वन आवरण में 0.05 फीसदी की वृद्धि, भूजल का दोहन बढ़ा
झारखंड में विश्व पृथ्वी दिवस-2025 'हमारी शक्ति, हमारा ग्रह' थीम पर मनाया गया। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के दुरुपयोग का सामना करने के लिए जागरुकता फैलाने की आवश्यकता है। हाल की रिपोर्ट के अनुसार,...

रांची, संवाददाता। विश्व पृथ्वी दिवस-2025 ‘हमारी शक्ति, हमारा ग्रह थीम पर मनाया जा रहा है। यह थीम जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के दुरुपयोग से निपटने के साथ पर्यावरण के लिए जागरुकता फैलाने पर आधारित है। भारत की पर्यावरणीय स्थिति को लेकर हाल ही में जारी इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट-2023 के मुताबिक झारखंड में बीते दो साल में वन आवरण में 0.05 फीसदी की मामूली बढ़त दर्ज की गई है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 29.76 फीसदी वन आवरण था, जो 0.05 फीसदी बढ़कर अब 29.81 प्रतिशत हो गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन, अंधाधुंध शहरीकरण और औद्योगिक विस्तार के कारण वन क्षेत्र पर दबाव लगातार बढ़ रहा है। इससे न केवल जैव विविधता पर असर पड़ रहा है, बल्कि यह स्थिति पर्यावरणीय संतुलन को भी बिगाड़ रही है। वहीं, दूसरी ओर राज्य में भू-जल स्तर की स्थिति और भी अधिक चिंताजनक होती जा रही है। केंद्रीय भूलजल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ एक साल के भीतर राज्य में भू-जल के दोहन में 0.35 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं, कई जिलों में भूजल का जलस्तर खतरनाक रूप से नीचे जा रहा है, जिससे किसान और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है।
जल स्त्रोतों के संरक्षण पर भी नहीं है ध्यान
रांची में जल स्त्रोत उपेक्षा के शिकार हैं। हरमू नदी नाले में तब्दील हो चुकी है। सिवरेज का गंदा पानी बहने से इसका पानी बदबूदार हो चुका है। वहीं, स्वर्णरेखा नदी का जल भी प्रदूषित हो चुका है। इसके अलावा वर्षों पहले तक कोकर डिस्टलरी तालाब में साफ पानी बहा करता था। यह आज सिवरेज का गंदा पानी और मीट-मछली के अवशेष फेंके जाने से पूरी तरह से दूषित हो चुका है। यही हाल बड़ा तालाब और शहर के अन्य तालाबों का है।
धड़ल्ले से सिंगल यूज प्लास्टिक का हो रहा इस्तेमाल
सिंगल यूज प्लास्टिक का अत्याधिक उपयोग राज्य में प्रदूषण की एक बड़ी वजह है। सरकार द्वारा सिंगल यूज प्लास्टिक पर पाबंदी के दावों के बावजूद बाजारों, होटलों और छोटे दुकानदारों द्वारा इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे न केवल पर्यावरण, बल्कि पशु-पक्षियों और मानव स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समय रहते प्रभावशाली कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में राज्य को गहरे पर्यावरणीय संकट का सामना करना पड़ सकता है।
घने जंगलों में हुआ सुधार
झारखंड के वन क्षेत्र में धीरे-धीरे सुधार देखने को मिल रहा है। वर्ष 2021 में जहां राज्य का कुल वन क्षेत्र 23,721.14 वर्ग किलोमीटर था, वहीं 2023 में यह बढ़कर 23,765.78 वर्ग किलोमीटर हो गया है। वर्ष 2021 में राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 29.76 फीसदी कवर करता था। पर 0.05 फीसदी बढ़कर यह 29.81 प्रतिशत हो गया है। हालांकि, पड़ोसी राज्यों की तुलना में झारखंड की यह वृद्धि थोड़ी धीमी मानी जा रही है। पश्चिम बंगाल में मात्र 0.46 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि छत्तीसगढ़ में 95.15 वर्ग किलोमीटर, ओडिशा में 277.61 वर्ग किलोमीटर और बिहार में 151.66 वर्ग किलोमीटर का वन क्षेत्र बढ़ा है।
वन रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में बहुत घने जंगल के क्षेत्र में 34.3 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है, जो सकारात्मक संकेत है। हालांकि, मध्यम घनत्व वाले जंगल के क्षेत्र में 47.92 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है। दूसरी ओर, खुले जंगलों के क्षेत्र में 58.26 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि वन क्षेत्र में यह बदलाव संरक्षण और वनीकरण प्रयासों का परिणाम हो सकता है, लेकिन मध्यम घनत्व वाले जंगलों में आई कमी चिंता का विषय है, जिस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
झारखंड में सामान्य से भी कम बारिश
केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में वर्ष 2023 में 73.91 फीसदी भूल-जल की निकासी की गई थी। वर्ष 2024 में यह 0.35 फीसदी बढ़कर 74.26 फीसदी हो गया। इसके अलावा इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2023 की वार्षिक वर्षा की सामान्य वर्षा से तुलना करने पर पता चला कि 20 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों में सामान्य से कम वर्षा हुई। इसमें अरूणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, यूपी, जम्मू और कश्मीर, ओडिशा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, पुडुचेरी, कर्नाटक, केरल और लक्षद्वीप शामिल हैं।
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