वक्फ कानून: केंद्र बताए क्या मुस्लिम को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में हिस्सा बनने की अनुमति देंगे: सुप्रीम कोर्ट
फ्लैग: केंद्र सरकार से संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर पारित करेंगे अंतरिम आदेश नंबर

फ्लैग: केंद्र सरकार से संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर पारित करेंगे अंतरिम आदेश नंबर गेम
- 72 से अधिक याचिकओं पर सुप्रीम सुनवाई
- 03 जजों की पीठ मामले पर कर रही सुनवाई
- 08 अप्रैल को केंद्र ने दायर की थी कैविएट
- 02 बजे दोपहर में आज फिर से सुनवाई होगी
अंतरिम आदेश को लेकर टिप्पणी
- सुनवाई पूरी नहीं होने तक अदालत या उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ घोषित की गई संपत्तियों को गैर अधिसूचित नहीं किया जाएगा
- वक्फ संशोधन अधिनियम का वह प्रावधान लागू नहीं होगा, जिसके तहत वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा
- वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में पदेन सदस्यों को छोड़कर सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए
- उच्च न्यायालयों में बीते 30 सालों से वक्फ कानून 1995 को चुनौती देने वाली 140 याचिकाओं को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने का भी प्रस्ताव किया।
सिब्बल ने क्या कहा?
- बोर्ड में गैर मुस्लिम को शामिल किए जाने के प्रावधान को अनुच्छेद 26 का सीधा उल्लंघन
- यह फैसला 20 करोड़ लोगों की आस्था को संसदीय अधिनियम के तहत हड़पने के समान है
- नए कानून में वक्फ की संपत्तियों के पंजीकरण को अनिवार्य किए जाने पर भी सवाल उठाया
- वक्फ अधिनियम पर सीमा अधिनियम के लागू होने पर भी आपत्ति जताई
नई दिल्ली़, प्रभात कुमार। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार से यह बताने के लिए कहा कि ‘क्या हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुस्लिम समुदाय के लोगों को सदस्य बनाने की अनुमति देंगे? शीर्ष अदालत ने वक्फ संशोधन अधिनियम-2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की पीठ ने यह सवाल तब किया, जब केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने कहा कि मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा वर्ग वक्फ अधिनियम द्वारा शासित नहीं होना चाहता है। मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने इस पर एसजी मेहता से कहा कि ‘क्या आप यह कह रहे हैं कि अब से आप मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों बोर्डों का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे? जरा इस बारे में जो भी कहना चाहते हैं, स्पष्ट रूप से कहें। इसके साथ ही, करीब 2 घंटे से अधिक समय तक चली लंबी सुनवाई के दौरान पीठ ने इस मुद्दे पर अंतरिम आदेश पारित करने का प्रस्ताव किया। मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने कहा कि वह इस मु्द्दे पर अंतरिम आदेश पारित करना चाहते हैं जो पूरी तरह से संतुलित होगा। इसके साथ ही उन्होंने निम्नलिखित निर्देशों के साथ एक अंतरिम आदेश पारित करने का प्रस्ताव रखा। पीठ ने कहा कि पहला निर्देश यह होगा कि ‘जब तक मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती है तब के लिए अदालत या उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ घोषित की गई संपत्तियों को गैर अधिसूचित नहीं किया जाएगा, चाहे वे उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ हों या विलेख द्वारा वक्फ। इसके अलावा , जबकि न्यायालय मामले की सुनवाई कर रहा है। पीठ ने कहा कि दूसरा निर्देश यह होगा कि वक्फ संशोधन अधिनियम का वह प्रावधान लागू नहीं होगा, जिसके तहत वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा, जबकि कलेक्टर इस बात की जांच कर रहा है कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं। पीठ ने कहा कि तीसरा निर्देश यह होगा कि वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में पदेन सदस्यों को छोड़कर सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए। इसके अलावा शीर्ष अदालत ने विभिन्न उच्च न्यायालयों में पिछले 30 सालों से वक्फ कानून 1995 को चुनौती देने वाली करीब 140 याचिकाओं को भी शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने का भी प्रस्ताव किया।
केंद्र ने किया कड़ा विरोध
शीर्ष अदालत द्वारा प्रस्तावित इस अंतरिम आदेश का केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कड़ा विरोध किया। इसके बाद पीठ ने कहा कि गुरुवार को दो बजे मामले की दोबारा से सुनवाई करेंगे। पीठ ने यह भी साफ कर दिया कि यदि केंद्र हमारे सवालों का समुचित व संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर हम अंतरिम आदेश पारित करेंगे। वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 60 से अधिक याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है। मूल कानून वक्फ अधिनियम, 1995 को चुनौती देने वाली एक याचिका दाखिल की गई है। भाजपा शासित असम, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र ने इस कानून के समर्थन करते याचिका दाखिल की है।
वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम को शामिल करने का विरोध किया
कपिल सिब्बल ने वक्फ संशोधन कानून की धारा 9 और 14 का विरोध किया जिसके तहत केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का प्रावधान किया गया है। उन्होंने बोर्ड में गैर मुस्लिम को शामिल किए जाने के प्रावधान को अनुच्छेद 26 का सीधा उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा कि सिख गुरुद्वारों से संबंधित केंद्रीय कानून और हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती पर कई राज्य कानून संबंधित बोर्डों में अन्य धर्मों के लोगों को शामिल करने की अनुमति नहीं देते हैं। सिब्बल ने पीठ से कहा कि यह 20 करोड़ लोगों की आस्था को संसदीय अधिनियम के तहत हड़पने के समान है। साथ ही कहा कि कान में संशोधन के बाद, बोर्ड के सीईओ को मुस्लिम होने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि नये कानून के ये प्रावधान नामांकन के माध्यम से बोर्डों का पूर्ण अधिग्रहण की अनुमति देते हैं।
पंजीकरण को अनिवार्य किए जाने में क्या गलत है: मुख्य न्यायाधीश
मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने नए कानून में वक्फ की संपत्तियों के पंजीकरण को अनिवार्य किए जाने पर सवाल उठाया। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ‘इसमें क्या गलत है? इसके जवाब में वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि वर्तमान में, पंजीकरण के बिना उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ बनाया जा सकता है। इस पर पीठ ने कहा कि ‘आप एक वक्फ पंजीकृत कर सकते हैं जो आपको एक रजिस्टर बनाए रखने में भी मदद करेगा। न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने भी कहा कि ‘यदि आपके पास कोई डीड है, तो कोई भी फर्जी या झूठा दावा नहीं कर कर सकेगा।
क्या 300 साल पहले कोई वक्फ बनाया गया था
न्यायाधीशों की टिप्पणी पर वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि ‘वे हमसे पूछेंगे कि क्या 300 साल पहले कोई वक्फ बनाया गया था और डीड पेश करने को कहेंगे। इनमें से कई संपत्तियां सैकड़ों साल पहले बनाई गई थीं और कोई दस्तावेज नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि जब अंग्रेज आए, तो कई वक्फ संपत्तियों को गवर्नर जनरल के रूप में रजिस्टर में दर्ज किया गया था और आजादी के बाद, सरकार ऐसी संपत्तियों पर दावा कर रही है। सिब्बल ने वक्फ अधिनियम पर सीमा अधिनियम के लागू होने पर भी आपत्ति जताई। हालांकि, पीठ कहा कि आप वास्तव में यह नहीं कह सकते कि यदि आप सीमा अवधि लागू करते हैं, तो यह असंवैधानिक होगा।
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