बच्चों को कला से क्यो रखा है दूर? राजस्थान हाईकोर्ट की राज्य सरकार को फटकार!
राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रदेश के सरकारी स्कूलों में कला शिक्षकों की भर्ती को लेकर राज्य सरकार को अंतिम चेतावनी दी है। कोर्ट ने दो टूक कहा है कि बच्चे देश का भविष्य हैं, और उन्हें चित्रकला-संगीत जैसी रचनात्मक शिक्षा से वंचित नहीं रखा जा सकता।

राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रदेश के सरकारी स्कूलों में कला शिक्षकों की भर्ती को लेकर राज्य सरकार को अंतिम चेतावनी दी है। कोर्ट ने दो टूक कहा है कि बच्चे देश का भविष्य हैं, और उन्हें चित्रकला-संगीत जैसी रचनात्मक शिक्षा से वंचित नहीं रखा जा सकता। मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव और न्यायाधीश मुकेश राजपुरोहित की खंडपीठ ने इस मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए सरकार से कहा कि अब बहुत हो गया, अब और इंतजार नहीं किया जाएगा।
यह टिप्पणी एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान आई, जिसे विमल शर्मा ने दायर किया था। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता तनवीर अहमद ने कोर्ट को बताया कि प्रदेश के करीब 70 हजार सरकारी स्कूलों में कला शिक्षा के लिए विशेषज्ञ शिक्षक ही नहीं हैं। स्थिति यह है कि गणित और विज्ञान पढ़ाने वाले शिक्षक ही बच्चों को संगीत और चित्रकला सिखा रहे हैं।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शिक्षा का अधिकार कानून के तहत हर स्कूल में कला शिक्षा अनिवार्य है। इसके बावजूद सरकार अब तक न तो कोई ठोस योजना ला सकी है और न ही कला शिक्षकों की भर्ती के लिए कदम उठाए हैं। सरकार की ओर से एक बार फिर समय मांगा गया, जिस पर हाईकोर्ट भड़क गया और कहा, "पांच महीने से ज्यादा हो गए, अब तक तो योजना आ जानी चाहिए थी!"
याचिकाकर्ता की दलीलों में यह भी बताया गया कि कला शिक्षा बच्चों के रचनात्मक और मानसिक विकास के लिए बेहद जरूरी है। इसके अभाव में बच्चों में तनाव, हताशा और हिंसात्मक प्रवृत्तियों का विकास हो रहा है। चिंताजनक बात यह है कि सरकार ने अब तक कला शिक्षा की किताबें तक प्रकाशित नहीं करवाई हैं।
हाईकोर्ट इससे पहले भी साफ कर चुका है कि अगर कला शिक्षा अनिवार्य है तो स्कूलों में इसके लिए प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति करना भी सरकार की जिम्मेदारी है। अब कोर्ट ने राज्य सरकार को अंतिम मौका देते हुए जल्द से जल्द कार्ययोजना पेश करने को कहा है।
राजस्थान की शिक्षा व्यवस्था को रचनात्मक दिशा देने की उम्मीद अब इस आदेश से जगी है। देखना होगा कि सरकार अब कितनी गंभीरता दिखाती है।
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