Exploring the Distinct Artistic Journeys of Janhvi Khemka and Mayuri Chari Empowerment Through Art अपनी ही निराली कला रचती हैं भारत की ये दो कलाकार, India News in Hindi - Hindustan
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अपनी ही निराली कला रचती हैं भारत की ये दो कलाकार

जान्हवी खेमका और मयूरी चारी, दोनों मल्टी-डिसिप्लिनरी कलाकार हैं, जो अपने व्यक्तिगत अनुभवों से प्रेरित होकर कला के माध्यम से जेंडर और समाज के मुद्दों पर प्रकाश डालती हैं। खेमका ने अपनी दिव्यांगता को...

डॉयचे वेले दिल्लीTue, 27 May 2025 08:06 PM
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अपनी ही निराली कला रचती हैं भारत की ये दो कलाकार

मयूरी चारी और जान्हवी खेमका की कला एक दूसरे से बिलकुल अलग दिखती है.लेकिन इनकी रचनात्मक सोच और जेंडर, दिव्यांगता और परिवार से जुड़े हुए इनके व्यक्तिगत अनुभव भारत की इन दोनों मल्टी-डिसिप्लिनरी कलाकारों को खास बनाते हैं.जान्हवी खेमका: "कला ही मेरा साधन है"1993 में भारत के वाराणसी में जन्मी जान्हवी खेमका के लिए उनकी मां हमेशा से प्रेरणा की स्रोत रही हैं.कला से जुड़ी उनकी शुरुआती यादें उनकी मां से जुड़ी हैं.वो बताती हैं, "मेरी मां स्कूल के असाइनमेंट्स में मेरी मदद करती थीं.वह हाथों के इशारों, चेहरे के भावों और शरीर की भाषा के जरिए मुझे समझाती थीं"खेमका जन्म से ही सुन नहीं सकती थीं.इसी कारण उनकी मां ने कम उम्र में ही उन्हें हिंदी में किसी के होंठों को देख कर बातें समझना सिखा दिया था और साथ ही उन्हें कला की ओर बढ़ाया.लेकिन जब खेमका 15 साल की थीं, तभी उनकी मां का निधन हो गया.डीडब्ल्यू को दिए एक लिखित इंटरव्यू में खेमका ने बताया, "उनका मुझ पर जो प्रभाव पड़ा, उसने मुझे दुनिया में सामान्य तरीके से आगे बढ़ने में मदद की और रोशनी, स्पर्श, प्रयोगात्मक ध्वनि और छूने लायक माध्यमों के जरिए मेरी कला को प्रेरित किया"खेमका ने अपना नाम इसी सामान्य दुनिया में बनाया है.वह एक मल्टीडिसिप्लिनरी आर्टिस्ट हैं, यानि एक ऐसी कलाकार जो लकड़ी की छपाई, पेंटिंग, प्रदर्शन कला और एनीमेशन जैसे कई माध्यमों में काम करती हैं.उन्होंने अमेरिकी स्थित विश्वप्रसिद्ध "स्कूल ऑफ द आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो" से मास्टर ऑफ फाइन आर्ट्स में डिग्री हासिल की है.इससे पहले उन्होंने पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में विश्वभारती विश्वविद्यालय से भी यही डिग्री ली थी.वो बताती हैं, "शांतिनिकेतन ने मेरे लिए एक नई दुनिया खोल दी क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था, जब मैं घर से दूर थी.इससे मुझे आगे बढ़ने में और खुद को समझने में मदद मिली कि मेरी विकलांगता मेरी पहचान को कैसे आकार देती है.इस अनुभव ने काफी कुछ बदल दिया.इससे मेरी सोच को बढ़ावा मिला, लोगों और कलाकारों से जुड़ने में मदद मिली और कला के साथ मेरे रिश्ते और गहरा हुआ.खेमका के दोस्तों और गुरुजनों ने उनके करियर में उनका साथ दिया है.लेकिन फिर भी उन्हें कई बार सुविधाओं की कमी महसूस होती है. उन्हें हमेशा अपनी स्थिति के बारे में दूसरों को समझाना पड़ता है, जिससे उन्हें काफी सतर्क रहना पड़ता है और कभी-कभी यह बहुत थकावट भरा हो जाता है.खेमका की कला कई प्रदर्शनियों में दिखाई जा चुकी है.