बोले आगरा: अपने हक-हकूक और सुख सुविधाओं से कोसों दूर मजदूर
Agra News - मजदूर दिवस पर मजदूरों की समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। दिहाड़ी मजदूरों को महीने में केवल 20 दिन काम मिलता है और उन्हें उचित मानदेय नहीं मिलता। सरकार की कल्याणकारी योजनाएं भी मजदूरों तक...

एक मई यानी मजदूर दिवस। हर कार्य में मजदूरों की जरूरत पड़ती है। लेकिन उनकी समस्याओं की ओर किसी का ध्यान नहीं। मजदूर दिवस पर भी मजदूरों के हक और अधिकारों की बात की की जाती है। रैलियां निकाली जाती हैं। गोष्ठियां आयोजित होती हैं। लेकिन अमल नहीं होता है। स्थिति यह है कि दिहाड़ी मजदूरों को महीने में पूरे तीस दिन कार्य नहीं मिलता है। खाली हाथ घर लौटते हैं। मजदूरी के दौरान किसी हादसे का शिकार हो जाएं तो मुआवजे की कोई व्यवस्था नहीं है। बीमा, आयुष्मान योजना का कोई लाभ उन्हें नहीं हैं।
अकोला ब्लाक, बिचपुरी ब्लाक और बरौली अहीर ब्लाक में दिहाड़ी मजदूर आगरा ग्वालियर हाइवे स्थित रोहता चौराहा, आगरा-जगनेर मार्ग पर मलपुरा चौराहा और अकोला बाजार में सुबह काम की आस में जुटते हैं। उन्हें कभी काम मिलता है तो कभी पूरे दिन खाली हाथ। इन दिहाड़ी मजदूरों का दर्द है कि उन्हें पूरे महीने में लगभग 20 दिन की मजदूरी मिलती है। इसके चलते वह आर्थिक संकटों से घिरे रहते हैं। अपना परिवार सही तरीके से नहीं चला पाते हैं। दिहाड़ी मजदूरों की पीड़ा है कि उनको उचित मानदेय भी नहीं मिलता है। शोषण का शिकार हो रहे हैं। आपके अखबार हिन्दुस्तान के बोले आगरा संवाद के तहत कैलाश चंद ने बताया है कि जान जोखिम मे डालकर वो मजदूरी करते हैं। उन्हें या उनके परिवार को मुआवजे की कोई व्यवस्था नहीं है। तेज धूप और बारिश में कार्य करना पड़ता है, इसलिए वो बीमार पड़ जाते हैं। स्वास्थ्य विभाग की ओर से उनकी किसी प्रकार की कोई जांच नहीं होती। यहीं रोजगार की तलाश में सुबह मजदूरों के खड़े होने के लिए कोई उचित जगह नहीं है। गर्मी, सर्दी हो या फिर बारिश। खुले आसमान के नीचे रोड के किनारे मजदूर कार्य की तलाश में बैठे रहते हैं। संवाद के दौरान मजदूरों ने कहा कि उन्हें प्रतिदिन काम मिलने की गारंटी सरकार दे। कभी-कभी लगातार तीन दिन तक कार्य नहीं मिलता है। मजदूर नरेंद्र सिंह की पीड़ा थी कि सरकार की कल्याणकारी योजनाएं हम मजदूरों तक पहुंच नहीं पाती है। इन कल्याणकारी योजनाओं का प्रचार प्रचार नहीं किया जाता। आयुष्मान कार्ड योजना का भी मजदूरों को लाभ नहीं मिल पा रहा है। मजदूरों का कहना था कि उनके लिए सरकार ने कई कानून बनाए हैं। लेकिन इनका फायदा नहीं मिल रहा है। मजदूरों का भवन सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में पंजीकरण नहीं है। मजदूरों ने एक समस्या शराबियों की भी बताई। कहा कि मंडी में सुबह शराबी फिजा बिगाड़ते हैं। वो हमारे बीच आकर कम पैसे में भी काम पर जाने के लिए राजी हो जाते हैं। रेट खराब हो रहे हैं। कई मजदूरों का यह भी कहना था कि उनका अभी तक श्रमिक कार्ड नहीं बन सका है। अगर कार्ड बन जाए तो काफी हद तक कुछ जरूरी समस्याएं तो हल हो जाएंगी। वहीं कई मजदूरों का कहना था कि महीने में 20-22 दिन काम मिलता है, उस पर भी सरकार ने राशन कार्ड काट दिया है। कर्मचारियों ने बगैर जांच के ही अपात्र दिखा दिया है तो अब दफ्तर के चक्कर लगा रहे हैं तो कार्ड नहीं बन पा रहा है। कम से कम राशन मिलने से कुछ तो मदद मिल जाती थी, अब तो राशन भी नहीं मिल रहा है।
सुझाव
मजदूर एवं मिस्त्रियों की मजदूरी की दरें हो तय।
नई जगह पर मंडी पर लगे रोक, प्रमुख स्थलों पर रहे मंडी।
भवन निर्माण से जुड़े मजदूरों का भवन सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में कराएं पंजीकरण।
ओवर टाइम कराने पर मजदूरों को अलग से देय हो धनराशि।
शिकायत
मजदूरों में नहीं है एकता, मंडी में होता है मोल भाव।
किसी काम के लिए ले जाते हैं मजदूरों को, कराते हैं दूसरा काम।
कई मजदूरों का नहीं है भवन सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में पंजीकरण।
ओवर टाइम कराने पर नहीं देते हैं अलग से धनराशि।
