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बोले आगरा, सुख-सुविधाओं से कोसों दूर, कष्ट सहते हैं दिहाड़ी मजदूर

Agra News - आगरा में दिहाड़ी मजदूरों की संख्या 50 हजार से अधिक है, जो रोजाना काम की तलाश में सुबह मंडियों में जुटते हैं। कई मजदूरों को महीने में केवल 15 दिन ही काम मिलता है, जिससे उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति...

Newswrap हिन्दुस्तान, आगराThu, 1 May 2025 05:38 PM
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बोले आगरा, सुख-सुविधाओं से कोसों दूर, कष्ट सहते हैं दिहाड़ी मजदूर

आगरा। 21वीं सदी में दुनिया चांद तक पहुंच गई है। इंटरनेट की एआई तकनीक से क्रांति मची हुई है। इस तरक्की के बीच अगर कुछ नहीं बदला है तो वो है दिहाड़ी मजूदरों की जिंदगी। रोजाना सुबह छह बजे से मजदूरों की भीड़ मंडियों में पहुंच जाती है। काम मिलता है तो ठीक वरना मायूस होकर घर लौट जाती है। काम मिलने के इंतजार में सड़क किनारे खड़े मजदूरों ने संवाद कार्यक्रम में अपनी परेशानियां बयां कीं। बताया कि रोजाना काम नहीं मिलता है। उनके परिवार की जिंदगी मुश्किल हालात में कट रही है। फीस के रुपये नहीं है तो बच्चे स्कूल नहीं जाते।

मजदूरों ने सरकार से मदद का मरहम लगाने की गुहार लगाई है। एक मई का दिन अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। कहने को ये दिन मजदूरों के नाम समर्पित है। मगर मजदूर इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते। वजह ये है कि आठ घंटे की ड्यूटी उन्होंने कभी नहीं की है। उन्हें तो बस अपनी दिहाड़ी मजदूरी से मतलब है। शहर में अलग-अलग स्थानों पर दिहाड़ी मजदूरों की मंडी सजती है। इसमें ठेकेदार, राजमिस्त्री, लेबर, पेंटर समेत अन्य तरह के मेहनतकश पुरुष- महिलाएं शामिल रहती हैं। इनकी संख्या हजारों में है। इन लोगों की जिंदगी, सुबह की पहली किरण निकलने के साथ शुरू हो जाती है। दैनिक क्रियाओं के बाद चाय मिली तो ठीक है। नहीं तो दो रोटियां और मिर्च का अचार झोले में डालकर ये मजूदर अपने क्षेत्रों में सड़क किनारे लगने वाली मजदूर मंडी में पहुंच जाते हैं। जिन लोगों को अपने घर पर मजदूरी का काम कराना होता है। वो लोग यहां पहुंचते हैं। अपनी जरूरत के हिसाब से दिहाड़ी मजदूरी का मोलभाव करते हैं। जिनसे सौदा फिट बैठ जाता है, उन मजदूरों को अपने साथ बाइक पर बैठाकर काम पर ले जाते हैं। बाकी बचे सैकड़ों मजदूरों में काम मिलने का इंतजार जारी रहता है। मजदूरों की मानें तो उन्हें महीने में 15 दिन ही काम मिल पाता है। काम शुरू होने से खत्म होने तक की दिहाड़ी मजदूरी 400 से 500 रुपये मिल जाती है। रोजाना काम न मिलने से परिवार की हालत बिगड़ रही है। चार लोगों वाले परिवार को दो जून की रोटी भी मुश्किल से नसीब हो रही है। अधिकांश दिहाड़ी मजदूरों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। केवल कागजी औपचारिकताएं निभाई जा रही हैं। सच में मजदूरों की जिंदगी वर्षों बाद भी नहीं बदली है। जहां मंडी सजती है, वहां न तो पेयजल का इंतजाम रहता है। न ही बैठकर इंतजार करने का। धूप में खड़े होकर काम का इंतजार करना पड़ता है।

शहर में दिहाड़ी मजदूरों की संख्या 50 हजार के पार

शहर में दिहाड़ी मजदूरों की संख्या 50 हजार के पार है। इनमें महिलाएं भी हैं। जब तक लोग सोकर उठते हैं। दिहाड़ी मजदूर काम पर लग जाते हैं। इतनी कड़ी मेहनत के बाद भी इनके पास भविष्य निधि नहीं रहती। अचानक धन की जरूरत पड़ने पर इनकी मुश्किल बढ़ जाती है। इन दिनों जब शहर में बड़ी इमारत के निर्माण का काम ठंडा पड़ा हुआ है। दिहाड़ी मजदूरों की दिक्कतें और ज्यादा बढ़ गई हैं। काम की तलाश में खड़े मजदूरों ने बताया कि जब बिल्डर्स का काम सही चल रहा था। तब उनके पास रोजाना काम होता था। आमदनी ठीक हो जाती थी। घर गृहस्थी भी अच्छे से चल रही थी। अब बिल्डर्स का काम मंदा है। तो उनके पास भी काम का अभाव है। सभी की उम्मीद बस यही है कि एक दिन उनकी जिंदगी भी संवरेगी। उनके जीवन में भी नया सवेरा आएगा।