उनकी बहुत सी कला उनके श्रवण बाधित होने से जुड़ी है क्योंकि वह ध्वनि को कंपन के माध्यम से महसूस करती हैं.उनकी कुछ रचनाएं जैसे "इम्प्रेस/इओन" और "योर नेम, प्लीज?" इंटरैक्टिव हैं, जो दर्शकों के साथ सीधा संवाद करती हैं.2021 में उन्होंने "लैटर टू माय मदर" (मां के लिए चिट्ठी) नामक की एक कला बनाई.जिसमें एक हिलने वाला प्लेटफॉर्म था और लकड़ी की कटाई कर उस पर होंठों के डिजाइन वाला प्रोजेक्टेड एनीमेशन लाइट पैटर्न के सहारे दिखाया गया है.यह उनके उस अनुभव की याद दिलाता है, जब उनकी मां ने उन्हें चटाई पर बिठाकर होंठ पढ़ना सिखाया था.उनके अनुसार, "यह एक निजी अनुभव है, जो मुझे मेरी मां से जोड़ता है.जिसे केवल शब्दों से समझाया नहीं जा सकता है" हालांकि, दर्शकों को यह ध्वनि को छूने और महसूस करने का मौका देता है और उन्हें कलाकार के जीवन के खास पल में ले जाता है.खेमका कहती हैं, "मेरी सबसे बड़ी सफलता यह है कि मैं इस दुनिया में आराम से, स्वतंत्रता और आत्मविश्वास के साथ रह पाती हूं"मयूरी चारी: "औरत पैदा नहीं होती, उसे गढ़ा जाता है"स्वतंत्रता और आत्मविश्वासी जीवन, मयूरी चारी अपने और हर महिला के लिए यही चाहती हैं."सफलता" शब्द के बजाय मयूरी "प्राथमिकता" शब्द को ज्यादा पसंद करती हैं.उनकी प्राथमिकता उनके काम के जरिए नजर आती है.जो खास तौर पर महिलाओं के शरीर पर केंद्रित होती है.उनका मकसद है वह कहना, जो वह कहना चाहती हैं, ना कि वह जो लोग उनसे सुनना चाहते हैं.असल में, लोगों को उनकी कला हमेशा पसंद नहीं आती क्योंकि वह कुछ लोगों को असहज महसूस करा देती हैं.भारतीय समाज के अलग-अलग तबकों में महिलाओं को किस नजर से देखा जाता है, उन्हें कैसा स्थान दिया जाता है और उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाता है, वो इस पर सवाल उठाती हैं और उन्हें चुनौती देती हैं.इसके लिए वे प्रिंट, कपड़ा, फिल्म और यहां तक कि गोबर जैसे माध्यमों का इस्तेमाल करती हैं.अपने काम के बारे में वे कहती हैं, "यह कहानियां या किस्से नहीं हैं. यह हकीकत है"हैदराबाद यूनिवर्सिटी से एमएफए की पढ़ाई के दौरान उन्होंने महिला शरीर को अपने कला के विषय के रूप में इस्तेमाल करना शुरू किया.एक सेमेस्टर के प्रोजेक्ट में उन्होंने अपने शरीर के बड़े-बड़े प्रिंट बनाएं.उनकी नजर में यह काम सिर्फ रंगों और बनावट के हिसाब से एक कलात्मक अभिव्यक्ति थी.उन्होंने कहा, "लेकिन बाकी लोग जैसे मेरे सहपाठी और बाकी के दर्शक इसे अलग ही नजर से देख रहे थे.उन्हें यह अश्लील लगा और उन्होंने कहा कि यह सब खुलेआम नहीं करना चाहिए"इस प्रतिक्रिया ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया.महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाके में अपने घर से दिए फोन इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "मुझे समझ नहीं आता, क्यों? लोग शरीर को अश्लील या केवल यौन वस्तु के रूप में क्यों देखते हैं? इसे रचनात्मक रूप में क्यों नहीं देखा जा सकता?"मयूरी की कलाओं में महिलाओं का शरीर ना तो कोई देवी की छवि है और ना ही उपभोग की कोई वस्तु बल्कि यह आत्मचेतना की मूर्ति है.हालांकि, भारत में उनके काम को अक्सर विवादास्पद नजरों से देखा जाता है क्योंकि वह अपने चित्रों में असल, अधूरी और साहसी नग्न महिला शरीर को दर्शाती हैं.भारतीय गैलरियों ने उनके काम को अस्वीकार किया और कई प्रदर्शनियों के मालिकों ने तो कुछ कलाकृतियां हटाने के लिए भी कहा.