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मर जाऊंगा, पाकिस्तान नहीं जाऊंगा; 27 साल पुलिस में रहे कांस्टेबल पर लटकी तलवार

याचिकाकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने भारत में घुसपैठ नहीं की थी, बल्कि लौटने के बाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी कि उन्हें भारतीय नागरिक माना जाए।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, श्रीनगरSat, 3 May 2025 08:22 AM
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मर जाऊंगा, पाकिस्तान नहीं जाऊंगा; 27 साल पुलिस में रहे कांस्टेबल पर लटकी तलवार

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद से भारत की सुरक्षा एजेंसियां देश में रहे पाकिस्तानी नागरिकों को खोजकर निकाल रही हैं और उन्हें पाकिस्तान भेज रही हैं। भारत सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों को दिए गए सभी प्रकार के वीजा रद्द करते हुए उन्हें 30 अप्रैल तक देश छोड़ने का आदेश दिया था। इस बीच खबर है कि कुछ ऐसे लोगों को भी पाकिस्तान जाने का आदेश मिला है जो पिछले कुछ दशकों से भारत में रहे रहें। इनमें जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक पूर्व कांन्स्टेबल का नाम भी सामने आया है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर पुलिस में 27 साल सेवा दे चुके कांस्टेबल इफ्तिखार अली को हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा ‘भारत छोड़ो’ नोटिस भेजा गया था। 26 अप्रैल को जब एक वरिष्ठ अधिकारी ने उन्हें फोन कर बताया कि उन्हें और उनके आठ भाई-बहनों को पाकिस्तान का नागरिक मानते हुए भारत छोड़ने का आदेश दिया गया है, तो 45 वर्षीय इफ्तिखार अली के पैरों तले जमीन खिसक गई। रिपोर्ट के मुताबिक, इफ्तिखार अली ने कहा, “मैं मर जाऊंगा, लेकिन पाकिस्तान नहीं जाऊंगा। मैंने अपने वरिष्ठ अधिकारी से कहा – अगर मुझे पाकिस्तान भेजा गया तो मैं मर जाऊंगा।”

हाईकोर्ट से राहत

पहलगाम आतंकी हमले के बाद 29 अप्रैल को इफ्तिखार और उनके आठ भाई-बहनों को यह नोटिस थमाया गया। लेकिन तीन दिन के भीतर ही जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगाते हुए केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को उन्हें जबरन देश से बाहर भेजने से रोक दिया। यह आदेश इफ्तिखार द्वारा दायर की गई याचिका पर आया, जिसमें उन्होंने बताया कि उनके पिता फखरुद्दीन 1955 के नागरिकता कानून के अनुसार भारत के नागरिक और जम्मू-कश्मीर के 'हेरिडिटरी स्टेट सब्जेक्ट' थे।

फिलहाल अली और उनके आठ भाई-बहन- 49 वर्षीय बड़े भाई जुल्फकार अली, 60 वर्षीय मोहम्मद शफीक, और 52 वर्षीय मोहम्मद शकूर; और उनकी बहनें 42 वर्षीय शाजिया तब्सम, 47 वर्षीय कौसर परवीन, 50 वर्षीय नसीम अख्तर, 54 वर्षीय अकसीर अख्तर, और 56 वर्षीय नशरून अख्तर अब गांव लौट आए हैं। हालांकि उन्हें नोटिस मिला, लेकिन न तो उनकी पत्नी और न ही उनके तीन नाबालिग बेटों को नोटिस मिला, “क्योंकि वे सभी भारत में पैदा हुए थे, इसलिए उन्हें नोटिस नहीं मिला।”

परिवार का इतिहास

इफ्तिखार अली सलवाह गांव (पुंछ जिला) के निवासी हैं। वे अपने माता-पिता के साथ महज दो साल की उम्र में भारत आए थे। उनके पिता के पास सलवाह गांव में 17 एकड़ जमीन और एक मकान था। याचिका में बताया गया कि 1965 की जंग के दौरान जब पाकिस्तान ने लाइन ऑफ कंट्रोल के आसपास के क्षेत्रों पर कब्जा किया, तब फखरुद्दीन अपने परिवार के साथ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) के त्रालखल शिविर में रहने को मजबूर हुए। वहीं पर उनके छह और बच्चे हुए। स्थानीय लोगों के अनुसार, 1983 में पूरा परिवार वापस सलवाह लौट आया।

पुलिस में सेवा, और फिर 'पाकिस्तानी' करार

इफ्तिखार ने 1998 में रियासी जिले के गुलाबगढ़ में अपनी पहली पोस्टिंग के साथ पुलिस सेवा शुरू की थी। इस साल की शुरुआत में वह कटरा में तैनात थे। लेकिन 26 अप्रैल को जब पुंछ के डिप्टी कमिश्नर द्वारा भेजा गया ‘लीव इंडिया’ नोटिस उनके पास पहुंचा, तो वह स्तब्ध रह गए। उन्होंने बताया, “मैंने कहा कि मैं इस पर दस्तखत नहीं करूंगा, लेकिन मुझे सलाह दी गई कि पहले साइन कर दो और फिर कोर्ट का रुख करो।” उनके बड़े भाई जुल्फकार अली के साथ उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उस दौरान दोनों भाइयों को पुलिस ने बेलिचराना में हिरासत में रखा हुआ था।

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कोर्ट ने क्या कहा?

न्यायमूर्ति राहुल भारती ने आदेश में कहा कि “राजस्व रिकॉर्ड के आधार पर यह प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता पाकिस्तानी नागरिक नहीं हैं।” कोर्ट ने डिप्टी कमिश्नर पुंछ से शपथपत्र दाखिल कर याचिकाकर्ताओं के नाम पर, या उनके पिता के नाम पर, किसी भी संपत्ति का विवरण मांगा है।

भारत छोड़ो नोटिस क्यों?

याचिकाकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने भारत में घुसपैठ नहीं की थी, बल्कि लौटने के बाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी कि उन्हें भारतीय नागरिक माना जाए। हालांकि उस याचिका पर कोर्ट ने कहा था कि नागरिकता का फैसला केवल केंद्र सरकार ही ले सकती है। परिवार के अनुसार, उन्हें 1997 (इफ्तिखार) और 2000 (अन्य भाई-बहन) में राज्य के स्थायी निवासी के तौर पर प्रमाण पत्र मिल चुके हैं। इफ्तिखार कहते हैं कि इस कठिन समय में उन्हें सबसे ज्यादा सहारा अपने विभाग यानी जम्मू-कश्मीर पुलिस से मिला।