Supreme Court Asks Government if Muslims Can Join Hindu Trusts Amid Waqf Amendment Act Controversy अपडेट--वक्फ कानून: केंद्र बताए क्या मुस्लिम को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में हिस्सा बनने की अनुमति देंगे: सुप्रीम कोर्ट, Delhi Hindi News - Hindustan
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अपडेट--वक्फ कानून: केंद्र बताए क्या मुस्लिम को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में हिस्सा बनने की अनुमति देंगे: सुप्रीम कोर्ट

हेडिंग विकल्प: 1.क्या मुस्लिम हिंदू ट्रस्ट में शामिल हो सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट 2.केंद्र

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 16 April 2025 10:01 PM
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अपडेट--वक्फ कानून: केंद्र बताए क्या मुस्लिम को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में हिस्सा बनने की अनुमति देंगे: सुप्रीम कोर्ट

हेडिंग विकल्प: 1.क्या मुस्लिम हिंदू ट्रस्ट में शामिल हो सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

2.केंद्र बताए क्या हिंदू ट्रस्ट में मुस्लिम हो सकते हैं: शीर्ष कोर्ट

फ्लैग: केंद्र सरकार से संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर पारित करेंगे अंतरिम आदेश

नंबर गेम

- 72 से अधिक याचिकओं पर सुप्रीम सुनवाई

- 03 जजों की पीठ मामले पर कर रही सुनवाई

- 08 अप्रैल को केंद्र ने दायर की थी कैविएट

- 02 बजे दोपहर में आज फिर से सुनवाई होगी

अंतरिम आदेश को लेकर टिप्पणी

- सुनवाई पूरी नहीं होने तक अदालत या उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ घोषित की गई संपत्तियों को गैर अधिसूचित नहीं किया जाएगा

- वक्फ संशोधन अधिनियम का वह प्रावधान लागू नहीं होगा, जिसके तहत वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा

- वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में पदेन सदस्यों को छोड़कर सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए

- उच्च न्यायालयों में बीते 30 सालों से वक्फ कानून 1995 को चुनौती देने वाली 140 याचिकाओं को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने का भी प्रस्ताव किया।

सिब्बल ने क्या कहा?

- बोर्ड में गैर मुस्लिम को शामिल किए जाने के प्रावधान को अनुच्छेद 26 का सीधा उल्लंघन

- यह फैसला 20 करोड़ लोगों की आस्था को संसदीय अधिनियम के तहत हड़पने के समान है

- नए कानून में वक्फ की संपत्तियों के पंजीकरण को अनिवार्य किए जाने पर भी सवाल उठाया

- वक्फ अधिनियम पर सीमा अधिनियम के लागू होने पर भी आपत्ति जताई

नई दिल्ली़, प्रभात कुमार। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार से यह बताने के लिए कहा कि ‘क्या हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुस्लिम समुदाय के लोगों को सदस्य बनाने की अनुमति देंगे? शीर्ष अदालत ने वक्फ संशोधन अधिनियम-2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। आज भी दो बजे से इस मुद्दे पर सुनवाई होगी।

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की पीठ ने यह सवाल तब किया, जब केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने कहा कि मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा वर्ग वक्फ अधिनियम द्वारा शासित नहीं होना चाहता है। मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने इस पर एसजी मेहता से कहा कि ‘क्या आप यह कह रहे हैं कि अब से आप मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों बोर्डों का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे? जरा इस बारे में जो भी कहना चाहते हैं, स्पष्ट रूप से कहें। इसके साथ ही, करीब 2 घंटे से अधिक समय तक चली लंबी सुनवाई के दौरान पीठ ने इस मुद्दे पर अंतरिम आदेश पारित करने का प्रस्ताव किया। मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने कहा कि वह इस मु्द्दे पर अंतरिम आदेश पारित करना चाहते हैं जो पूरी तरह से संतुलित होगा। इसके साथ ही उन्होंने निम्नलिखित निर्देशों के साथ एक अंतरिम आदेश पारित करने का प्रस्ताव रखा। पीठ ने कहा कि पहला निर्देश यह होगा कि ‘जब तक मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती है तब के लिए अदालत या उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ घोषित की गई संपत्तियों को गैर अधिसूचित नहीं किया जाएगा, चाहे वे उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ हों या विलेख द्वारा वक्फ। इसके अलावा, जबकि न्यायालय मामले की सुनवाई कर रहा है। पीठ ने कहा कि दूसरा निर्देश यह होगा कि वक्फ संशोधन अधिनियम का वह प्रावधान लागू नहीं होगा, जिसके तहत वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा, जबकि कलेक्टर इस बात की जांच कर रहा है कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं। पीठ ने कहा कि तीसरा निर्देश यह होगा कि वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में पदेन सदस्यों को छोड़कर सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए। इसके अलावा शीर्ष अदालत ने विभिन्न उच्च न्यायालयों में पिछले 30 सालों से वक्फ कानून 1995 को चुनौती देने वाली करीब 140 याचिकाओं को भी शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने का भी प्रस्ताव किया।

