अमेरिका बोला, भारत गैर-शुल्क बाधाएं हटाए
अमेरिका ने भारतीय बाजारों में अपनी वस्तुओं के सामने आने वाली गैर-शुल्क बाधाओं पर चिंता जताई है। उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने इन बाधाओं को हटाने का आग्रह किया। भारतीय उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी...

नई दिल्ली, एजेंसी। अमेरिका ने कई बार भारतीय बाजारों में अपनी वस्तुओं के सामने आने वाली कुछ गैर-शुल्क बाधाओं पर चिंता जताई है। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने 22 अप्रैल को जयपुर में भारत से गैर-शुल्क बाधाओं को हटाने और अपने बाजारों में अधिक पहुंच देने का आग्रह किया। भारतीय उत्पादों को भी अमेरिका, यूरोपीय संघ (ईयू), चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इन मुद्दों का सामना करना पड़ता है। गैर-शुल्क बाधाएं ऐसे व्यापार प्रतिबंध हैं जिनमें शुल्क शामिल नहीं होते हैं। ये बाधाएं देशों के बीच पार माल की निर्बाध आवाजाही को प्रभावित करती हैं। गैर-शुल्क उपायों और कुछ गैर-शुल्क बाधाओं के बीच अंतर करना आवश्यक है।
अधिकांश एनटीएम मानव, पशु या पौधों के स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा के उद्देश्य से देशों द्वारा बनाए गए घरेलू नियम हैं। एनटीएम 'तकनीकी' उपाय हो सकते हैं जैसे विनियमन, मानक, परीक्षण, प्रमाणन, आयात से पहले निरीक्षण या 'गैर-तकनीकी' उपाय जैसे कि कोटा, आयात लाइसेंस, सब्सिडी, सरकारी खरीद प्रतिबंध आदि। जब एनटीएम मनमाने और तर्क से परे हो जाते हैं, तो वे व्यापार के लिए बाधाएं पैदा करते हैं और उन्हें एनटीबी कहा जाता है।
इन बाधाओं से व्यापारियों की लागत बढ़ जाती है। उन्हें गंतव्य देश की अनिवार्य प्रमाणन, परीक्षण या लेबलिंग जैसी आवश्यकताओं का अनुपालन करने के लिए अधिक खर्च करना पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, एक भारतीय कृषि उत्पाद निर्यातक को कीटनाशक अवशेषों के लिए यूरोपीय संघ द्वारा अनिवार्य प्रयोगशाला परीक्षणों के लिए भुगतान करना पड़ सकता है। निर्यातकों को कभी-कभी विभिन्न देशों के तकनीकी मानकों या पैकेजिंग नियमों के अनुरूप अपने उत्पादों को पुनः डिजायन करने की आवश्यकता होती है।
इससे माल के आने में भी देरी होती है और अनिश्चितताएं बढ़ती हैं। कागजी कार्रवाई, लाइसेंसिंग नियम या सीमाओं पर निरीक्षण करने की जटिल प्रक्रियाएं व्यापार को धीमा कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ अफ्रीकी देशों के निर्यातकों को सख्त सत्यापन जांच के कारण बंदरगाह पर लंबी देरी का सामना करना पड़ता है।
भारत के कई खाद्य और कृषि उत्पाद, कीटनाशकों के उच्च स्तर, कीटों की मौजूदगी और खुरपका-मुंहपका रोग से संबंधित जांच का सामना करते हैं। इन कारणों से निर्यात खेपों को अस्वीकार कर दिया जाता है और निर्यात से पहले अनिवार्य निरीक्षण किया जाता है।
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वैश्विक एजेंसियों ने भारत के वृद्धि अनुमानों को घटाया
वैश्विक शुल्क युद्ध और अमेरिकी व्यापार नीति को लेकर अनिश्चितता के बीच, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने चालू वित्त वर्ष के लिए भारत के वृद्धि अनुमानों में 0.5 प्रतिशत तक की कटौती की है। इसके बावजूद देश सबसे तेजी से बढ़ने वाली दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा। इन एजेंसियों का अनुमान है कि भारत चालू वित्त वर्ष में 6.2-6.7 प्रतिशत की दर से बढ़ सकता है।
अनिश्चित वैश्विक माहौल और व्यापार को लेकर भारी तनाव का हवाला देते हुए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक ने 2025-26 के लिए भारत के वृद्धि अनुमानों को घटाकर क्रमशः 6.2 प्रतिशत और 6.3 प्रतिशत कर दिया है।
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ने मार्च में भारत के वृद्धि दर के पूर्वानुमान को 6.9 प्रतिशत से घटाकर 6.4 प्रतिशत कर दिया था। इसी तरह, फिच रेटिंग्स ने वृद्धि दर 6.4 प्रतिशत और एसएंडपी ने 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। मूडीज एनालिटिक्स के मुताबिक 2025 में वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत रह सकती है।
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