स्थानीय जनप्रतिनिधियों को समस्याओं से अवगत कराया है लेकिन कोई उनकी सुध नहीं लेने आता हे।
वाटर ट्रीटमेंट प्लांट वर्षों से खराब
नूरा मुहल्ले में छड़वा डैम से जलापूर्ति की जाती है, लेकिन हर साल गर्मी में डैम का जलस्तर तेजी से गिर जाता है। छड़वा जल ट्रीटमेंट प्लांट वर्षों से खराब हालत में पड़ा है। संविदा आधारित कर्मचारियों के भरोसे जलापूर्ति हो रही है। मशीनों की खराबी के कारण पानी की गुणवत्ता भी संदिग्ध हो गई है। पेयजल के योग्य पानी की कोई गारंटी नहीं है। छड़वा स्थित वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की जल्द मरम्मत कराने की जरूरत है, जिससे यहां के लोगों को पानी के भटकना नहीं पड़ेगा और रोजाना की लड़ाई भी लोगों को मुक्ति मिलेगी।
समस्याएं
1. नगर निगम का पानी कब आएगा, इसका कोई निश्चित समय नहीं होता।
2. छड़वा डैम का पानी दिखने में साफ है, लेकिन स्वास्थ्य मानकों पर खरा नहीं उतरता।
3. पानी भरने के दौरान महिलाओं में गाली-गलौज और मारपीट आम बात बन चुकी है।
4. जल शुद्धिकरण संयंत्र कई वर्षों से खराब पड़ा है, प्रशासन की ओर से पहल नहीं हो रही।
5. भूजल गिरने से चापाकल भी कम पानी दे रहे हैं, जिससे संकट और गंभीर हो गया है।
सुझाव
1. जब तक स्थायी समाधान नहीं निकले, नूरा में दिन में कम से कम तीन बार टैंकर भेजा जाए।
2. वर्षा जल संचयन और जल स्रोत पुनर्जीवन कार्य तत्काल शुरू किया जाए।
3. छड़वा जल शुद्धिकरण संयंत्र की मरम्मत कर जल्द साफ पानी आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।
4. घर और सरकारी भवन में वर्षा जल संचयन कर भूजल स्तर को सुधारने के प्रयास हों।
5. बनी समिति जल गुणवत्ता, आपूर्ति समय और वितरण व्यवस्था की निगरानी करे।
इनकी भी सुनिए
नूरा में पानी की समस्या के समाधान के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। क्षेत्र में चापाकल (हैंडपंप) लगाने की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी। इसके साथ ही, शहरी जलापूर्ति योजना के कार्य को भी शीघ्र पूर्ण कराने का प्रयास किया जा रहा है।
- अनिल पांडेय, सहायक नगर आयुक्त, नगर निगम हजारीबाग
नूरा में घरों में वॉटर कनेक्शन करवा दिया गया है। अभी पानी की दिक्कत जरूर है इसके लिए भी प्रयास किया जा रहा है। जितना भी पानी आता है सभी तक देने की कोशिश की जाती है। शहरी जिला पूर्ति योजना शुरू होने के बाद सुचारू रूप से पानी मिल पाएगा।
-विजय प्रसाद, पूर्व वार्ड पार्षद वार्ड 3
महिलाओं ने कहा- जल संकट से जल्द मिले निजात
हम रोज सुबह पांच बजे से लाइन में लगते हैं। दो बाल्टी पानी के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। लड़ाई-झगड़ा भी होता है। कई बार हमलोगों को बिना पानी लौटना पड़ता है।
-बहारूल खातून
चापाकल से भी अब पानी कम आ रहा है। हर दिन लड़ाई देखकर दुख होता है। घंटों इंतजार करने के बाद भी पानी न आने से निराश होकर घर वापस आना पड़ता है।
-चिंता देवी
हर दिन पानी की लड़ाई होती है। मोहल्ले में माहौल बहुत खराब हो जाता है। पहले हम सब मिलकर रहते थे, अब पानी ने दुश्मन बना दिया है। कोई जवाब देने वाला नहीं है।
-शोभा देवी
अगर किसी दिन समय पर पानी नहीं मिल पाता है तो दिन भर पीने की पानी का संकट बना रहता है। बच्चों और घर के लोग जो बाहर जाते हैं उन्हें परेशानी होती है।
-रुकमणी देवी
पानी के लिए सुबह-सुबह भाग दौड़ करनी पड़ती है। अगर जरा देर से पहुंचे तो बर्तन खाली रह जाते हैं। पानी नहीं मिलता तो घर का कामकाज भी पूरा नहीं हो पाता।
-सावित्री देवी
कभी-कभी से लेकर 7 बज जाता है और पानी नहीं आता। कुछ मिनट पानी के सप्लाई से अपनी बर्तन भरने वाली महिलाएं हफ्ते में दो-तीन दिन पानी लिए वापस आती है।
-नूरजहां खातून
पानी के झगड़े ने मोहल्ले में भाईचारा खत्म कर दिया है। पहले सब मिलजुल कर रहते थे, कई बार शिकायत की, पर न सुनवाई होती है न समाधान निकलता है।
-अंजू देवी
हमें दो-दो घंटे कतार में खड़े रहना पड़ता है। बच्चे और बुजुर्ग परेशान हो जाते हैं। प्रशासन अगर समय पर टैंकर भेज दे या नियमित पानी दे तो स्थिति सुधर सकती है।
-नशबुल
छड़वा डैम से आने वाला पानी बहुत स्वच्छ नहीं होता है। नगर निगम से मांग है कि हमारे घरों तक जो पाइप पहुंचाया गया है उसमें पानी की सप्लाई जल्द शुरू की जाए।
-राबिया खातून
गर्मी में हालात और बिगड़ रहे हैं। नगर निगम पानी नहीं दे सकता तो कम से कम टैंकर से समय पर पानी दे दे। पानी के लिए भीख मांगनी पड़ती है, बहुत अपमानजनक लगता है।
-अख्तर खातून
हमारे घर में छोटे बच्चे हैं। पानी के बिना उनका देखभाल करना बहुत मुश्किल हो गया है। जब पानी आता है तब भीड़ में झड़प होती है। कई बार बाल्टी भी टूट जाती है।
-सरवर जहान
नूरा मोहल्ले में रोज पानी के लिए जंग लड़नी पड़ती है। नल में पानी आता है या नहीं, किस्मत पर निर्भर है। प्रशासन का कोई जवाबदेह अधिकारी कभी देखने नहीं आता।
-जहां आरा
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