केंद्र ने किया कड़ा विरोध

शीर्ष अदालत द्वारा प्रस्तावित इस अंतरिम आदेश का केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कड़ा विरोध किया। इसके बाद पीठ ने कहा कि गुरुवार को दो बजे मामले की दोबारा से सुनवाई करेंगे। पीठ ने यह भी साफ कर दिया कि यदि केंद्र हमारे सवालों का समुचित व संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर हम अंतरिम आदेश पारित करेंगे। वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 60 से अधिक याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है। मूल कानून वक्फ अधिनियम, 1995 को चुनौती देने वाली एक याचिका दाखिल की गई है। भाजपा शासित असम, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र ने इस कानून के समर्थन करते याचिका दाखिल की है।

वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम को शामिल करने का विरोध किया

कपिल सिब्बल ने वक्फ संशोधन कानून की धारा 9 और 14 का विरोध किया जिसके तहत केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का प्रावधान किया गया है। उन्होंने बोर्ड में गैर मुस्लिम को शामिल किए जाने के प्रावधान को अनुच्छेद 26 का सीधा उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा कि सिख गुरुद्वारों से संबंधित केंद्रीय कानून और हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती पर कई राज्य कानून संबंधित बोर्डों में अन्य धर्मों के लोगों को शामिल करने की अनुमति नहीं देते हैं। सिब्बल ने पीठ से कहा कि यह 20 करोड़ लोगों की आस्था को संसदीय अधिनियम के तहत हड़पने के समान है। साथ ही कहा कि कान में संशोधन के बाद, बोर्ड के सीईओ को मुस्लिम होने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि नए कानून के ये प्रावधान नामांकन के माध्यम से बोर्डों का पूर्ण अधिग्रहण की अनुमति देते हैं।

पंजीकरण को अनिवार्य किए जाने में क्या गलत है: मुख्य न्यायाधीश

मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने नए कानून में वक्फ की संपत्तियों के पंजीकरण को अनिवार्य किए जाने पर सवाल उठाया। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ‘इसमें क्या गलत है? इसके जवाब में वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि वर्तमान में, पंजीकरण के बिना उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ बनाया जा सकता है। इस पर पीठ ने कहा कि ‘आप एक वक्फ पंजीकृत कर सकते हैं जो आपको एक रजिस्टर बनाए रखने में भी मदद करेगा। न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने भी कहा कि ‘यदि आपके पास कोई डीड है, तो कोई भी फर्जी या झूठा दावा नहीं कर कर सकेगा।

क्या 300 साल पहले कोई वक्फ बनाया गया था

न्यायाधीशों की टिप्पणी पर वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि ‘वे हमसे पूछेंगे कि क्या 300 साल पहले कोई वक्फ बनाया गया था और डीड पेश करने को कहेंगे। इनमें से कई संपत्तियां सैकड़ों साल पहले बनाई गई थीं और कोई दस्तावेज नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि जब अंग्रेज आए, तो कई वक्फ संपत्तियों को गवर्नर जनरल के रूप में रजिस्टर में दर्ज किया गया था और आजादी के बाद, सरकार ऐसी संपत्तियों पर दावा कर रही है। सिब्बल ने वक्फ अधिनियम पर सीमा अधिनियम के लागू होने पर भी आपत्ति जताई। हालांकि, पीठ कहा कि आप वास्तव में यह नहीं कह सकते कि यदि आप सीमा अवधि लागू करते हैं, तो यह असंवैधानिक होगा।

