बोले आगरा: खत्म हो रहा फलों के राजा का राज
Agra News - किरावली तहसील के कुकथला गांव में आम की फसल में गिरावट आई है। तूफान और कीड़ों के कारण पहले के 150 बगीचों में से अब केवल 70 बगीचे बचे हैं। किसान सरकारी मदद की कमी से परेशान हैं। खारे पानी और रोगों ने आम...

रुनकता। तहसील किरावली से जुड़ा कुकथला गांव कभी आम की फसलों के लिए जाना जाता था। आपके अखबार हिन्दुस्तान के बोले आगरा संवाद में आम किसानों ने बताया कि कुछ साल पहले कुकथला में छोटे बड़े करीब 150 बगीचे थे। 2018 में आए तूफान ने आम के कई बगीचे तबाह कर दिए। लेकिन आम किसानों ने फिर हिम्मत बटोरी। किसानों ने नई आम की पौध लगाकर बगीचे सींचने का प्रयास भी किया। लेकिन उनका प्रयास विफल हो गया। पौधों को कीड़ों ने नष्ट कर दिया। इधर किसानों ने कहा कि उनको सरकारी मदद बिल्कुल भी नहीं मिलती है। रुनकता क्षेत्र के गांव कुकथला में 150 म के बगीचों के बजाय सात दर्जन छोटे-छोटे बगीचे ही रह गए।
हालत यह है कि बचे-खुचे आम के पेड़ कीड़े लगने से दिन रोज नष्ट हो रहे है। कृषि विभाग से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों से इसकी शिकायत की गई लेकिन किसी द्वारा कोई भी मदद तक नहीं की। आम का नाम आते ही उसके मिठास का अहसास होने लगता है। आगरा जिले के कई क्षेत्रों में आम काफी खास हुआ करता था। अब खारे पानी और इसके कारण पनपने वाले मालफार्मेशन रोग ने आम के पेड़ों को नुकसान पहुंचाया तो जिले से मिठास छीन ली है। अब कुछ क्षेत्रो में गिने चुने पेड़ बचे हैं, जिनकी आपूर्ति होती है। वहीं भरपूर फसल के लिए बाहर की आवक पर निर्भर रहना पड़ता है। बिचपुरी, बरहन, इटौरा, पिनाहट, जैतपुर, बाह, कुकथला सहित कई दूसरे क्षेत्र में आम के बाग हुआ करते थे। किसी भी बाग में 200-300 पेड़ से कम नहीं थे, लेकिन अब बागों में गिने चुने पेड़ बचे हैं। इसका कारण आगरा का खारा पानी और आम के बौर में लगने वाला मालफार्मेशन रोग है। संवाद के दौरान किसान बताते हैं कि पहले क्षेत्र में मीठे पानी के बम्बा से भरपूर पानी मिलता था, जो अब नहीं मिल पा रहा है। वहीं बौर में रोग लगने से फसल प्रभावित हो जाती है। किसान बताते हैं कि आम्रपाली सहित दूसरी नई किस्म भी लगाई गई हैं, जो जल्दी फलदार हो जाती है। खारा पानी पेड़ की ग्रोथ रोकता है, तो उसकी जड़ों को भी नुकसान पहुंचाता है। किसानों ने इस बात पर चिंता जताई कि पहले आगरा में आम के बागों की भरमार थी, लेकिन खारा पानी, रोग ने काफी नुकसान पहुंचाया है। खारा पानी के कारण बौर में मालफार्मेशन रोग पनपता है। जड़ों में खारा पानी होने के कारण पोषक तत्व ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाता है। इससे रोग की शुरुआत होती है।
अपने बल पर महिलाएं संभाल रही बगीचे : आम के बगीचों से लेकर जामुन, नींबू, बेल पत्थर, फालसे की फसलों व बगीचों को यहां बड़ी संख्या में महिलाएं अपने बल पर संभाल रही है। महिला किसानों ने बताया कि आम की कमजोरी के चलते अन्य बागबानी की फसलों को तैयार करने में जुटी है। इस कारोबार में वह पति का हाथ बंटा रही हैं। यहां से होती है आम की आवक जिले में आम का उत्पादन पर्याप्त नहीं होने के कारण दूसरे राज्य और जिलों से आवक होती है। अप्रैल में आंध्र प्रदेश से आने वाला आम सीजन की शुरुआत करता है, जिसको सफेदा बोला जाता है। मई के अंतिम सप्ताह से उप्र के मलिहाबाद, सीतापुर से दशहरी और स्थानीय दूसरी प्रजाति आती हैं। जून में बुलंदशहर, मेरठ से आम आता है। अगस्त में सीजन का समापन सहारनपुर की खेप से होता है।
इनकी पीड़ा
1- पहले कभी हमारा आम का बड़ा बगीचा था। कीड़ों ने आम के बड़े पेड़ो को सुखा दिया। बगीचा विलुप्त हो गया। अन्य बागबानी फसलों को तैयार कर जैसे तैसे गुजारा कर रहे हैं। शासन से शिकायत के बाद भी कोई मदद नहीं मिली। राधा देवी
2-छोटे से आम के बगीचे से कार्य शुरू किया था। कुछ पेड़ आंधी में नष्ट हो गए। बाकी बचे आम के पेड़ों को कीड़ों ने खराब कर दिया। अब जामुन, नींबू, बेलगिरी व फालसे की फसल तैयार करते हैं। शासन से कोई ठोस कदम उठे तो दोबारा आम के बगीचे जिंदा हो सकते है।
लक्ष्मी देवी
3- पहले केवल आम की फसल ही किया करते थे। हमारे यहां का आम प्रसिद्ध था। लेकिन कीड़ों के चलते पेड़ नष्ट हो गए। आम के नाम पर कुछ अवशेष ही रह गए है। मजबूरन घर चलाने के लिए आम की जगह अन्य फसलों का काम करना पड़ रहा है। राजेश देवी, किसान
4- अन्य महिलाओं को देखकर पांच साल पहले आम के पेड़ लगाए थे। लेकिन कीड़ों ने पेड़ो को पनपने नहीं दिया। किसी के द्वारा कोई तरीका भी नहीं सिखाया गया। आम छोड़कर अन्य फसलों की बागवानी करते है। सरकार आम किसानों की मदद करे। काफी हद तक आम बाहर से खरीदना नहीं पड़ेगा। राजो देवी किसान
5. आम का बगीचा था। फसल भी बहुत अच्छी होती थी। अन्य प्रदेशों की मंडी में आम बहुत भेजा है। लेकिन दो साल पहले कीड़ों की वजह से पेड़ सूख गए। बचे पेड़ आंधी में धराशाही हो गए। आम के नाम पर कुछ नहीं बचा है। गुड्डी देवी किसान
6-कई सालों से आम के बगीचों की रखवाली व आम तोड़ने काम करते आ रहे है। आम की फसल के साथ अन्य फसलों से भी अच्छा गुजारा होता था। आम के कार्य में मेहनत कम मजदूरी ज्यादा मिलती थी। लेकिन अब मेहनत अधिक करनी पड़ रही है। दिक्कत आ रही है। रूपा देवी बागबानी मजदूर
7- आम बगीचों में सैकड़ों महिलाएं काम करती थीं। अच्छी मजदूरी भी मिलती थी। कीड़ों ने किसानों को ही कंगाल कर दिया। आम के बगीचे विलुप्त होने से हमारी मजदूरी भी विलुप्त हो गई। आम के बगीचों के विलुप्त होने के साथ काम कम मिलता है। परिवार चलाने में काफी परेशानियां पैदा हो रही है। उर्मिला देवी,बागबानी मजदूर
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