Delhi Police have registered an FIR on a complaint against Arvind Kejriwal and others अरविंद केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने दर्ज की FIR, कोर्ट ने दिया था आदेश; क्या है मामला, Ncr Hindi News - Hindustan
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अरविंद केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने दर्ज की FIR, कोर्ट ने दिया था आदेश; क्या है मामला

दिल्ली पुलिस ने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और अन्य के खिलाफ सार्वजनिक संपत्ति अधिनियम के कथित उल्लंघन की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की है।

Praveen Sharma लाइव हिन्दुस्तानFri, 28 March 2025 10:37 AM
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अरविंद केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने दर्ज की FIR, कोर्ट ने दिया था आदेश; क्या है मामला

दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं। दिल्ली पुलिस ने कोर्ट के आदेश के बाद अरविंद केजरीवाल और अन्य के खिलाफ सार्वजनिक संपत्ति अधिनियम के कथित उल्लंघन की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की है। दिल्ली पुलिस ने राउज एवेन्यू कोर्ट में अनुपालन रिपोर्ट दाखिल कर बताया है कि एफआईआर दर्ज कर ली गई है।

न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार को अदालत को सूचित किया कि उसने पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल और अन्य के खिलाफ 2019 में राजधानी में बड़े-बड़े होर्डिंग लगाकर जनता के पैसे का कथित रूप से दुरुपयोग करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की है।

एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने 11 मार्च को पुलिस को एक शिकायत पर एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया था, जिसमें संपत्ति विरूपण रोकथाम अधिनियम के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है। पुलिस द्वारा मामले की जांच के लिए समय मांगे जाने के बाद अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 18 अप्रैल को होगी।

केजरीवाल के अलावा, अदालत ने ‘आप’ पूर्व विधायक गुलाब सिंह और तत्कालीन द्वारका पार्षद नितिका शर्मा के खिलाफ "बड़े-बड़े आकार के" बैनर लगाने के लिए एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था।

2019 में दर्ज शिकायत में आरोप लगाया गया था कि केजरीवाल, गुलाब सिंह और नितिका शर्मा ने क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर बड़े आकार के होर्डिंग्स लगाकर जानबूझकर सार्वजनिक धन का दुरुपयोग किया।

जज नेहा मित्तल ने अपने आदेश में कहा था कि शिव कुमार सक्सेना नाम के व्यक्ति ने समय और तारीख के साथ ऐसे साक्ष्य पेश किए हैं, जिनसे पता चलता है कि अवैध बैनर पर केजरीवाल और अन्य आरोपियों के नाम के साथ-साथ उनकी तस्वीरें भी प्रकाशित की गई थीं।

कोर्ट ने कहा था, “अपराध की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह न केवल आंखों में खटकने वाला और सार्वजनिक परेशानी पैदा करने वाला है, जिससे शहर की सुंदरता नष्ट हुई, बल्कि यातायात में बाधा डालकर उसके सुचारू प्रवाह के लिए भी खतरनाक है और पैदल चलने वाले राहगीरों तथा वाहन चालकों की सुरक्षा के समक्ष चुनौती पेश करता है। भारत में अवैध होर्डिंग गिरने और इससे लोगों की जान जाने की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं।”

साक्ष्य का संज्ञान लेते हुए अदालत ने कहा कि बैनर बोर्ड या होर्डिंग लगाना अधिनियम की धारा-3 के तहत संपत्ति को विरूपित करने के समान है। अदालत ने कहा, “सीआरपीसी की धारा-156 (3) (संज्ञेय अपराध में पुलिस जांच का आदेश देने की मजिस्ट्रेट की शक्ति) के तहत दायर आवेदन स्वीकार किए जाने योग्य है।”

अदालत ने कहा कि संबंधित एसएचओ को “दिल्ली संपत्ति विरूपण रोकथाम अधिनियम, 2007 की धारा-3” और मामले के तथ्यों से प्रतीत होने वाले किसी भी अन्य अपराध के तहत तत्काल एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया जाता है। कोर्ट कहा कि अधिनियम की धारा-5 के तहत अपराध को संज्ञेय माना गया है। अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता से जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ सबूत जुटाने की उम्मीद करना अनुचित होगा और केवल दिल्ली पुलिस ही गहन जांच कर सकती है।

अदालत ने कहा, “जांच एजेंसी यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती कि समय बीत जाने के कारण सबूत नहीं जुटाए जा सके।”

अदालत ने आश्चर्य जताया कि एसएचओ की ऐक्शन टेकन रिपोर्ट में इस बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है कि शिकायतकर्ता की ओर से बताई गई तारीख और समय पर होर्डिंग मौजूद थे या नहीं।

एसएचओ के आचरण की निंदा करते हुए अदालत ने कहा, “एटीआर में की गई यह टिप्पणी कि जांच के दिन कोई होर्डिंग नहीं मिला, जांच एजेंसी द्वारा अदालत को गुमराह करने की कोशिश प्रतीत होती है।”

अदालत ने पुलिस को होर्डिंग से जुड़ी बातों का खुलासा करने का निर्देश दिया था, खासकर यह कि होर्डिंग की छपाई कहां हुई और इसे किसने लगाया। अदालत ने सरकारी वकील के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि शिकायत में कुछ लोगों के नाम छूट गए थे। कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा नाम लेना या छोड़ना जांच की दिशा निर्धारित नहीं कर सकता। अदालत ने कहा कि जांच एजेंसी के पास किसी भी व्यक्ति को आरोपी बनाने का पर्याप्त अधिकार है, भले ही उसका नाम शिकायत में न हो।