‘वक्फ भूमि पर दिल्ली हाईकोर्ट और ओबेराय होटल

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि ‘हमें बताया गया है कि दिल्ली उच्च न्यायालय की इमारत वक्फ भूमि पर है। ओबेरॉय होटल भी वक्फ भूमि पर है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि सभी वक्फ-बाय-यूजर संपत्तियां गलत हैं। लेकिन चिंता के कुछ वास्तविक क्षेत्र भी हैं। पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन की दलीलों पर यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि वक्फ इस्लाम का एक अनिवार्य और अभिन्न अंग है, जैसे दान आस्था का एक अनिवार्य और अभिन्न अंग है। याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि वक्फ-बाय-यूजर शब्द को हटाना खतरनाक है क्योंकि आठ लाख संपत्तियों में से लगभग चार लाख संपत्तियां वक्फ-बाय-यूजर हैं, जो अब कलम के एक झटके से अवैध हो गई हैं।

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कोर्ट रूम लाइव

हम दो पहलुओं पर विचार करना चाहते हैं

सुनवाई शुरू होते ही मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने कहा कि ‘हम दो पहलुओं पर विचार करना चाहते हैं। पहला क्या हमें इन याचिकाओं पर विचार करना चाहिए या उन्हें हाईकोर्ट में भेजना चाहिए। दूसरा, आप किन बिंदुओं पर बहस करना चाहते हैं? दूसरा पहलू हमें पहले मुद्दे पर निर्णय लेने में मदद कर सकता है। उन्होंने मामले में शामिल वकीलों से मर्यादा बनाए रखने का आग्रह करते हुए कहा कि हम सभी का नाम लेंगे और वे अपना पक्ष रखेंगे।

अनुच्छेद 26 का उल्लंघन

याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस की शुरुआत करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि ‘संसदीय अधिनियम के जरिए आस्था के आवश्यक और अभिन्न अंगों पर हस्तक्षेप किया गया। उन्होंने संशोधित कानून के कई प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करते हैं। उन्होंने याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिनियम की धारा 3(आर) के तहत शर्तों का हवाला देते हुए कहा कि ‘अगर मैं वक्फ स्थापित करना चाहता हूं, तो मुझे सरकार को यह दिखाना होगा कि मैं 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा हूं। अगर मैं मुसलमान पैदा हुआ हूं, तो मैं ऐसा क्यों करूंगा? क्या राज्य तय करेगा कि मैं कितना अच्छा या बुरा मुसलमान हूं? उन्होंने कहा कि मेरा पर्सनल लॉ लागू होगा। वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि आप (सरकार) कौन होते हैं यह कहने वाले कि वक्फ-बाय-यूजर नहीं हो सकता? इसके बाद उन्होंने धारा 3ए (वक्फ-अल-औलाद पर) पर भी सवाल किया। उन्होंने कहा कि राज्य कौन होता है यह तय करने के लिए कि उत्तराधिकार कैसे होना चाहिए?

अनुच्छेद 26 सार्वभौमिक, धर्मनिरपेक्ष

सिब्बल के पक्ष पर मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि हिंदुओं के मामले में संसद ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम बनाया है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 26 विधायिका को कानून बनाने से नहीं रोकता है। अनुच्छेद 26 सार्वभौमिक, धर्मनिरपेक्ष है, सभी समुदायों पर लागू होता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू संरक्षकता अधिनियम आदि बनाए गए।

उत्तराधिकार की मृत्यु के बाद लागू होता है

इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि उत्तराधिकार व्यक्ति की मृत्यु के बाद ही लागू होता है और यहां राज्य व्यक्ति के जीवन के दौरान इस पहलू में हस्तक्षेप कर रहा था।

सिब्बल ने उठाया धारा 3डी के प्रावधानों पर सवाल

‌सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने धारा 3डी के प्रावधानों पर सवाल उठाया जो एएसएएमआर अधिनियम के तहत एएसआई-संरक्षित स्मारकों पर वक्फ के निर्माण को अमान्य करता है।

ऐसा वक्फ अमान्य होगा

इस पर मुख्य मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि प्रावधान के अनुसार, यदि संपत्ति वक्फ के निर्माण के समय संरक्षित स्मारक थी, तो ऐसा वक्फ अमान्य होगा। उन्होंने पूछा कि ‘ऐसे कितने मामले होंगे?

