बहुत जरूरी है विटामिन-डी , ये लक्षण दिखें तो हो जाएं सतर्क vitamin d deficiency in women know its importance cause foods, हेल्थ टिप्स - Hindustan
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बहुत जरूरी है विटामिन-डी , ये लक्षण दिखें तो हो जाएं सतर्क

  • हाल में हुए अध्ययन के मुताबिक 90 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय महिलाएं विटामिन-डी की कमी से जूझ रही हैं। सेहतमंद जिंदगी के लिए यह विटामिन क्यों है जरूरी और कैसे इसकी कमी से बचें, बता रही हैं शमीम खान

Kajal Sharma हिन्दुस्तानFri, 21 Feb 2025 04:26 PM
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बहुत जरूरी है विटामिन-डी , ये लक्षण दिखें तो हो जाएं सतर्क

कभी कमर दर्द, तो कभी घुटने में दर्द। कभी थकान हावी, तो कभी रात भर की नींद के बाद भी अकड़ी हुई पीठ। अधिकांश भारतीय महिलाओं की यही कहानी है और ये सब लक्षण हैं, उनके शरीर में विटामिन-डी की कमी के। 2017 में टूरो यूनिवर्सिटी में हुए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि वैश्विक आबादी का एक बड़ा हिस्सा विटामिन-डी की कमी से जूझ रहा है क्योंकि लोगों ने घर के बाहर समय बिताना बंद कर दिया है। सनस्क्रीन का अत्यधिक इस्तेमाल इस समस्या को और गंभीर बना रहा है। एसौचैम द्वारा किए अध्ययन के अनुसार 90 प्रतिशत भारतीय महिलाएं न तो सूरज की रोशनी में पर्याप्त वक्त बिताती हैं और न ही पर्याप्त मात्रा में विटामिन-डी का सेवन करती हैं। कई अध्ययनों में यह बात भी सामने आई है कि रक्त में विटामिन-डी के स्तर के अत्यधिक कम होने से हड्डियों के क्षतिग्रस्त होने और डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है।

क्यों जरूरी है विटामिन-डी

विटामिन-डी हमारे शरीर में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाता है। यह कैल्शियम के स्तर को नियंत्रित करता है, जो तंत्रिका तंत्र की कार्य प्रणाली और हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और रक्तचाप को नियंत्रित रखता है। विटामिन-डी के पांच रूप होते हैं: डी1, डी2, डी3, डी4, डी5। मानव शरीर के लिए विटामिन-डी2 और डी3 सबसे महत्वपूर्ण होते हैं, इन्हें संयुक्त रूप से कैल्सिफेरॉल कहा जाता है। महिलाओं में विटामिन-डी की कमी एक वैश्विक समस्या है, लेकिन भारतीय महिलाओं में यह समस्या अधिक गंभीर है। इसके लिए निम्न कारण जिम्मेदार हैं:

सूरज से दूरी

अधिकांश भारतीय महिलाओं का पारंपरिक पहनावा ऐसा है, जिसमें पूरा शरीर ढका रहता है। इससे सूरज की रोशनी एपिडर्मिस तक पहुंच नहीं पाती है, जो विटामिन-डी के निर्माण के लिए जरूरी है। शहरी महिलाओं की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। बाहर समय बिताने के बावजूद वायु प्रदूषण और स्मॉग भी धूप को लोगों तक नहीं पहुंचने देता। नाइट शिफ्ट में काम करने से शरीर का प्राकृतिक बॉडी क्लॉक बिगड़ी है, जिससे मेलाटोनिन का स्तर प्रभावित होता है, जो विटामिन-डी को सक्रिय करने में अहम भूमिका निभाता है।

पारंपरिक खानपान

पारंपरिक खानपान भी हमारे देश में महिलाओं में विटामिन-डी की कमी का एक प्रमुख कारण है। शाकाहारी होने के कारण विटामिन-डी से भरपूर खाद्य पदार्थों फैटी फिश, सी-फूड्स और अंडे का सेवन बहुत कम किया जाता है। अधिकांश परिवार में दालों और फलियों का सेवन अधिक किया जाता है, जिनमें विटामिन-डी बिल्कुल नहीं होता है। वसायुक्त दूध में विटामिन-डी अधिक होता है, लेकिन हमारे यहां कम वसा वाला या वसा रहित दूध का सेवन किया जाता है। चावल और रोटी का अधिक मात्रा में सेवन भी विटामिन-डी को सोखने की शरीर की क्षमता को प्रभावित करता है।

अनुवांशिक कारक

अनुसंधानों के अनुसार हमारे जीन्स मेटाबॉलिज्म और विटामिन-डी के कार्य को प्रभावित करते हैं। कई भारतीयों में ऐसे जेनेटिक वेरिएंट्स हैं, जो शरीर में विटामिन-डी के इस्तेमाल में बाधा डालते हैं। ऐसे लोगों में पर्याप्त पोषण लेने व सूरज की रोशनी में वक्त बिताने के बावजूद विटामिन-डी कम होता है।

