हिल स्टेशन या तीर्थ? माउंट आबू के नाम में बदलाव पर बवाल! जाने 23 संगठन क्यों कर रहे विरोध ?
प्रस्तावित नया नाम 'आबू राज तीर्थ' सुनते ही शहर में बवाल मच गया। सोमवार को माउंट आबू में 23 सामाजिक संगठनों ने मिलकर विरोध प्रदर्शन किया और इसे जनता की राय के बगैर थोपा गया फैसला बताया।

राजस्थान के इकलौते हिल स्टेशन माउंट आबू का नाम बदलने की सरकारी कोशिशों ने सियासी और सामाजिक तूफान खड़ा कर दिया है। प्रस्तावित नया नाम 'आबू राज तीर्थ' सुनते ही शहर में बवाल मच गया। सोमवार को माउंट आबू में 23 सामाजिक संगठनों ने मिलकर विरोध प्रदर्शन किया और इसे जनता की राय के बगैर थोपा गया फैसला बताया।
नाम बदलने की चर्चा अक्टूबर 2024 में नगरपालिका की बैठक में शुरू हुई थी, लेकिन असल खलबली तब मची जब 25 अप्रैल को स्थानीय स्वशासन विभाग ने नगर पालिका को एक पत्र भेजकर इस पर राय मांगी। यह पत्र मुख्यमंत्री कार्यालय से हुई पिछली बातचीत और 15 अप्रैल को सांख्यिकी उप निदेशक के नोट पर आधारित था।
प्रदर्शनकारी साफ कह रहे हैं कि यह बदलाव माउंट आबू की पहचान मिटा देगा। होटल एसोसिएशन के सचिव सौरभ गंगाडिया ने चेतावनी दी, “नाम बदला, तो टूरिज्म तबाह होगा। बेरोजगारी बढ़ेगी, और अगर मांस-शराब पर प्रतिबंध लगा, तो सैलानी आएंगे ही क्यों?”
नक्की झील संघ के अध्यक्ष विकास सेठ बोले, “‘आबू राज तीर्थ’ नाम से भ्रम पैदा होगा कि यह सिर्फ धार्मिक स्थल है। आम पर्यटक खींचे चले आने के बजाय दूरी बनाएंगे।” टाउन वेंडिंग कमेटी के एक सदस्य ने चिंता जताई कि “तीर्थ स्थल घोषित होने पर सामाजिक और धार्मिक नियम लागू होंगे, जिसे संभालना नगर पालिका के बूते से बाहर है।”
स्थानीय लोग दावा कर रहे हैं कि माउंट आबू के एक विधायक और एक मंत्री नाम और माहौल दोनों बदलने के पीछे सक्रिय हैं। आरोप है कि ये लोग क्षेत्र में शराब और मांस की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध की योजना बना रहे हैं। खबर यह भी है कि मई के दूसरे या तीसरे हफ्ते मुख्यमंत्री माउंट आबू के दौरे पर आ सकते हैं, और तब इस पर अंतिम मुहर लग सकती है।
इतिहास की बात करें तो माउंट आबू का आधुनिक विकास 1830 में शुरू हुआ, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे सिरोही रियासत से लीज पर लिया और 1845 में इसे राजपूताना एजेंसी का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय बनाया गया। आज यह हिल स्टेशन लाखों पर्यटकों की पसंद है, लेकिन नाम बदलते ही इसके भविष्य पर सवाल खड़े हो गए हैं। क्या माउंट आबू की हवा में अब तीर्थ की चुप्पी होगी या फिर जनता की आवाज़ नाम बचा पाएगी—इसका फैसला आने वाले दिनों में हो सकता है।
रिपोर्ट- सचिन कुमार