घर में हर दिन चूल्हा जलने का संकट
संवाद के दौरान मजदूरों का कहना था कि बाहर के जिलों से भी मजदूर यहां पर आ गए हैं। मजदूर ज्यादा हो गए हैं तो इस स्थिति में काम नहीं मिल पाता है। जिस दिन काम मिलता है, उस दिन अगले दो दिन की भी व्यवस्था रखते हैं। किसी कारण से अगर एक-दो दिन काम नहीं मिले तो घर में चूल्हा न बुझे। अगर ऐसा न करें तो कई बार तो शाम को राशन के लिए भी दुकान से उधार मांगना पड़ता है।
श्रम विभाग की ओर से तय की जाए मजदूरी
मजदूरी की कीमत मंडियों में भी तय होनी चाहिए। अगर मजदूरों में एकता हो तो फिर कोई दिक्कत नहीं होगी। 400-450 रुपये दिहाड़ी तय हो जाएगी तो मजदूर को प्रतिदिन 100-150 रुपये तो बढ़कर मिलेंगे। इस स्थिति में अगर चार-पांच दिन काम नहीं भी मिलेगा तो कोई दिक्कत नहीं होगी लेकिन इसे सभी मजदूरों को समझना होगा। मजदूरों को ले जाने वाले ठेकेदार भी पूरी मजदूरी देंगे। इस पर श्रम विभाग को भी पहल करनी चाहिए।
योजनाओं का लाभ पाने के लिए होते परेशान
जिन मजदूरों का लेबर कार्ड बना हुआ है, उनका कहना था कि योजनाओं का लाभ पाने के लिए भी परेशान होना पड़ता है। कई-कई बार चक्कर कटवाए जाते हैं। लाभ पहुंचाने के लिए कार्यप्रणाली में पारदर्शिता आनी चाहिए तथा समय सीमा तय की जानी चाहिए ताकि मजदूरों के आवेदन की जांच वक्त पर हो सके। श्रमिक कार्ड का नवीनीकरण कराने में भी दिक्कत आती है।
मजदूरों का दर्द
भवन सन्निर्माण कर्मकार कल्याण योजना में हमारा पंजीकरण नहीं हो सका है। मजदूरी करने के लिए यहां पर आते हैं तो कई नशेबाज भी सुबह ही आ जाते हैं। वह रेट बिगाड़ते हैं तो इस दौरान कई बार झगड़ा हो जाता है। अगर पुलिस में शिकायत करें तो पुलिस दोनों पक्षों को साथ में ले जाती है। ऐसे में हमारी मजदूरी भी मारी जाती है। कम से कम यहां पर पुलिस को ध्यान रखना चाहिए।
दुष्यंत सिंह
सरकार की योजना से हमें कुछ लाभ नहीं मिल रहा है। कई बार तो महीने में दस दिन ही काम मिल पाता है। इस स्थिति में घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो जाता है। मंडी की संख्या बढ़ गई है तो काम कराने वाले भी मोल-भाव करते हैं।
डोरी लाल
मजदूरों के बीच एकता हो तो फिर सभी मजदूरों को उचित मजदूरी मिले लेकिन यहां मजदूरों के बीच एकता ही नहीं है। इसके चलते मजदूरी भी कम मिल पा रही है। महीने में कई बार 15 दिन ही काम मिलता है।
संगीत गोला
सुबह घर से खाने का टिफिन लेकर काम पर निकलते हैं। यहां पर मोल-भाव काफी होता है। मजदूर भी इस मोल भाव में फंस जाते हैं तथा जिन्हें काम नहीं मिल रहा होता है वह 300 रुपये पर राजी हो जाते हैं तो अन्य मजदूरों को भी मजदूरी कम मिलती है।
मोनू चाहर
मजदूरी करके ही परिवार का पेट पालते हैं, लेकिन कई बार काम नहीं मिल पाता है। इस स्थिति में परिवार की गुजर-बसर भी मुश्किल होती है। बच्चों की पढ़ाई के साथ में अन्य कार्य के लिए कोई योजना बनानी चाहिए। इस स्थिति में कोई बीमार पड़ जाए तो उसका इलाज कराने में भी दिक्कत होती है।
राजेंद्र सिंह
किसी भी तरह की योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। भवन निर्माण कार्य से जुड़े हैं लेकिन आज तक पंजीकरण नहीं हो सका है। पंजीकरण के लिए जगह जगह पर कैंप लगाकर श्रमिक कार्ड बनाने चाहिए। कई बार इतनी कागजी कार्रवाई बता देते हैं कि पूरी ही नहीं हो पाती हैं।
शंकर लाल
अगर मंडी में सभी मजदूर एक हो जाएं तो अच्छी मजदूरी मिलेगी। अभी तो हर रोज जितनी मजदूरी मिलती है, उसमें से भी कुछ रुपये बचाकर रखने पड़ते हैं कि कल काम मिला भी या नहीं।
नरेंद्र सिंह
जब तक मजदूरों में एकता नहीं होगी, तब तक मजदूरों को उचित मजदूरी नहीं मिलेगी। कई बार 400 रुपये मजदूरी में बात हो रही होती है तो कोई बीच में 300 रुपये मांगने लगता है। मोल-भाव की जगह मजदूरी तय होनी चाहिए। कैलाश चंद
मजदूरों जहां हर रोज काम की तलाश में खड़े होते हैं वहां कम से कम टिन शेड लगे। बरसात, गर्मी और धूप में बैठकर मजदूर काम की तलाश करते हैं। बड़ी परेशानी होती है।
हीरू सिंह
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