लेकिन इन सबके बावजूद उनका काम भारतीय महिलाओं की वास्तविकता से गहराई से जुड़ा है.कई महिलाएं उनकी प्रदर्शनी में आकर उनके कान में धीरे से कहती हैं, "मुझे भी ऐसा ही महसूस होता है.मेरे साथ भी ऐसा ही होता है"चारी कहती हैं कि महिलाओं को उनके काम में अपना दर्द, अनुभव और सच्चाई नजर आती है, जो उन्हें कहीं और नहीं दिखती.पिछले कुछ वर्षों के अंदर ही उनके काम को अंतरराष्ट्रीय पहचान भी मिली जब उनकी इंस्टॉलेशन "आई वॉज नॉट क्रिएटेड फॉर प्लेजर" (मेरी उत्पत्ति उपभोग के लिए नहीं हुई है) को 2022 में बारहवें बर्लिन बिनिआले में दिखाया गया.2024 के इंडिया आर्ट फेयर में वह रेजिडेंट आर्टिस्ट भी रही.जाह्नवी खेमका की तरह ही मयूरी के कलाकार बनने में भी उनके परिवार की अहम भूमिका रही.हालांकि, यह भूमिका हमेशा केवल सकारात्मक ही नहीं थी.1992 में तटीय राज्य, गोवा के में जन्मी चारी ने बचपन में काफी समय अपने पिता के साथ बिताया.जो कि एक बढ़ई थे.वह अपने पिता को फर्नीचर और नक्काशी का काम करते देखती थी और उनकी मदद भी करती थी. स्कूल में उन्होंने चित्र बनाने शुरू किए, जहां उनके शिक्षकों ने उन्हें हौसला दिया.पिता की मृत्यु के बाद उनके पिता के बड़े भाई ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए मना कर दिया.लेकिन चारी ने ऐसी रोका-टोकी को नजरअंदाज कर दोस्तों और कुछ स्कॉलरशिप की मदद से फाइन आर्ट्स में अपनी मास्टर्स डिग्री पूरी की.उनके पति, प्रभाकर कांबले, जो खुद भी एक कलाकार हैं.उन्होंने स्कूल के बाद के शुरुआती दिनों में उनकी काफी मदद की.चारी का काम समाज में महिलाओं की स्थिति पर ध्यान केंद्रित करता है.लेकिन उनका मानना है कि उनके साथ जैसा व्यवहार हुआ, उसमें लिंग से ज्यादा जाति की भूमिका रही है.उन्होंने कहा, "सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि आप किस जाति के हैं, आप कहां से आते हैं.मैं एक नीची जाति से आई थी, और बड़ी गैलरियां हमेशा ऊंची जाति के लोगों को पसंद करती हैं.वह उन्हें नोटिस करती हैं और उन्हें ही चाहती हैं, जो अंग्रेजी में अच्छा बोल सके और जिनके पास पैसा हो"युवा कलाकारों के लिए सलाह मयूरी चारी इस समय दो खास प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं.एक, छोटी डॉक्यूमेंट्री, जो ग्रामीण महिला गन्ना मजदूरों के जीवन पर है और दूसरा, कपड़ा प्रोजेक्ट, जो कढ़ाई से दुल्हन का जोड़ा बनाने की परंपरा पर आधारित है.जो परंपरा पुर्तगाली शासकों के समय गोवा में शुरू हुई थी और आज भी परिवारों में माएं अपनी बेटियों को सिखाती हैं.चारी ने भी अपनी मां से यह काम सीखा था.जान्हवी खेमका की मां भी हमेशा उनके काम का केंद्र रही हैं.भविष्य में वह अपने और अपनी मां के रिश्ते पर एक फिल्म बनाना चाहती हैं, वह भी वुडकट प्रिंट एनीमेशन के इस्तेमाल से.अपने अनुभव के आधार पर वह युवा कलाकारों को सलाह देती हैं, "नाकामी का सामना साहस से करो, धैर्य और उम्मीद कभी मत छोड़ो और हर चुनौती का सामना करने के लिए डटकर खड़े रहो"मयूरी युवा कलाकारों से कहना चाहती हैं, "आपको हमेशा आजाद और स्वतंत्र सोच रखने वाला बनना चाहिए.दूसरों की नकल कभी नहीं करनी चाहिए.दूसरों के विचार, सोच और काम से प्रेरणा लो लेकिन नकल कभी मत करो".

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