8 साल की बेटी को घर का बना खाना नहीं दे पा रहा था पिता, SC ने छीन ली कस्टडी; अहम फैसला
सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने बच्ची से बातचीत के बाद पाया कि वह अपने पिता के घर पर न तो घर का खाना खा पा रही थी, न ही तीन साल के छोटे भाई का साथ उसे मिल पा रहा था।

सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति से उसकी 8 साल की बेटी की अंतरिम कस्टडी यह कहते हुए छीन ली कि उसके पास अपनी बेटी को न तो घर का बना खाना देने की व्यवस्था है और न ही कोई ऐसा पारिवारिक माहौल, जिसमें बच्ची मानसिक व भावनात्मक रूप से सुरक्षित महसूस करे। यह मामला केरल हाईकोर्ट के एक आदेश से जुड़ा है, जिसमें पिता को हर महीने 15 दिन बेटी की कस्टडी दी गई थी।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने बच्ची से बातचीत के बाद पाया कि वह अपने पिता के घर पर न तो घर का खाना खा पा रही थी, न ही तीन साल के छोटे भाई का साथ उसे मिल पा रहा था, और न ही वहां कोई दूसरा सदस्य था जिससे वह घुल-मिल सके। इस पीठ में जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता शामिल थे।
पिता सिंगापुर में कार्यरत, बेटी के लिए त्रिवेंद्रम में किराए का घर लिया
पिता सिंगापुर में नौकरी करते हैं, हर महीने भारत आकर बेटी के साथ 15 दिन रहते थे। उन्होंने त्रिवेंद्रम में एक फ्लैट किराए पर लिया था। लेकिन कोर्ट ने पाया कि इस दौरान वह बच्ची को एक भी दिन घर का खाना नहीं खिला पाए।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस संदीप मेहता ने कहा: “रेस्टोरेंट और होटलों का खाना लगातार खाना, एक वयस्क व्यक्ति के लिए भी स्वास्थ्य के लिहाज से नुकसानदेह हो सकता है, फिर आठ साल की नन्हीं बच्ची के लिए तो यह और भी खतरनाक है। बच्ची को उसके सम्पूर्ण विकास के लिए पोषणयुक्त घर का खाना चाहिए, जो दुर्भाग्यवश पिता उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं।”
सिर्फ पिता की मौजूदगी, कोई अन्य सहारा नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्ची को पिता के घर पर सिर्फ उन्हीं की कंपनी मिलती है, जबकि मां के घर पर उसे नाना-नानी के साथ रहने का मौका मिलता है और सबसे अहम, अपने छोटे भाई का साथ भी मिलता है।
कोर्ट ने कहा: "मां वर्क फ्रॉम होम करती हैं और उनके माता-पिता उनके साथ रहते हैं। ऐसे में बच्ची को भावनात्मक और नैतिक सहारा वहां कहीं अधिक मिलता है। पिता के साथ 15 दिन बिताना, उसे भाई से अलग करता है, जो उसकी मानसिक स्थिति पर नकारात्मक असर डाल सकता है।"
तीन साल के बेटे की कस्टडी देना 'गंभीर त्रुटि'
कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट द्वारा तीन साल के बेटे की भी 15 दिन की कस्टडी पिता को देने के आदेश को "गंभीर रूप से अनुचित" करार दिया। अदालत ने कहा कि इतनी कम उम्र में बच्चे को मां से अलग करना उसके मानसिक और शारीरिक विकास के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
अब क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने नए आदेश में तय किया है कि पिता को अब बेटी की अंतरिम कस्टडी हर महीने के वैकल्पिक शनिवार और रविवार को मिलेगी। इसके अलावा सप्ताह में दो दिन वीडियो कॉल के जरिए बातचीत की इजाजत भी दी गई है। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि "इन दो में से किसी एक दिन, बच्ची की सहूलियत के अनुसार, पिता उसे चार घंटे के लिए मिल सकेंगे, लेकिन यह मुलाकात किसी बाल मनोवैज्ञानिक की निगरानी में होगी।"