सिब्बल ने पेश किया जामा मस्जिद का उदाहरण

इसके जवाब में सिब्बल ने दिल्ली के जामा मस्जिद का उदाहरण दिया।

मेरे हिसाब से व्याख्या आपके पक्ष में

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जामा मस्जिद को बाद में संरक्षित स्मारक के रूप में अधिसूचित किया गया था। उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल से कहा कि ‘मेरे हिसाब से व्याख्या आपके पक्ष में है। अगर इसे प्राचीन स्मारक घोषित किए जाने से पहले वक्फ घोषित किया जाता है, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यह वक्फ ही रहेगा, आपको तब तक आपत्ति नहीं करनी चाहिए जब तक कि इसे संरक्षित घोषित किए जाने के बाद इसे वक्फ घोषित नहीं किया जा सकता। अधिकांश स्मारक, प्राचीन मस्जिदें, इस धारा से प्रभावित नहीं होंगी।

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हेडिंग:: विवाद का फैसला होने तक संपत्ति को वक्फ क्यों नहीं माना जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

- अदालत ने कहा कि सिविल कोर्ट को इसका फैसला करने दें

- संपत्ति पंजीकृत है तो वे वक्फ के रूप में बनी रहेगी

नई दिल्ली, प्रभात कुमार। वक्फ संशोधन अधिनियम-2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने वक्फ संशोधन कानून के उस प्रावधान के बारे में केंद्र सरकार से सवाल किया, जिसमें कहा गया है कि विवाद होने पर संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा।

मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने सवाल किया कि विवाद का फैसला होने तक संपत्ति को वक्फ क्यों नहीं माना जाना चाहिए? सिविल कोर्ट को इसका फैसला करने दें। उन्होंने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वक्फ-बाय-यूजर, यदि 2025 अधिनियम से पहले स्वीकार किया गया था, तो क्या अब इसे शून्य या अस्तित्वहीन घोषित किया गया है? इसके जवाब में केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ‘यदि संपत्ति पंजीकृत है, तो नहीं यानी यदि संपत्ति पंजीकृत हैं तो वे वक्फ के रूप में बने रहेंगे)। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कानून के शर्तों के बारे में स्पष्टता देने कहा कि संपत्ति विवादित नहीं होनी चाहिए। उन्होंने सरकार से कहा कि ‘अंग्रेजों के आने से पहले हमारे पास कोई पंजीकरण नहीं था। कई मस्जिदें 14वीं या 15वीं सदी में बनी हैं। उनसे पंजीकृत दस्तावेज पेश करने की अपेक्षा करना असंभव है। अधिकांश मामलों में, जैसे कि जामा मस्जिद दिल्ली, वक्फ उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ होगा। इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि उन्हें पंजीकरण करने से किसने रोका? इस पर जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि ‘क्या होगा यदि सरकार यह कहते हुए धारा 3सी लागू करती है कि यह सरकारी भूमि है? मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने उस प्रावधान के बारे में सरकार से सवाल पूछा है जिसमें कहा गया है कि कलेक्टर द्वारा यह जांच शुरू करने के तुरंत बाद कि यह सरकारी भूमि है, संपत्ति वक्फ नहीं रह जाएगी। उन्होंने कहा कि कानून का यह प्रावधान क्या यह उचित है? सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वक्फ के रूप में संपत्ति का उपयोग बंद नहीं किया गया है और प्रावधान केवल यह कहता है कि इस बीच इसे वक्फ के रूप में लाभ नहीं मिलेगा। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यदि संपत्ति किराया पैदा कर रही है, तो किराया किसे देना होगा? इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ट्रिब्यूनल और रिट कोर्ट के समक्ष उपचार पीड़ित पक्ष के लिए उपलब्ध हैं, और प्रावधान केवल राजस्व प्रविष्टियों से संबंधित है। एसजी ने कहा कि अधिनियम के तहत पारित प्रत्येक आदेश न्यायिक समीक्षा के अधीन है।

तो यह चिंता करने वाला मुद्दा होगा

मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने फिर से सवाल दोहराया कि क्या वक्फ-बाय-यूजर अब वैध है या नहीं? इस पर एसजी मेहता ने कहा कि यदि वे पंजीकृत हैं, तो उन्हें मान्यता दी जाएगी और 2013 से पंजीकरण अनिवार्य है। मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने जवाब पर असंतोष जताने हुए कहा कि यह कानून द्वारा स्थापित किसी चीज को खत्म करना होगा। आप वक्फ-बाय-यूजर लेकिन वास्तविक वक्फ-बाय-यूजर भी हैं। मैंने 1920 से प्रिवी काउंसिल के निर्णयों को पढ़ा है। यदि आप वक्फ-बाय-यूजर संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने जा रहे हैं, तो यह एक चिंता पैदा करने वाला मुद्दा होगा।

