दीघा में बने जगन्नाथ मंदिर को लेकर बंगाल और उड़ीसा के बीच ठनी, अब मूर्ति की लकड़ी पर कैसा विवाद?
पश्चिम बंगाल के दीघा में हाल ही बने जगन्नाथ मंदिर को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। उड़ीसा ने मंदिर में मूर्ति बनाने के लिए इस्तेमाल की गई लकड़ी के जांच के आदेश दिए हैं।

पश्चिम बंगाल के दीघा में नवनिर्मित जगन्नाथ मंदिर को लेकर चल रहा विवाद अब उड़ीसा और पश्चिम बंगाल सरकारों के बीच राजनीतिक और सांस्कृतिक टकराव में बदल गया है। उड़ीसा की सरकार ने हाल ही में उन आरोपों की जांच के आदेश दिए हैं जिसमें यह दावा किया जा रहा है कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर की पवित्र नीम की लकड़ी का इस्तेमाल दीघा मंदिर के लिए मूर्तियां बनाने में किया गया था।
शुक्रवार को उड़ीसा के कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन के प्रमुख अरबिंद पाधी को इन दावों की जांच करने के आदेश दिए हैं। दावा किया जा रहा है कि दीघा मंदिर के लिए मूर्तियां बनाने में पुरी के 12वीं सदी के जगन्नाथ मंदिर में 2015 में आयोजित नवकलेवर समारोह से बची हुई नीम की लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है। नवकलेबर अनुष्ठान में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान सुदर्शन की लकड़ी की मूर्तियों को पवित्र नीम की लकड़ी का उपयोग करके नवीनीकृत किया जाता है। हरिचंदन ने कहा है कि इस जांच का उद्देश्य सच्चाई को उजागर करना है और दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।
बता दें कि हाल ही में पश्चिम बंगाल के दीघा में जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर भव्य जगन्नाथ मंदिर का निर्माण किया गया है। करीब 24 एकड़ के तटीय स्थल पर निर्मित यह मंदिर 213 फीट ऊंचा है। मंदिर को बनाने के लिए 3000 से अधिक मजदूरों ने लगभग 36 महीने तक काम किया है। हालिया विवाद तब शुरू हुआ जब दीघा मंदिर के उद्घाटन में शामिल हुए पुरी के एक वरिष्ठ सेवक रामकृष्ण दासमहापात्र ने कथित तौर पर दावा किया कि दीघा की मूर्तियों को बनाने के लिए पुरी की लकड़ियों का इस्तेमाल किया गया है। हालांकि शुक्रवार को पुरी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने इन बयानों का खंडन किया है और कहा है कि दीघा की मूर्तियां साधारण नीम की लकड़ी से बनाई गई थीं।
गौरतलब है कि उड़ीसा सरकार और पुरी के सेवक समुदाय पवित्र लकड़ी के कथित उपयोग और मंदिर के जगन्नाथ धाम ब्रांडिंग को पुरी की अनूठी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान का अपमान मानते हैं। पुरी में कई सेवक संघ ने सदस्यों को दीघा के अनुष्ठानों में भाग लेने से रोक दिया था और उल्लंघन करने वालों को निष्कासन की चेतावनी दी थी। हालांकि सचिव होने के बावजूद दासमहापात्र की अवज्ञा की तीखी आलोचना हो रही है।