पश्चिम बंगाल: ममता बनर्जी सरकार को राहत, अतिरिक्त पद सृजन की जांच सीबीआई को सौंपने का फैसला रद्द
पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है, जिसमें सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति से जुड़े मामले में सीबीआई जांच के आदेश को रद्द कर दिया गया है।...

नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षकों व अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति से जुड़े मामले में पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिल गई। शीर्ष अदालत ने मंगलवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया, जिसके तहत पश्चिम बंगाल में सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में अतिरिक्त पदों के सृजन के राज्य मंत्रिमंडल के फैसले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। हालांकि शीर्ष अदालत ने यह साफ कर दिया है कि राज्य में 25,753 शिक्षकों और गैर शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति से संबंधित अन्य पहलुओं की सीबीआई द्वारा जांच जारी रहेगी।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने राज्य मंत्रिमंडल द्वारा अतिरिक्त पद सृजन की जांच सीबीआई को सौंपे जाने को अनुचित और अवांछित बताया है। पीठ ने कहा है कि ‘उच्च न्यायालय के समक्ष दाखिल याचिका में मंत्रिमंडल के फैसले की सीबीआई या पुलिस से जांच कराने की कोई मांग नहीं की गई थी। पीठ ने कहा है कि उच्च न्यायालय के फैसले के पैराग्राफ 257 और 265 में की गई टिप्पणियों पर हमने गंभीरता से विचार किया है, जिसमें साफ तौर पर उल्लेख किया गया था कि राज्य सरकार ने वास्तव में कथित अवैध नियुक्तियों को समायोजित करने के लिए अतिरिक्त पदों के सृजन के लिए राज्य के राज्यपाल द्वारा अनुमोदित मंत्रिमंडल का निर्णय पारित किया था।
इसके साथ ही, मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने कहा है कि सभी तथ्यों को कानूनी प्रावधानों पर विचार करने के बाद ‘हमारा मानना है कि उच्च न्यायालय द्वारा अतिरिक्त पदों के सृजन के मुद्दे की जांच सीबीआई को सौंपता उचित नहीं था। उन्होंने कहा कि हम अनुच्छेद 74 (2) और 163(3) पर गौर करते हैं जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह प्रश्न कि क्या राज्यपाल की सहायता और सलाह के लिए मंत्रिपरिषद द्वारा कोई सलाह ली गई थी और यदि हां, तो इसकी किसी अदालत में जांच नहीं की जाएगी। यह टिप्पणी करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त पद सृजन के मुद्दे की जांच सीबीआई को सौंपने के उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया। हालांकि पीठ ने यह स्पष्ट किया कि ‘इस फैसले में की कोई भी टिप्पणी सिर्फ अतिरिक्त पदों के सृजन की जांच करने के निर्देश की सीमा तक ही सीमित हैं और किसी भी तरह से सीबीआई द्वारा मामले की अन्य पहलुओं की जांच और दाखिल आरोपपत्रों को प्रभावित नहीं करेगा।
इससे पहले, पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ से कहा कि मंत्रिमंडल के फैसले के बाद बाद प्रतीक्षा सूची में शामिल उम्मीदवारों की कोई नियुक्ति नहीं की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करने वाली बैसाखी भट्टाचार्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह की उन दलीलों को सिरे से ठुकरा दिया कि ‘यदि मंत्रिपरिषद का कोई निर्णय किसी अवैधता पर आधारित है, तो ऐसा निर्णय किसी भी सद्भावना के पूर्ण अभाव के साथ शक्ति का एक रंग-रूपी प्रयोग होगा। इस प्रकार, धारा 163(3) के तहत कैबिनेट के निर्णयों के लिए संवैधानिक प्रतिरक्षा यहां लागू नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने 3 अप्रैल को पूरी भर्ती प्रक्रिया को किया था रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने 3 अप्रैल को पश्चिम बंगाल में सरकारी और सहायत प्राप्त स्कूलों में 25753 शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की पूरी नियुक्ति प्रक्रिया को दोषपूर्ण बताते हुए, इसे रद्द करने के कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा पारित के फैसले का बरकरार रखा था। पश्चिम बंगाल विद्यालय चयन आयोग (एसएससी) द्वारा 2016 में ये भर्तियां की गई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि वह अतिरिक्त पदों की सीबीआई जांच के लिए उच्च न्यायालय के निर्देश के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार की अपील पर अलग से सुनवाई करेगा।
सीबीआई जांच रद्द करने की प्रमुख आधार
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उच्च न्यायालय के समक्ष दाखिल याचिका में मंत्रिमंडल के फैसले की सीबीआई या पुलिस ब्यूरो जांच की मांग नहीं थी।1
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हमने 5 मई, 2022 के सरकार के उस नोट को देखा है, जिसमें साफ तौर पर कहा गया है कि प्रतीक्षा सूची वाले उम्मीदवारों के संबंध में पश्चिम बंगाल एसएससी अधिनियम 1997 की धारा 19 के तहत शक्तियां जारी की जा रही थीं, लेकिन वे उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित मुकदमे के परिणाम के अधीन होंगी क्योंकि उस वक्त गहन जांच करके दागी उम्मीदवारों का पता लगाना संभव नहीं था।
- न्यायालय ने देखा कि अनुच्छेद 74(2) और 163(3) में प्रावधान है कि मंत्रियों/मंत्रिपरिषद द्वारा राष्ट्रपति/राज्यपाल को दी गई कोई भी सलाह किसी भी न्यायालय में जांच का विषय नहीं बन सकती।
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