निर्णय को बाध्यकारी नहीं घोषित कर सकते

मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने केंद्र सरकार से कानून की धारा 2ए के उस प्रावधान के बारे में सवाल किया जिसमें कहा गया है कि अदालत के किसी भी निर्णय के बावजूद ट्रस्ट की संपत्ति वक्फ अधिनियम के अंतर्गत नहीं आएगी। उन्होंने सरकार से कहा कि ‘संसद न्यायालय के किसी भी निर्णय या डिक्री को शून्य घोषित नहीं कर सकती, आप (सरकार) कानून के आधार को हटा सकते हैं लेकिन आप किसी भी निर्णय को बाध्यकारी नहीं घोषित कर सकते हैं। इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि ‘मुझे नहीं पता कि वे शब्द क्यों आए हैं, आप उस हिस्से को अनदेखा करें। मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग है जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा शासित नहीं होना चाहता। उन्होंने कहा कि यदि कोई मुसलमान दान करना चाहता है, तो वह ट्रस्ट के माध्यम से ऐसा कर सकता है।

जब हम निर्णय देने बैठते हैं तो अपना धर्म खो देंते हैं

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने मामले की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की एक दलील पर कड़ी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों के शामिल किए जाने पर केंद्र सरकार से सवाल किया और कहा कि इसमें मुस्लिम समुदाय बहुमत में क्यों नहीं है? इस सवाल का जवाब देते हुए, एसजी मेहता ने कहा कि उनके (याचिकाकर्ता) तर्क के अनुसार, तो आपके आधिपत्य यानी पीठ में शामिल जज भी इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकते। इस पर मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने कड़ी नाराजगी जाहिर की और कहा कि ‘जब हम यहां निर्णय लेने के लिए बैठते हैं, तो हम अपना धर्म खो देते हैं।

वक्फ बोर्ड में अधिकांश मुस्लिम होंगे

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम एक ऐसे बोर्ड की बात कर रहे हैं जो धार्मिक मामलों का प्रबंधन कर रहा है। मान लीजिए हिंदू मंदिर में, गवर्निंग काउंसिल में सभी हिंदू हैं। आप न्यायाधीशों से किस तरह तुलना कर रहे हैं? इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता जोर देकर कहा कि वक्फ बोर्ड की संरचना में अधिकांश मुस्लिम होंगे और गैर-मुस्लिम सदस्य 2 से अधिक नहीं होंगे। इस पर जस्टिस संजय कुमार ने कहा कि वक्फ संशोधन कानून के प्रावधान में यह नहीं कहा गया है कि केवल दो सदस्य गैर-मुस्लिम होंगे। उन्होंने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि आपकी दलील कानून के साथ विरोधाभासी है। इस पर एसजी मेहता ने कहा कि वह इस बारे में एक हलफनामा दाखिल करेंगे और कहा कि बोर्ड की वर्तमान संरचना उनके कार्यकाल के अंत तक जारी रहेगी।

अतीत को नहीं लिख सकते-

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने वक्फ संशोधन कानून की धारा 2ए के प्रावधान के बारे में भी चिंता जताते हुए कहा कि जहां सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ घोषित किया गया है, मान लीजिए 100 या 200 साल पहले, आप पलटकर कहते हैं कि यह वक्फ नहीं है...आप 1000 साल पहले के अतीत को फिर से नहीं लिख सकते!

