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कच्चातिवु द्वीप विवाद क्या है, विपक्ष PM मोदी पर श्रीलंका में इस मुद्दे को उठाने का क्यों डाल रहा दबाव?

  • कच्चातिवु एक छोटा और निर्जन द्वीप है। यह भारत के तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में स्थित है। यह द्वीप 285 एकड़ में फैला है। इसका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामरिक महत्व रहा है।

Niteesh Kumar लाइव हिन्दुस्तानSat, 5 April 2025 05:17 PM
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कच्चातिवु द्वीप विवाद क्या है, विपक्ष PM मोदी पर श्रीलंका में इस मुद्दे को उठाने का क्यों डाल रहा दबाव?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 4 अप्रैल को श्रीलंका की यात्रा पर गए। इस दौरान भारत और श्रीलंका के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग शामिल हैं। हालांकि, इस यात्रा को लेकर कच्चातिवु द्वीप का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है, जिसने विपक्ष को सरकार पर हमला करने का मौका दिया है। खासकर कांग्रेस और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) ने पीएम मोदी की इस यात्रा को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार कच्चातिवु द्वीप के मुद्दे को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है और इसे केवल राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रही है।

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डीएमके ने कच्चातिवु द्वीप मामले को लेकर तमिलनाडु के मछुआरों के हितों के साथ खिलवाड़ बताया है। इसने कहा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर तमिलनाडु की भावनाओं को नजरअंदाज कर रही है। डीएमके नेता एमके स्टालिन ने कहा कि अगर केंद्र वास्तव में मछुआरों के हक की बात करना चाहता है, तो कच्चातिवु को वापस लेने के लिए श्रीलंका के साथ सख्त बातचीत करनी चाहिए। केंद्र की रिपोर्ट का हवाला देते हुए स्टालिन ने कहा कि 22 नवंबर, 2024 तक तमिलनाडु के मछुआरों पर श्रीलंकाई नौसेना की ओर से 736 बार हमला किया गया। मछुआरों के मुद्दे का स्थायी समाधान खोजने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है। चलिए हम बताते हैं कि भारत और श्रीलंका के बीच कच्चातिवु द्वीप विवाद क्या है...

कच्चातिवु द्वीप को लेकर क्या है विवाद?

कच्चातिवु एक छोटा और निर्जन द्वीप है। यह भारत के तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में स्थित है। यह द्वीप 285 एकड़ में फैला है। इसका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामरिक महत्व रहा है। विवाद की जड़ 1921 तक जाती है, जब ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान इसे सीमा निर्धारण में शामिल किया गया था। 1974 में भारत और श्रीलंका के बीच हुए समझौते के तहत भारत ने इस द्वीप पर अपना दावा छोड़ दिया और इसे श्रीलंका को सौंप दिया। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा को स्पष्ट करना और मछुआरों के अधिकारों को संतुलित करना था।

हालांकि, यह समझौता तमिलनाडु के मछुआरों के लिए परेशानी का सबब बन गया। श्रीलंका ने इस द्वीप के आसपास मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसके कारण भारतीय मछुआरे अक्सर श्रीलंकाई नौसेना के हाथों गिरफ्तार होते हैं। तमिलनाडु में इसे लेकर लंबे समय से असंतोष रहा है और राजनीतिक दल इसे बार-बार उठाते हैं। पीएम मोदी की यात्रा के दौरान इस मुद्दे के फिर से उभरने से भारत-श्रीलंका संबंधों में नई बहस छिड़ गई है।