प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि शादी का फैसला लेने से पहले ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह ऐसा जीवनसाथी दे जो मन और धर्म दोनों में आपके साथ चले। आज के समय में सच्चाई और पवित्रता दुर्लभ है, लेकिन अगर आप स्वयं सही रास्ते पर चलेंगे, तो परमात्मा आपको वैसा ही साथी देंगे। यह आध्यात्मिक दृष्टिकोण जीवनसाथी चुनने में मार्गदर्शन करता है।
पिछले रिश्तों के बारे में खुलकर बात करना जरूरी है। प्रेमानंद जी कहते हैं कि बीता हुआ कल भविष्य को प्रभावित नहीं करना चाहिए। इस सवाल से आप सामने वाले की पारदर्शिता और भावनात्मक स्थिति को समझ सकते हैं।
शादी केवल दो लोगों का मिलन नहीं, बल्कि दो परिवारों का संगम है। इसलिए, सामने वाले का परिवार और रिश्तों के प्रति दृष्टिकोण जानना जरूरी है। क्या वे परिवार को महत्व देते हैं? यह सवाल सामंजस्य की नींव रखता है।
प्रेमानंद जी के अनुसार, अगर दोनों की आध्यात्मिक सोच में समानता हो, तो वैवाहिक जीवन आसान और सुखद होता है। धर्म और आध्यात्म के प्रति उनके विचार जानने से रिश्ते की गहराई समझ आती है।
रिश्ते की नींव ईमानदारी और वफादारी पर टिकी होती है। यह सवाल पूछकर आप सामने वाले की नैतिकता और रिश्ते के प्रति गंभीरता को समझ सकते हैं। प्रेमानंद जी कहते हैं कि सच्चाई रिश्ते को मजबूत बनाती है।
मुश्किल समय में सामने वाला कैसे व्यवहार करता है? यह सवाल उनके स्वभाव और समस्या-समाधान की क्षमता को दर्शाता है। प्रेमानंद जी के अनुसार, यह समझना जरूरी है कि आपका साथी चुनौतियों का सामना कैसे करता है।
प्रेमानंद जी के अनुसार, शादी जीवन को सुंदर बनाने का साधन है। लेकिन अगर मन और सोच में मेल ना हो, तो यह बंधन बन सकता है। इसलिए, सही सवाल पूछकर और समझदारी से निर्णय लें।
प्रेमानंद जी की सलाह सरल लेकिन गहरी है। शादी से पहले इन सवालों पर चर्चा करें, ईश्वर पर भरोसा रखें और सच्चाई के रास्ते पर चलें। इससे आपका वैवाहिक जीवन सुखी और समृद्ध होगा।