केंद्र सरकार ने मजबूती से रखा पक्ष

सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस बात पर जोर दिया कि वक्फ कानून में संशोधन से पहले सभी हितधारकों के पक्षों को सुना गया। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर संयुक्त संसदीय समिति बनाई थी जो कि 38 बैठकें की ओर 29 लाख लोगों द्वारा भेजे गए सुझाव पर विचार के बाद अपनी रिपोर्ट दी थी।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस बात पर जोर दिया कि संसद के दोनों सदनों ने जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों ने लंबी बहस के बाद इस विधेयक पारित किया। केंद्र के इस दलील पर मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने सॉलिसिटर जनरल मेहता से सवाल कि ‘क्या अब आप यह कह रहे हैं कि वक्फ-बाय-यूजर, भले ही न्यायालयों के निर्णयों द्वारा या बिना किसी विवाद के स्थापित हो, अब अमान्य हो गया है? इसके जवाब में एसजी मेहता ने ‘वक्फ की अवधारणा के बारे में पीठ को जानकारी देते हुए कहा कि ‘इस्लामिक कानून के तहत वक्फ का अर्थ है धर्मार्थ उद्देश्य के लिए सर्वशक्तिमान अल्लाह को संपत्ति समर्पित करना। एक वक्फ होना चाहिए, जो कहेगा कि संपत्ति का प्रबंधन मुतवल्ली द्वारा किया जाना चाहिए...यह कानून वहां तस्वीर में नहीं आता है। वक्फ बोर्ड अलग है। यह संशोधन वक्फ को नहीं छूता है। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने वक्फ की स्थिति के बारे में सवाल किया। जस्टिस केवी विश्वनाथन ने भी सवाल करते हुए कहा कि ‌इसका सबसे सटीक‌ उदाहरण हिंदू चैरिटेबल एंडॉमेंट्स एक्ट है। जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कहा कि ‘जब भी हिंदू एंडॉमेंट्स की बात आती है, तो हिंदू ही इसे नियंत्रित करते हैं। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कहा कि नियंत्रण एक बोर्ड द्वारा किया जाएगा, जिसमें हिंदू या गैर-हिंदू शामिल हो सकते हैं। इस पर जस्टिस संजय कुमार ने मेहता से एक उदाहरण देने को कहा। साथ ही कहा कि तिरुपति मंदिर बोर्ड में कोई हिंदू नहीं है। इस पर एसजी मेहता ने जवाब दिया कि ‘चैरिटी कमिश्नर। जस्टिस कुमार ने कहा कि पीठ सामान्य ट्रस्टों के बारे में नहीं बल्कि धार्मिक बंदोबस्ती के बारे में बात कर रही है।

राष्ट्रपति से मिल चुकी है मंजूरी

वक्फ बिल को लोकसभा से तीन अप्रैल को मंजूरी मिली थी। बिल के पक्ष में 128 जबकि विपक्ष में 95 वोट पड़े थे। 4 अप्रैल को बिल राज्यसभा से पास हुआ था। 288 सदस्यों ने पक्ष में जबकि 232 ने इसके विरोध में मतदान किया था। 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने हस्ताक्षर कर इसे अनुमति दे दी थी।

कई नेताओं ने दी है चुनौती

वक्फ संसोधन अधिनियम-2025 को चुनौती देने के लिए करीब 72 याचिकाएं दायर हुई हैं। इसमें एआईएमआईएम नेता असद्दुदीन ओवैसी के साथ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत-उलेमा-ए- हिंद, डीएमके, कांग्रेस सांसद प्रताप इमरानगढ़ी और मो. जावेद समेत अन्य ने अधिनियम को चुनौती दी है।

प्रबंधन में सुधार वक्त की जरूरत

सुप्रीम कोर्ट में मामला जाने के बाद छह भाजपा शासित राज्यों ने वक्फ कानून के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट कैविएट दाखिल की है। इसमें हरियाणा, महाराष्ट्र्र मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और असम ने याचिका दायर कर कहा है कि नए वक्फ कानून को लागू नहीं किया जाता है तो कई तरह की कानूनी चुनौतियां आ सकती है। हरियाणा ने कहा है कि वक्फ संपत्तियों को लेकर प्रबंधन में सुधार वक्त की जरूरत है।

केंद्र ने दाखिल की है कैविएट

केंद्र सरकार ने इस मामले में आठ अप्रैल को कैविएट दाखिल कर कहा था कि इस मामले में कोई भी फैसला देने से पहले सुनवाई हो। इस संबंध में हाईकोर्ट में कैविएट दाखिल कर मांग की गई है कि इस मामले में बिना सुनवाई के कोई फैसला नहीं दिया जाए। कैविएट में केंद्र ने बताया है कि इस मामले में सुनवाई क्यों जरूरी है। सरकार ने इस संबंध में कई तथ्य पेश किए थे।

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