सरकारी टेंडर के सपने दिखाए, खुद को अमित शाह का भतीजा बता ठगे 3.90 करोड़; दिल्ली कोर्ट ने नहीं दी जमानत
दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने मंगलवार को अजय कुमार नय्यर को जमानत देने से मना कर दिया। नय्यर पर खुद को केंद्रीय गृह मंत्री का भतीजा बताकर धोखाधड़ी करने का आरोप है। आरोप है कि उसने शिकायतकर्ता को आश्वासन दिया था कि वह उसे 90 करोड़ रुपये का टेंडर दिलवाएगा।

दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने मंगलवार को अजय कुमार नय्यर को जमानत देने से मना कर दिया। नय्यर पर खुद को केंद्रीय गृह मंत्री का भतीजा बताकर धोखाधड़ी करने का आरोप है। आरोप है कि उसने शिकायतकर्ता को आश्वासन दिया था कि वह उसे 90 करोड़ रुपये का टेंडर दिलवाएगा और उससे 3.9 करोड़ रुपये प्राप्त किए। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) डॉ. हरदीप कौर ने नययर की जमानत याचिका खारिज कर दी। वह 10 नवंबर, 2021 से हिरासत में है।
एएसजे कौर ने आदेश में कहा, "आरोपों और अपराध की गंभीरता को देखते हुए, यह अदालत आवेदक/आरोपी को जमानत पर रिहा करने की इच्छुक नहीं है। इसलिए, वर्तमान जमानत याचिका खारिज की जाती है।" जमानत याचिका खारिज करते हुए, कोर्ट ने कहा, "आरोपी ने खुद को केंद्रीय गृह मंत्री का भतीजा बताकर अपराध को अंजाम देने में सक्रिय भूमिका निभाई थी और शिकायतकर्ता को 90 करोड़ रुपये का बड़ा टेंडर दिलाने का आश्वासन दिया था और शिकायतकर्ता से नकद और आरटीजीएस के जरिए 3.9 करोड़ रुपये प्राप्त किए थे।"
अदालत ने कहा, "आरोपी के खिलाफ आरोप गंभीर प्रकृति के हैं। रिकॉर्ड से यह साफ है कि शिकायतकर्ता की गवाही पूरी नहीं हुई है। उसकी जिरह अभी भी जारी है।" पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने बताया कि शिकायतकर्ता ने अब तक अभियोजन पक्ष के मामले का सपोर्ट किया है। आरोपी के वकील ने बताया है कि वह पिछले तीन साल और 3 महीने (39 महीने) से हिरासत में है। उससे संबंधित जांच पूरी हो चुकी है और आरोप पत्र पहले ही दाखिल किया जा चुका है। अन्य आरोपियों को पहले ही जमानत मिल चुकी है।
अदालत ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा, "इसके अलावा, आरोपी समानता के आधार पर जमानत का दावा नहीं कर सकता, क्योंकि रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि आवेदक/अभियुक्त की भूमिका सह-अभियुक्त व्यक्तियों की भूमिका से अलग है, जिन्हें पहले ही जमानत पर रिहा किया जा चुका है।" अदालत ने आदेश में कहा, "ऐसे मामलों में हिरासत की अवधि और आरोप पत्र दाखिल करना अपने आप में जमानत का आधार नहीं है, जबकि अदालत को आरोप की प्रकृति और गंभीरता, सजा की गंभीरता और अभियुक्त के फरार होने या भागने के खतरे जैसे अन्य कारणों पर विचार करना होता है। अभियुक्त का चरित्र, व्यवहार, साधन, स्थिति और प्रतिष्ठा, अपराध के दोहराए जाने की संभावना, गवाह को प्रभावित/धमकाए जाने की उचित आशंका और निश्चित रूप से, जमानत दिए जाने से न्याय को विफल किए जाने का खतरा।"