मई दिवस भी कहा जाता है मजदूर दिवस को

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस को मई दिवस भी कहा जाता है। अमेरिका में 1886 मजदूर संगठनों ने शिफ्ट में काम करने की अधिकतम सीमा आठ घंटे करने की मांग के लिए हड़ताल की थी। इसी दौरान एक शख्स ने शिकागो की हेय मार्केट में बम फोड़ दिया। ये देख पुलिस ने मजदूरों पर गोलियां चला दीं। इसमें सात मजदूरों की मौत हो गई। मजदूरों में फैले आक्रोश को थामने के लिए मांग मान ली गई। एक शिफ्ट में काम करने की अधिकतम सीमा आठ घंटे निश्चित कर दी गई। तभी से अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस को मनाने की परंपरा सन् 1886 में शिकागो से शुरू हुई। मौजूदा समय में भारत सहित विश्व के अधिकतर देशों में मजदूरों के लिए आठ घंटे काम करने का कानून बना हुआ है। भारत में मजदूर दिवस के मनाने की शुरुआत एक मई 1923 में चेन्नई से हुई थी। अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस लाखों मजदूरों के परिश्रम, दृढ़ निश्चय और निष्ठा का दिवस है। मजदूर देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सभी बड़े उद्योग मजदूरों की मेहनत पर ही चल रहे हैं। मजदूरों के बिना किसी भी औद्योगिक ढांचे के खड़े होने की कल्पना नहीं की जा सकती, लेकिन आज भी देश में मजदूरों के साथ अन्याय और शोषण होता है। मजदूरों ने कहा कि रोजाना काम और सही मेहनताना मिले तो उनकी जिंदगी की गाड़ी भी पटरी पर चल निकले।

तंगहाली की जिंदगी गुजार रहे दिहाड़ी मजदूर

ईंट-ईंट जोड़कर बहुमंजिला इमारतों की नींव रखने वाले दिहाड़ी मजदूर खुद तंगहाली की जिंदगी गुजार रहे हैं। कभी काम मिल गया तो घर का चूल्हा जल गया। काम नहीं मिला तो चूल्हे की आग ठंडी पड़ी रहती है। बच्चे बेबसी में बिलखते हैं। इन हालात में जिंदगी कैसे कटेगी। बच्चों को शिक्षा कैसे मिलेगी। ये सोचकर मजदूर बेहद परेशान हैं। सरकार से समस्याओं के समाधान की मांग कर रहे हैं। मजदूरों ने बताया कि महंगाई के दौर में रोजाना काम मिलना मुश्किल हो गया है। जिंदगी जैसे-तैसे आगे बढ़ रही है। इन जगहों पर लगती है मजदूरों की मंडी शहर में कई स्थानो पर मजदूरो की मंडी लगती है। इनमें राजपुर चुंगी, बोदला, सदर, मधुनगर, न्यू आगरा, लोहामंडी, जगदीपुरा, सिकंदरा, एत्मद्दौला समेत कई इलाके शामिल हैं। इन सभी इलाकों में सुबह ही दिहाड़ी मजदूरों की भीड़ जुट जाती है। जैसे ही कोई व्यक्ति मजदूरों की तलाश में आता है। मजदूरों की भीड़ उसे घेर लेती है। अपने साथ काम पर ले चलने की बात करती है। दिनभर मेहनत मजदूरी करने के बाद ये मजदूर 400 से 500 रुपये ही कमा पाते हैं। घर की जरूरतों के सामने ये रकम बेहद कम है। बच्चों को नहीं मिल पा रही शिक्षा मजदूरी करके ये लोग अपनी घर गृहस्थी के खर्च तो जैसे-तैसे चला लेते हैं। मगर इतनी मेहनत के बाद भी बच्चों को न पढ़ा पाने का मजदूरों को मलाल रहता है। मजदूरों ने बताया कि उनके बच्चे शिक्षित न होने की वजह से समाज की मुख्य धारा से नहीं जुड़ पा रहे हैं। उन्हें नौकरी नहीं मिलती है। बच्चे मेहनत, मजदूरी करते हैं। सरकार अगर उनके बच्चों को शिक्षित बनाने पर ध्यान दे तो उनका भविष्य भी संवर जाएगा। आमदनी बढ़ जाएगी। वह भी अपने घर परिवार को समय दे पाएंगे। पेंशन और आधार कार्ड की परेशानी दिहाड़ी मजदूरों की दिक्कत यहीं खत्म नहीं होती। उन्होंने बताया कि लंबे समय से उन्हें पेंशन सुविधा का लाभ नहीं मिल पा रहा है। कई मजदूरों के आधार कार्ड में त्रुटियां हैं। इन्हें सही कराने के लिए वह कई बार संबंधित कार्यालय में जा चुकी हैं, लेकिन कोई उनकी शिकायत पर कार्रवाई नहीं करता। आधार कार्ड में त्रुटि होने की वजह से वह किसी भी योजना का लाभ लेने के लिए आवेदन नहीं कर पाते हैं। पेंशन योजनाएं भी उनके लिए सिर्फ एक सपना बनकर रह जाती हैं। मजदूरों ने पेंशन दिलाने की मांग की। बिजली और पानी की बड़ी परेशानी मजदूरों के सामने बिजली और पानी की भी बड़ी परेशानी है। आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से ये लोग बिजली का बिल नहीं भर पाते हैं। इस कारण कंपनी ने इन लोगों के घरों की बिजली काट दी है। बिजली कर्मचारी खंभों पर लगे तार तक काट ले गए हैं। बिना बिजली रोजाना भारी परेशानी उठानी पड़ती है। कई बार गुहार लगाने के बाद भी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। मजदूरों ने बिजली बिल में रियायत दिए जाने की मांग की है। पानी के लिए मजदूरों के परिवार सहित परेशानी उठानी पड़ती है।

