Delhi court issues non-bailable warrant for flouting order against Medha Patkar मेधा पाटकर को बड़ा झटका, दिल्ली की अदालत ने जारी किया गैर जमानती वारंट, Ncr Hindi News - Hindustan
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मेधा पाटकर को बड़ा झटका, दिल्ली की अदालत ने जारी किया गैर जमानती वारंट

  • सजा पर बहस 30 मई को पूरी हो गई थी, जिसके बाद सजा की मात्रा पर फैसला 7 जून को सुरक्षित रखा गया था। 1 जुलाई को अदालत ने उन्हें पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई, जिसके बाद पाटकर ने सत्र न्यायालय में अपील दायर की।

Sourabh Jain पीटीआई, नई दिल्लीWed, 23 April 2025 05:00 PM
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मेधा पाटकर को बड़ा झटका, दिल्ली की अदालत ने जारी किया गैर जमानती वारंट

दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को बड़ा झटका देते हुए उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया। अदालती आदेश का उल्लंघन करने के मामले में कोर्ट ने उनके खिलाफ यह वारंट जारी किया है। दरअसल अदालत ने पाटकर को दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा दायर मानहानि मामले में प्रोबेशन बांड जमा करने और एक लाख रुपए का जुर्माना जमा करने के लिए कहा था। अब इसी जुर्माने को जमा ना कर पाने की वजह से अदालत ने पाटकर के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया।

इससे पहले इसी 1 लाख रुपए के जुर्माने की सजा पर रोक लगाने के लिए पाटकर ने मंगलवार को दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। जहां हुई सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने पाटकर से कहा था कि वह जुर्माने की सजा को स्थगित करने की अनुमति पाने के लिए सत्र न्यायालय में जाएं। हाई कोर्ट की जस्टिस शालिन्दर कौर इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा, ‘पहले आप निचली अदालत के आदेश का पालन करें और तब मैं आपकी याचिका पर विचार करूंगी। अंतिम दिन अदालत में नहीं आएं।’ ऐसे में आज हुई सुनवाई के बाद सेशन कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया।

बुधवार को इस मामले में कोर्ट में पाटकर की उपस्थिति, प्रोबेशन बांड जमा करने और जुर्माना राशि जमा करने को लेकर सेशन कोर्ट में सुनवाई हुई। जहां सक्सेना के वकील गजिंदर कुमार ने कहा कि पाटकर न तो खुद पेश हुईं और न ही उन्होंने अदालत के निर्देशों का पालन किया। LG के वकील ने कहा, 'दिल्ली पुलिस आयुक्त के माध्यम से पाटकर के खिलाफ गैर जमानती वारंट (NBW) जारी किया गया है, और अदालत ने पाया कि इस मामले में स्थगन की मांग करने के लिए दोषी द्वारा दायर आवेदन उचित नहीं है।'

इससे पहले अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने मानहानि के इस मामले में 70 वर्षीय मेधा पाटकर को दोषी ठहराया था, लेकिन अच्छे आचरण की परिवीक्षा पर उन्हें 8 अप्रैल को रिहा कर दिया था। परिवीक्षा में दोषी ठहराए जाने के बाद अपराधी को जेल भेजने के बजाय अच्छे आचरण के ‘बांड’ पर रिहा कर दिया जाता है। दरअसल यह मामला 23 साल पुराना है, जब दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने गुजरात में एक एनजीओ के प्रमुख रहते हुए पाटकर के खिलाफ मानहानि का केस दायर किया था।

कोर्ट ने पाटकर को सुनाई थी 5 महीने की सजा

इस मामले में मजिस्ट्रेट अदालत ने 1 जुलाई, 2024 को नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) की नेता को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500 (मानहानि) के तहत दोषी पाते हुए पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी और 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था।

पांच महीने कैद की सजा काट रही पाटकर को राहत देते हुए सत्र न्यायालय ने मानहानि मामले में उन्हें 8 अप्रैल को ‘अच्छे आचरण की परिवीक्षा’ पर रिहा कर दिया था। इसलिए सत्र न्यायालय ने 1 जुलाई, 2024 को उन्हें पांच महीने की साधारण कारावास की सजा सुनाने वाले मजिस्ट्रेट न्यायालय के आदेश को ‘संशोधित’ कर दिया। न्यायालय ने उनसे एक लाख रुपए की क्षतिपूर्ति राशि जमा करने को कहा, जिसे शिकायतकर्ता सक्सेना को जारी करना था। सत्र न्यायालय ने कहा कि मुआवजा राशि कानून के अनुसार जुर्माने के रूप में वसूल की जा सकेगी।

25 साल पहले जारी अपमानजनक विज्ञप्ति के खिलाफ लगाया था केस

दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ यह केस 24 नवंबर, 2000 को जारी एक अपमानजनक प्रेस विज्ञप्ति’ के लिए दायर किया था, जब वह नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष थे।

पिछले साल 24 मई को मजिस्ट्रेट अदालत ने माना था कि पाटकर के बयानों में सक्सेना को ‘कायर’ कहा गया था और हवाला लेन-देन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाया गया था, जो न केवल अपने आप में अपमानजनक था, बल्कि उनके बारे में नकारात्मक धारणाओं को भड़काने के लिए तैयार किया गया था।

अदालत ने कहा था कि शिकायतकर्ता पर गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रखने का आरोप उनकी ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा पर सीधा हमला था।