जाति जनगणना के बाद क्या होगा: इन तीन चीजों पर छिड़ेगी राजनीति, किस पर क्या असर
खरगे ने मांग की है कि संविधान संशोधन के माध्यम से लिमिट खत्म की जाए। इसके अतिरिक्त निजी शिक्षण संस्थानों में भी आरक्षण की मांग दोहराई है। दरअसल जाति जनगणना के बाद कई मसलों पर राजनीति तेज हो सकती है। ऐसे में अगले कुछ साल इस लिहाज से अहम होंगे।

भारत सरकार ने जनगणना में जाति के कॉलम को भी जोड़ने का फैसला लिया है। बीते सप्ताह कैबिनेट मीटिंग के बाद इस अहम फैसले का ऐलान हुआ था। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसकी जानकारी दी थी। इस तरह अबकी बार होने वाली जनगणना में जाति का कॉलम भी जुड़ जाएगा और घर-घर जाने वाले सरकारी कर्मचारी करीब 30 सवाल लोगों से पूछेंगे। इनमें एक अहम सवाल यह भी भरना होगा कि उनकी जाति क्या है। अब तक धर्म ही पूछा जाता था या फिर सामाजिक वर्ग पूछा जाता था। लेकिन पहली बार देश में जाति भी जनगणना के दौरान पूछी जाएगी। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि पता लग सके कि किस जाति के कितने लोग हैं और फिर सामाजिक योजनाओं को उसके अनुसार ही तय किया जा सके।
यही नहीं आरक्षण को लेकर भी मांग उठाई जा रही है कि जाति जनगणना के बाद 50 फीसदी की लिमिट को खत्म किया जाए। इस संबंध में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा है। उनका कहना है कि आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट को खत्म किया जाए और इसके लिए संसद में प्रस्ताव लाया जाए। खरगे ने मांग की है कि संविधान संशोधन के माध्यम से लिमिट खत्म की जाए। इसके अतिरिक्त निजी शिक्षण संस्थानों में भी आरक्षण की मांग दोहराई है। दरअसल जाति जनगणना के बाद कई मसलों पर राजनीति तेज हो सकती है। ऐसे में अगले कुछ साल इस लिहाज से अहम होंगे। आइए जानते हैं, जाति जनगणना के बाद कौन सी मांगें हो सकती हैं तेज...
जातिगत आरक्षण की लिमिट तोड़ने की मांग
जनगणना में जातियों की गिनती होने के बाद अगली लड़ाई जातिगत आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा करने की मांग हो सकती है। इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि जातिगत आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती। आर्थिक पिछड़ा वर्ग यानी EWS के लिए भी जब 10 फीसदी आरक्षण तय हुआ था तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। लेकिन अदालत ने यह कहते हुए इसे सही करार दिया था कि इसे जाति के आधार पर नहीं बल्कि आर्थिक स्थिति के नाम पर दिया जा रहा है। ऐसे में 50 फीसदी वाली लिमिट इस मामले में लागू नहीं होती। लेकिन अब यदि ओबीसी, एससी और एसटी की कुल आबादी 70 फीसदी के करीब निकली तो फिर से पुरानी मांग तेज हो सकती है। अनुमान है कि इन वर्गों की कुल आबादी लगभग 70 फीसदी ही है।
कोटे में कोटा की नीति भी पकड़ेगी जोर
इसके अलावा कोटे के भीतर कोटा यानी सबकोटा पर भी काम तेज हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल एक केस की सुनवाई करते हुए अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण को सही माना था। इसके तुरंत बाद हरियाणा सरकार ने एससी कोटे में भी वर्गीकरण किया था और जातियों के आधार पर आरक्षण तय किया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि आरक्षण के बाद भी मुख्यधारा में न आ पाने वाले वर्गों के लिए अलग से ही कोटा रखा जाए ताकि उनकी कुछ सीटें सुनिश्चित हो सकें। अब जातिगत आरक्षण की लिमिट यदि तोड़ी गई तो इस पर भी विचार होगा। भाजपा के अंदर तो इस पर लंबे समय से मंथन होता रहा है। इसके अलावा कर्नाटक की कांग्रेस सरकार भी ऐसी ही कोशिश कर रही है और उसने एससी वर्ग की उप-जातियों की गणना शुरू की है।
ओपन कैटिगरी की सीटें कितनी बचेंगी?
एक अहम सवाल यह भी रहेगा कि यदि जातिगत आरक्षण की सीमा बढ़ती है तो वह किस हद तक जाएगी। 10 फीसदी EWS कोटा पहले से लागू है। इसके अलावा जातिगत आरक्षण भी 49.5 फीसदी है। ऐसे में यदि जातिगत आरक्षण की सीमा बढ़ती है को वह कितनी होगी और EWS को भी मिला लें तो आखिर ओपन कैटिगरी के लिए कितनी सीटें बचेंगी। यह अहम सवाल है क्योंकि जातिगत आरक्षण के दायरे और फिर आर्थिक रेखा से भी बाहर रहने वाले लोगों के लिए आखिर कितनी सीटें बचेंगी। यह भी एक बड़ा प्रश्न है, जिसके जवाब के लिए फिलहाल इंतजार करना होगा।