रेप के बाद लड़की से की शादी; SC ने माफ की सजा; रिटायर होने से पहले जस्टिस ओका ने सुनाया फैसला
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि कानून के दायरे से परे जाकर, पीड़िता की वास्तविक स्थिति, उसकी चुनाव की स्वतंत्रता और समाज का दबाव को समझना जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल के एक व्यक्ति को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 के तहत दोषी करार देते हुए बरी कर दिया। उसने पीड़िता से उसके बालिग होने के बाद शादी की और अब दोनों की एक बेटी भी है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पीड़िता को समाज, कानून और उसके परिवार ने असफल किया। अब वह अपने पति को बचाने के लिए पूरी तरह समर्पित है। न्यायमूर्ति एएस ओका और उज्जल भूयान की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विशेष अधिकार का प्रयोग करते हुए कहा, “इस मामले में हालांकि आरोपी दोषी है, फिर भी उसे सजा नहीं दी जाएगी।”
कोर्ट ने माना कि यह मामला सभी के लिए एक आंख खोलने वाला है। कोर्ट ने कहा, “कानूनी अपराध तो हुआ, लेकिन असली मानसिक पीड़ा पीड़िता को इसके बाद हुई घटनाओं से मिली है। जैसे कि पुलिस, अदालतों और समाज से उसे संघर्ष करना पड़ा है।”
पीठ के लिए निर्णय लिखते हुए न्यायमूर्ति ओका ने कहा, “समाज ने उसे आंका, कानूनी व्यवस्था ने उसे विफल कर दिया और उसके अपने परिवार ने उसे छोड़ दिया। अब, वह उस चरण में है जहां वह अपने पति को बचाने के लिए बेताब है। अब वह भावनात्मक रूप से आरोपी के प्रति समर्पित हो गई है और अपने छोटे परिवार के प्रति बहुत अधिक अधिकार जताने लगी है।"
आरोपी को पोक्सो अदालत ने 20 साल के कठोर कारावास और 10,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है। कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा किशोरों के बारे में कुछ विवादास्पद टिप्पणी किए जाने के बाद शीर्ष अदालत ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया था। पीठ ने कहा कि चूंकि पीड़िता ने अपनी बोर्ड परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण करने के बाद स्नातक की पढ़ाई पूरी करने की इच्छा व्यक्त की है और उसकी सहमति के अधीन, पीड़िता को किसी उपयुक्त संस्थान में उसकी पसंद के व्यावसायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में दाखिला दिलाने के लिए उचित व्यवस्था की जा सकती है।
राज्य सरकार को पीड़िता और उसके बच्चे के सच्चे अभिभावक के रूप में कार्य करने के लिए कहते हुए शीर्ष अदालत ने पश्चिम बंगाल सरकार को आज से कुछ महीनों के भीतर पीड़िता और उसके परिवार को बेहतर आश्रय प्रदान करने और दसवीं कक्षा की मानक परीक्षा तक उसकी शिक्षा का पूरा खर्च वहन करने का निर्देश दिया। यदि वह डिग्री कोर्स के लिए शिक्षा लेना चाहती है, तो डिग्री कोर्स पूरा होने तक।
पीठ ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव को न्यायमित्र के सुझावों पर विचार करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त करने का भी निर्देश दिया। समिति को 15 जुलाई तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है। पीठ ने कहा, "इस मामले के तथ्य सभी के लिए आंखें खोलने वाले हैं। यह हमारी कानूनी प्रणाली की खामियों को उजागर करता है। अंतिम रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है कि हालांकि इस घटना को कानून में अपराध के रूप में देखा गया था, लेकिन पीड़िता ने इसे अपराध के रूप में स्वीकार नहीं किया। यह कानूनी अपराध नहीं था जिसने पीड़िता को कोई आघात पहुंचाया, बल्कि इसके बाद के परिणाम थे, जिसने उसे भारी नुकसान पहुंचाया।"
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि कानून के दायरे से परे जाकर, पीड़िता की वास्तविक स्थिति, उसकी चुनाव की स्वतंत्रता और समाज का दबाव को समझना जरूरी है। कोर्ट ने कहा, “वह इस वक्त अपने छोटे से परिवार को बचाने में लगी है। उसने अपना पूरा जीवन उस रिश्ते में समर्पित कर दिया है, जिसे समाज ने अपराध माना, लेकिन वह उसे अपराधी नहीं मानती है।”