खाना पकाने के लिए न करें इन 3 कुकिंग ऑयल का यूज, बढ़ सकता है ब्रेस्ट कैंसर का खतरा
Oils To Avoid For Cooking: हमारी दुनिया में हम से जुड़ी क्या खबरें हैं? हमारे लिए उपयोगी कौन-सी खबर है? किसने अपनी उपलब्धि से हमारा सिर गर्व से ऊंचा उठा दिया? ऐसी तमाम जानकारियां हर सप्ताह आपसे यहां साझा करेंगी, जयंती रंगनाथन

न्यूयॉर्क के वील कॉर्नेल मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन के मुताबिक खाने के कुछ तेलों में लिनोलिक एसिड की मात्रा अधिक होती है, जो स्तन कैंसर की कोशिकाओं में वृद्धि के कारक हो सकते हैं। इस तेल का अधिक सेवन करने के बाद चूहों में कैंसर के गांठ पाए गए और उनकी वृद्धि भी अपेक्षाकृत तेज रही। इस अध्ययन में शामिल कैंसर विशेषज्ञ प्रोफेसर जस्टिन स्टेबिंग ने बताया, ‘कई बीज से उत्पन्न तेल जैसे सोयाबीन, सूरजमुखी और कॉर्न में लिनोलिक अम्ल की मात्रा अधिक होती है। इन तेलों का नियमित और अधिक सेवन करने पर कैंसर के कारक में बढ़ोतरी देखी गई।’ डेली मेल में प्रकाशित इस खबर के मुताबिक ऑलिव और सरसों के तेल में इस एसिड की मात्रा कम होती है। इस समय दुनिया भर में खाने के तेल को लेकर तरह-तरह के अध्ययन चल रहे हैं। अब तक के अध्ययन में तेल के ज्यादा सेवन की वजह से जीवनशैली से संबंधित बीमारियों पर अधिक तवज्जो दिया गया। हमारे देश में भी हाल ही में प्रधानमंत्री ने आगाज किया कि खाने में तेल की मात्रा कम होनी चाहिए। तेल से जुड़ी बीमारियों के संकट को देखते हुए हमें अपनी जड़ों की तरफ जाना चाहिए। हमारी दादी-नानी अपने खाने में तेल और घी का जैसा इस्तेमाल करती थीं, सेहत के लिए सबसे सही वही रहता है। चाहे बात देसी घी की हो या सरसों या नारियल तेल की, कम मात्रा में प्रयोग से शरीर स्वस्थ रहता है।
वजन घटाने की दवा से हो सकती है यह दिक्कत
पिछले साल भर से मोटापे को कम करने के लिए ओजेम्पिक की दुनिया भर में चर्चा हो रही है। हॉलीवुड के नामी सितारों के साथ-साथ बॉलीवुड के भी कई चर्चित चेहरों के बारे में कहा जा रहा है कि ओजेम्पिक की वजह से उनका वजन जादुई तरीके से कम हुआ है। न्यूयॉर्क के सर्जन डॉक्टर बैनी वीनट्रॉब हालिया शोध के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि इससे वजन तो कम होता है, लेकिन इसके तमाम साइड इफेक्ट भी होते हैं। इसकी वजह से पैरों में शिथिलता आ जाती है और कुछ समय बाद चाल में लड़खड़ाहट आने लगती है।
गोलियां का कम असर क्यों?
नेशनल ज्योग्राफ्रिक में प्रकाशित एक खबर के अनुसार पेन किलर दवाइयों के असर को लेकर किए गए एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ कि ये दवाएं महिलाओं पर पुरुषों के मुकाबले 7.5 प्रतिशत कम असर करती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि महिलाओं में दिमाग की इम्यून कोशिकाएं ज्यादा सक्रिय होती हैं, जो दर्द महसूस कराने में मदद करती हैं। इसके अलावा महिलाओं के शरीर में हार्मोन ज्यादा भूमिका अदा करता है और उनके शरीर का मेटाबॉलिज्म, वजन और हार्मोन के स्तर भी अलग होने के कारण गोलियों का असर भी अलग होता है। अध्ययन में यह बात भी समाने आई कि महिलाओं में दर्द को नियंत्रित करने वाले प्रोटीन भी कम होते हैं। इसलिए नॉन स्टेरायड दवाइयों का असर पुरुषों की तुलना में कम प्रभावी हो सकता है।
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