गहलोत बोले-हम जादूगर हैं, ट्रिक करते हैं... डोटासरा को बताया सियासी ट्रिक का हिस्सा!
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस प्रदेश मुख्यालय में आयोजित राजीव गांधी पुण्यतिथि कार्यक्रम में अपने राजनीतिक अनुभवों, पार्टी में अपनी भूमिका और कांग्रेस के आंतरिक सियासी समीकरणों पर बेबाक टिप्पणी कर नई सियासी बहस छेड़ दी है।

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस प्रदेश मुख्यालय में आयोजित राजीव गांधी पुण्यतिथि कार्यक्रम में अपने राजनीतिक अनुभवों, पार्टी में अपनी भूमिका और कांग्रेस के आंतरिक सियासी समीकरणों पर बेबाक टिप्पणी कर नई सियासी बहस छेड़ दी है। खास बात यह रही कि उन्होंने एक बार फिर अपने ‘जादू’ वाले अंदाज में सियासी संकेतों की ट्रिक दिखाई — इस बार निशाने पर रहे कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और साल 2020 का पायलट खेमे का बगावती दौर।
गहलोत ने कहा, "तीन बार मुख्यमंत्री बनना बड़ी बात है। तीसरी बार तो आप जानते हैं... सरकार बच गई, वह तो चमत्कार ही था। यह तो हाईकमान का आशीर्वाद और आपकी दुआओं से ही संभव हो सका। वरना पांच साल पूरे करने का सवाल ही नहीं था। डोटासरा भी उसी की देन हैं।"
उनके इस बयान को सीधे तौर पर 2020 में सचिन पायलट खेमे की बगावत और उसके बाद बने सियासी हालात से जोड़कर देखा जा रहा है, जब पायलट को डिप्टी सीएम और प्रदेशाध्यक्ष पद से हटाकर डोटासरा को अध्यक्ष बनाया गया था।
राजनीतिक विश्लेषक इसे गहलोत का एक ‘मैसेज’ मान रहे हैं — खासकर तब जब विधानसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस राजस्थान में नए सिरे से समीकरण साध रही है। गहलोत के इस बयान को डोटासरा की भूमिका और उनके कद को फिर से ‘री-डेफाइन’ करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
गहलोत ने कहा, “जितना मुझे मिला, उतना देश में बहुत कम नेताओं को मिला है। जब दिल्ली में नंबर एक और नंबर दो नेता सरकार गिराने पर आमादा हो जाएं, तो सरकारें गिरती हैं — मध्य प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र इसके उदाहरण हैं। लेकिन राजस्थान में सरकार बच गई, वो चमत्कार था।”
इसके साथ ही उन्होंने ‘जादू’ की अपनी चर्चित छवि पर भी तंजिया अंदाज में कहा, “हम जादूगर हैं, हम ट्रिक करते हैं और लोग कहते हैं जादू हो गया। एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) भी आज का जादू है। मैं खुद इसका खूब इस्तेमाल करता हूं और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से भी कहता हूं कि इस चमत्कार को अपनाएं।”
कार्यक्रम में गहलोत ने इंदिरा गांधी युग के नेताओं की स्थायी पकड़ और नई पीढ़ी की जरूरत पर भी बात करते हुए कहा, “हमारी भी एक सीमा है। नई पीढ़ी आनी चाहिए, बदलाव जरूरी है। जो संभव है, वह हम कर रहे हैं।”
गहलोत की यह ‘जादू भरी’ टिप्पणी राजनीतिक गलियारों में कई परतों वाली मानी जा रही है — जिसमें पुराने सियासी घाव भी हैं, वर्तमान समीकरण भी और भविष्य की चाल भी।
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