इनसे बढ़ता है खतरा

कई अन्य कारक भी विटामिन-डी की कमी का कारण बन सकते हैं और इन्हें पहचानना बहुत महत्वपूर्ण है:

गर्भावस्था और स्तनपान: गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान गर्भस्थ शिशु की हड्डियों के विकास के लिए विटामिन-डी की आवश्यकता काफी बढ़ जाती है। पर, आहार में विटामिन-डी युक्त खाद्य पदार्थों की कमी के कारण इसकी आपूर्ति नहीं हो पाती है। कुछ समुदायों में सामाजिक परंपराओं के कारण गर्भवती महिलाओं को घर से ज्यादा बाहर नहीं निकलने दिया जाता, इससे उन्हें सूरज की शक्ति नहीं मिल पाती।

उम्र का असर: मेनोपॉज के बाद महिलाओं में अकसर विटामिन-डी की कमी हो जाती है। उम्र के साथ सूरज के साथ की कमी, खानपान की आदतों में बदलाव और धूप सेंकने के बाद भी एपिडर्मिस द्वारा विटामिन-डी का शोषण न कर पाना इसके प्रमुख कारण हैं।

मोटापा: जिन महिलाओं का वजन अधिक होता है, उनके रक्त में विटामिन-डी का स्तर कम होता है। विटामिन-डी फैट सॉल्युबल (वसा में घुलनशील) होता है, इसका अर्थ है यह शरीर की वसा कोशिकाओं में इकट्ठा हो जाता है और शरीर को इस्तेमाल करने के लिए उपलब्ध नहीं होता है। वसा कोशिकाओं में इकट्ठा विटामिन-डी को सक्रिय रूप में बदलना कठिन होता है।

ठीक से अवशोषित न होना: भारतीय बड़ी संख्या में लैक्टोज इंटालरेंस और इनफ्लामेट्री बॉउल डिसीज (आईबीएस) जैसी बीमारियों से पीड़ित हैं। ये भोजन से विटामिन-डी के अवशोषण में रुकावट बनते हैं।

तो सतर्क हो जाएं

• मांसपेशियों की कमजोरी • जोड़ो में दर्द • मार्निंग सिकनेस • कमजोरी और थकान • हमेशा चिंतित और दुखी रहना • मूड स्विंग और अवसाद

कैसे उबरें इस कमी से

खानपान में बदलाव लाएं। वसा युक्त मछलियां और अंडे के पीले भाग में विटामिन-डी होता है। मशरूम व विटामिन-डी से फोर्टिफाइड दूध, दही, पनीर आदि का नियमित रूप से सेवन करें।

विटामिन-डी का सबसे अच्छा स्त्रोत सूर्य की किरणें हैं। त्वचा का रंग हल्का है तो गर्मियों में आप सप्ताह में 4-5 दिन 10-15 मिनट धूप में बैठें, त्वचा का रंग गहरा है तो तो 30-40 मिनट बैठें। सर्दियों में यह समय दोगुना कर दें। जब भी धूप में बैठें, शरीर का 40 प्रतिशत हिस्सा खुला होना चाहिए, क्योंकि विटामिन-डी का निर्माण तभी होता है जब सूरज की किरणें त्वचा के सीधे संपर्क में आती हैं। इस दौरान सनस्क्रीन न लगाएं, क्योंकि ये विटामिन-डी के अवशोषण में रूकावट डालता है। धूप में बैठने के लिए सुबह 7-10 बजे तक का समय सबसे अच्छा माना जाता है, क्योंकि इस समय सूरज की किरणें तिरछी होती हैं, लेकिन अगर आपमें विटामिन-डी की बहुत अधिक कमी है तो आप 11-2 बजे का समय चुनें, क्योंकि इस समय सूर्य की किरणें सीधी होती हैं, इसलिए उनमें तेजी अधिक होती है।

विटामिन-डी सप्लीमेंट्स उन्हें लेना चाहिए, जिनकी डाइट में विटामिन-डी से भरपूर खाद्य पदार्थों की कमी होती है या जिन्हें पर्याप्त मात्रा में सूरज की रोशनी नहीं मिलती है। बिना डॉक्टर की सलाह के सप्लीमेंट्स न लें। शरीर में विटामिन-डी के उच्च स्तर से विटामिन-डी टॉक्सिटी भी हो सकती है।

(सी.के.बिरला हॉस्पिटल, गुरुग्राम में गाइनेकोलॉजी विभाग की निदेशक डॉ. दीपिका अग्रवाल और मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, नई दिल्ली में ऑर्थोपेडिक विभाग के प्रमुख डॉ.रमणीक महाजन से बातचीत पर आधारित)

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