हिन्दुओं में तो मोक्ष है... वक्फ पर तीन दिनों की सुनवाई के बाद क्यों बोले CJI गवई; फैसला सुरक्षित
वक्फ संशोधन अधिनियम पर तीन दिनों से सुप्रीम कोर्ट में चल रही थी, जो गुरुवार को पूरी हो गई है। CJI जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुनवाई के दौरान सभी के बीच दिलचस्प संवाद हुआ।

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कीन दिनों की सुनवाई के बाद आज (गुरुवार, 22 मई को) तीन मुद्दों पर अपना अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया, जिसमें अदालतों द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाई डीड घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने की शक्ति भी शामिल है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने संशोधित वक्फ कानून का विरोध करने वालों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, राजीव धवन और अभिषेक मनु सिंघवी तथा केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें लगातार तीन दिन तक सुनीं, जिसके बाद अपना अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया।
सुनवाई के दौरान कोर्टरूम में वकीलों और जजों के बीच दिलचस्प संवाद भी हुआ। केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वक्फ केवल दान है और यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। इसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ ईश्वर को समर्पित किया हुआ दान है। यह केवल समुदाय के लिए दान नहीं, बल्कि ईश्वर के लिए समर्पण है। इसका उद्देश्य आत्मिक लाभ है। सिब्बल के इस तर्क पर चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा, "हिंदुओं में भी मोक्ष की अवधारणा है।" उनके साथ जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने भी सहमति जताई और कहा, "ईसाई धर्म में भी स्वर्ग की आकांक्षा होती है।"
संशोधित ऐक्ट वक्फ पर कब्जा करने का जरिया: सिब्बल
सुनवाई के दौरान केंद्र ने वक्फ अधिनियम का दृढ़ता से समर्थन करते हुए कहा कि वक्फ अपनी प्रकृति से ही एक “धर्मनिरपेक्ष अवधारणा” है और “संवैधानिकता की धारणा” के इसके पक्ष में होने के मद्देनजर इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती। वहीं, सिब्बल ने इस कानून को ऐतिहासिक कानूनी और संवैधानिक सिद्धांतों से पूर्ण विचलन और “गैर-न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से वक्फ पर कब्जा करने” का जरिया बताया। सिब्बल ने कहा, “यह वक्फ संपत्तियों पर सुनियोजित तरीके से कब्जा करने का मामला है। सरकार यह तय नहीं कर सकती कि कौन से मुद्दे उठाए जा सकते हैं।”
तीन प्रमुख मुद्दों पर अंतरिम आदेश पारित करें
मौजूदा स्तर पर याचिकाकर्ताओं ने तीन प्रमुख मुद्दों पर अंतरिम आदेश पारित करने का अनुरोध किया है। इनमें से पहला मुद्दा “अदालतों द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाई डीड” घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने की शक्ति से जुड़ा हुआ है। दूसरा मुद्दा राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित है। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि पदेन सदस्यों को छोड़कर केवल मुसलमानों को ही राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में काम करना चाहिए। तीसरा मुद्दा उस प्रावधान से जुड़ा है, जिसमें कहा गया है कि जब कलेक्टर यह पता लगाने के लिए जांच करते हैं कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, तो वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा।
5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिली थी
केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने 25 अप्रैल को संशोधित वक्फ अधिनियम 2025 का समर्थन करते हुए 1,332 पन्नों का एक प्रारंभिक हलफनामा दायर किया था और शीर्ष अदालत द्वारा “संसद की ओर से पारित ऐसे कानून पर रोक लगाने का विरोध किया था, ‘संवैधानिकता की धारणा’ जिसके पक्ष में है।” केंद्र ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को पिछले महीने अधिसूचित किया था। इसे पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिली थी। वक्फ संशोधन विधेयक को लोकसभा में 288 सदस्यों के मत से पारित किया गया, जबकि 232 सांसद इसके खिलाफ थे। राज्यसभा में इसके पक्ष में 128 और विपक्ष में 95 सदस्यों ने मतदान किया। (भाषा इनपुट्स के साथ)