ये हैं समस्याएं

मजदूरों को रोजाना नहीं मिल पाता है काम बच्चों के नहीं मिल पा रही है उच्च शिक्षा काफी संख्या में नहीं बन पाए हैं लेबर कार्ड मजदूरों को नहीं मिल रही है पेंशन सुविधा काफी मजदूरों के नहीं बने हैं आधार कार्ड ये हैं

समाधान

मजदूरों के लिए हो नियमित रोजगार का इंतजाम बच्चों के पढ़ाने के लिए सरकारी इंतजाम किया जाए मजदूरों को सरकारी आवासीय योजनाओं का लाभ मिले पात्र मजदूरों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाए युवकों को कौशल प्रशिक्षण देकर प्रशिक्षित किया जाए

परिवार का पेट पालने के लिए दिन-रात मेहनत करनी पड़ती है। इसके बाद भी इतना धन अर्जन नहीं हो पाता है कि बच्चों के भविष्य के लिए कुछ रुपया जोड़ पाएं। जो कमाते हैं। खाने में ही खर्च हो जाता है। रोजगार का अवसर मिलना चाहिए। विजय सिंह,

मजदूर काफी संख्या में मजदूर ऐसे हैं, जिनके आधार कार्ड में त्रुटि हो गई है। कई बार आधार कार्ड कार्यालय के चक्कर लगा चुके हैं। अब तक कोई सुनवाई नहीं हो पाई है। मेरी मांग है कि वास्तविक मजूदरों के आधार कार्ड जल्द बनें। मनोज,

मजदूर हम लोगों को किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। मेरी यही मांग है कि बस्तीवार कैंप लगाकर योजनाओं के बारे में सभी को जानकारी दी जाए। जांच में जो भी लोग पात्र मिलते हैं। उन्हें सरकारी योजनाओं से लाभान्वित किया जाए। राजू

मजदूर शिक्षित न होने की वजह से हमारे परिवार के बच्चों को नौकरी नहीं मिल पाती है। इस वजह से घर में आर्थिक संकट रहता है। हमारे बच्चों के लिए शिक्षा का इंतजाम होना चाहिए। बच्चे पढ़-लिखकर आगे बढेंगे तो हमारो भी दिन अच्छे होंगे। रोशन

मजदूर वास्तविक मजदूरों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। कैंप लगाकर समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिए। सभी मजदूरों के लेबर कार्ड बनने चाहिए। वास्तव में हम लोगों को सरकारी मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है। गौरीशंकर झा

मजदूर परिवार के बच्चों को पढ़ाना चाहता हूं। ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो सके। मेरी मांग है कि बच्चों के लिए शिक्षा का इंतजाम किया जाए। बच्चों को स्कूल में दाखिला मिले। उन्हें भी अच्छी नौकरी मिले। तभी हमारे परिवारों की जिंदगी बदल पाएगी। नीरज

मजदूर हम लोगों के पास किसी तरह का रोजगार नहीं है। इसलिए परिवार के पुरुषों को रोजाना मजदूरी करने के लिए सड़क पर जाना पड़ता है। मेरी मांग है कि हमें भी उचित रोजगार मिलना चाहिए। ताकि हमारा घर, गृहस्थी अच्छे से चल सके। बच्चे खुश रहें। हरि सिंह,

मजदूर मजदूरी करने के लिए हमें बहुत दूर तक जाना पड़ता है। परिवार की देखभाल में दिक्कत आती है। स्थाई रोजगार मिले तो हमारी भी दिक्कत खत्म हो जाएगी। बच्चों को भी जरूरी वस्तुओं के लिए दिक्कत नहीं होगी। अभी तो रोजाना बहुत दिक्कत होती है। उत्तमचंद,

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