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भारत में इतने 'जासूस' अचानक कैसे हो रहे हैं गिरफ्तार

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के दौरान, भारत के विभिन्न राज्यों में 12 व्यक्तियों को पाकिस्तानी जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इनमें से पांच हरियाणा, छह पंजाब और एक उत्तर प्रदेश से हैं।...

डॉयचे वेले दिल्लीTue, 20 May 2025 08:36 PM
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भारत में इतने 'जासूस' अचानक कैसे हो रहे हैं गिरफ्तार

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के बीच भारत के अलग अलग राज्यों में अधिकारियों ने कम से कम 12 व्यक्तियों को पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किया है.लेकिन क्या है इन गिरफ्तारियों का सच?पाकिस्तानी के लिए जासूसी करने के आरोप में कम से कम पांच व्यक्तियों को हरियाणा में, छह को पंजाब में और एक को उत्तर प्रदेश में गिरफ्तार किया गया है.लगभग सभी मामलों में स्थानीय पुलिस ने दावा किया है कि आरोपी पाकिस्तानी एजेंसियों के संपर्क में थे और उनसे संवेदनशील जानकारी साझा कर रहे थे.सबसे पहली गिरफ्तारी पंजाब में तीन मई को हुई थी, यानी "ऑपरेशन सिंदूर" शुरू होने से भी चार दिन पहले.पंजाब पुलिस के मुताबिक तीन मई को अमृतसर में पलक शेर मसीह और सूरज मसीह नाम के दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया था.पुलिस के बयान के मुताबिक इन दोनों को "अमृतसर में सेना छावनी इलाकों और वायु सेना के अड्डों की संवेदनशील जानकारी और तस्वीरें लीक करने में उनकी कथित भूमिका" के लिए गिरफ्तार किया गया था.पुलिस ने दावा किया था कि शुरुआती जांच में सामने आया है कि इन दोनों के पाकिस्तानी खुफिया एजेंटों से संबंध थे.हरप्रीत सिंह उर्फ पिट्टू उर्फ हैप्पी नाम के एक व्यक्ति ने इनका पाकिस्तानी एजेंटों से संपर्क करवाया था.हरप्रीत सिंह इस समय अमृतसर जेल में कैद है.कोई छात्र, कोई श्रमिक तो कोई यूट्यूबरइंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने ही बताया कि ये दोनों दिहाड़ी श्रमिक हैं, इन्हें कई बार नशा करते हुए पाया गया है लेकिन इनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है.इसके बाद 8 मई को पंजाब के मलेरकोटला में पुलिस ने इसी तरह के आरोपों में दो और व्यक्तियों - गजाला नाम की एक महिला और यामीन मोहम्मद नाम के एक पुरुष - को गिरफ्तार किया. पुलिस के मुताबिक यह दोनों नई दिल्ली में स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग में काम कर रहे एक पाकिस्तानी अधिकारी के साथ संपर्क में थे.गजाला के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी गई लेकिन यामीन को वीजा एजेंट बताया गया.पुलिस का कहना था कि ये दोनों उस "हैंडलर" से नियमित संपर्क में थे और ऑनलाइन पैसे लेकर खुफिया जानकारी दे रहे थे.दोनों उस पाकिस्तानी अधिकारी के कहने पर दूसरे स्थानीय एजेंटों के पास पैसे पहुंचाने में भी शामिल थे.13 मई को भारत सरकार ने घोषणा की थी कि उसने पाकिस्तानी उच्चायोग में काम कर रहे एक पाकिस्तानी अधिकारी को "ऐसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए "अवांछित व्यक्ति" घोषित कर दिया है जो भारत में उनके आधिकारिक दर्जे के मुताबिक नहीं थीं"इस अधिकारी को 24 घंटों के अंदर भारत छोड़ने का आदेश दिया गया था.विदेश मंत्रालय के इस बयान में इस पाकिस्तानी अधिकारी का नाम नहीं बताया गया था, लेकिन कई मीडिया रिपोर्टों में इसका नाम दानिश बताया गया है.हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस अधिकारी का नाम एहसान-उर-रहीम उर्फ दानिश है.दावा किया जा रहा है कि गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों में से कई इससे संपर्क में थे.जांच एजेंसियों की कई लोगों पर नजर उसके बाद 16 मई को हरियाणा के हिसार में रहने वाली यूट्यूबर ज्योति रानी को गिरफ्तार किया गया.रानी का यूट्यूब पर "ट्रैवेल विद जो" नाम का एक यात्रा संबंधी चैनल है, जिसके 3,86,000 सब्सक्राइबर है.चैनल अभी भी यूट्यूब पर मौजूद है, लेकिन पुलिस का दावा है कि रानी ने दानिश के साथ "संवेदनशील जानकारी" साझा की थी. गिरफ्तार किए गए लोगों में हरियाणा के कैथल में रहने वाला एक 25 साल का छात्र भी है.मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, पुलिस का आरोप है कि देवेंदर सिंह नाम के इस युवक ने पटियाला छावनी की बाहर से तस्वीरें खींच कर पाकिस्तानी खुफिया एजेंटों को भेजी थी.ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि जांच एजेंसियां आने वाले दिनों में और भी व्यक्तियों के खिलाफ कदम उठा सकती हैं."द ट्रिब्यून" के मुताबिक पंजाब पुलिस ने अपनी जांच का दायरा बढ़ा दिया है और राज्य में गिरफ्तार किए गए छह व्यक्तियों से संपर्क में रहने वाले करीब 50 व्यक्तियों की गतिविधियों और पृष्ठभूमि के बारे में पूरी जानकारी निकाली जाए.मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इनमें से कई लोगों पर ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट (ओएसए) के तहत आरोप लगाए गए हैं.ज्योति के खिलाफ ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट (ओएसए) की धारा तीन और पांच और भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 के तहत आरोप दर्ज किए गए हैं.किस तरह के हैं आरोपओएसए की धारा तीन के तहत कई गतिविधियों के लिए सजा का प्रावधान है.इनमें किसी प्रतिबंधित स्थान के आस पास भी जाना, कोई ऐसा स्केच या नोट तैयार करना जो देश के किसी शत्रु के लिए सहायक हो और किसी भी गोपनीय जानकारी को हासिल करना और साझा करना शामिल है.इसमें 14 साल तक जेल की सजा का प्रावधान है.धारा पांच ऐसी गोपनीय जानकारी को हासिल करने और साझा करने से संबंधित है.इसमें तीन साल तक जेल की सजा का प्रावधान है. भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 भारत की सम्प्रभुता, एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों से संबंधित है.कुछ जानकार इसे "देशद्रोह" के लिए सजा तय करने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 124(अ) के जैसी धारा मानते हैं.इसके तहत आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है.इस तरह लोगों पर जासूसी के आरोप लगना नई बात नहीं है लेकिन क्या एक छात्र, एक दिहाड़ी मजदूर, एक यूट्यूबर जैसे लोग भी जासूस हो सकते हैं? कुछ जानकारों का कहना है कि इसकी काफी संभावना है.क्या है जानकारों की रायउत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह का मानना है कि खुफिया एजेंसियां जासूसी के लिए जिन लोगों से संबंध बढ़ाती हैं वो अक्सर सरल पृष्ठभूमि के ही होते हैं, क्योंकि वो लोगों में घुलमिल सकते हैं और आगे बढ़ सकते हैं.डॉयचे वेले के साथ बातचीत में सिंह ने बताया कि कहीं से गुजर रहा कोई आम यात्री भी अगर कोई वीडियो बनाए तो आईएसआई जैसे संस्थान सड़कों की गुणवत्ता, ट्रैफिक की आवाजाही, आबादी का घनत्व आदि जैसी जानकारी का अंदाजा लगा सकते हैं.उन्होंने यह भी बताया कि पुलिस सेवा में उनके 36 सालों के तजुर्बे में उन्होंने पाया कि जासूसी के लिए पकड़े जाने वाले हर 10 व्यक्तियों में से तीन "हाई-प्रोफाइल" और सात "लो-प्रोफाइल" वाले मिले.लेकिन ऐसे भी सवाल उठ रहे हैं कि इस पूरी कार्रवाई के पीछे का पूरा सच आखिर क्या है.वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेड़ा का मानना है कि सबसे पहले तो पहलगाम हमले के पहले उसकी योजना की कोई भी जानकारी ना होना भारतीय खुफिया तंत्र की असफलता है.लखेड़ा ने डॉयचे वेले को बताया कि इसके अलावा उनके तजुर्बे में ऐसा कई बार हुआ है कि जांच एजेंसियां "अपनी खाल बचाने के लिए जासूसी की आड़ ले कर ऐसे निर्दोष लोगों को भी फंसाती हैं जो ना तो टेक्नोलॉजी में माहिर हैं, ना उन्हें विषय की जानकारी है और ना वो कभी देश को तोड़ने की किसी गतिविधि में लिप्त पाए गए"उन्होंने यह कहा कि उन्हें लगता है कि इस मामले में काफी अर्धसत्य है और एक ध्यान बटाने की कोशिश भी हो सकती है जिससे यह लगे कि ऑपरेशन सिंदूर के पीछे जासूसी तंत्र का खेल था.

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