अब आप न करना कोई चूक, तभी हो सकेगी सुरक्षा अचूक
किसी भी आपात स्थिति चाहे वो प्राकृतिक आपदा हो, तकनीकी संकट या युद्ध जैसी परिस्थितियां। इससे निपटने के लिए मॉक ड्रिल यानी पूर्वाभ्यास बेहद जरूरी हो गया है। इसमें प्रशासनिक एजेंसियों के साथ-साथ आमजन की भागीदारी भी अहम मानी जाती है।
मॉक ड्रिल सिर्फ एक औपचारिकता नहीं। वह प्रशिक्षण है जो वास्तविक संकट के समय जान बचाने में सहायक बनता है। वर्तमान में सीमा पर विवाद के बीच सिविल डिपेंस, आपदा प्रबंधन, एसपीओ, फायर विभाग आदि को विषम परिस्थितियों से निपटने को तैयार किया जा रहा है।
प्रशासन की ओर से समय-समय पर सिविल डिफेंस, आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, एसपीओ और अन्य सुरक्षा बलों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। लेकिन यह समझना जरूरी है कि सिर्फ सुरक्षाबलों को तैयार कर देना काफी नहीं है। जब तक आम जनता को भी आपातकालीन स्थिति में क्या करना है, इसका स्पष्ट ज्ञान नहीं होगा, तब तक किसी भी तैयारी को मुकम्मल नहीं माना जा सकता।
युद्धकालीन या आपदा की स्थिति में कई बार संचार प्रणाली फेल हो जाती है। रास्ते बंद हो जाते हैं और अफरातफरी का माहौल बनता है। ऐसे में जागरूक और प्रशिक्षित नागरिक ही एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं। मॉक ड्रिल का मकसद यही होता है कि नाअगरिकों को यह सिखाया जाए कि संकट के समय घबराएं नहीं। निर्धारित प्रक्रिया के तहत खुद को और दूसरों को सुरक्षित करें। विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूल, कॉलेज, बाजार, कार्यालय और रिहायशी कॉलोनियों में समय-समय पर मॉक ड्रिल कराई जानी चाहिए। इससे सभी आयु वर्ग के लोग यह जान पाते हैं कि भूकंप, बाढ़, आगजनी या हवाई हमले जैसी स्थिति में उन्हें कहां जाना है, क्या करना है और क्या नहीं करना है। अलीगढ़ प्रशासन भी इसी दिशा में लगातार प्रयास कर रहा है। हाल ही में कई शैक्षणिक संस्थानों और बाजारों में मॉक ड्रिल कराई गईं। जिसमें सिविल डिफेंस और आपदा प्रबंधन टीमों ने आम नागरिकों को जागरूक किया। यह कवायद आगे भी चलती रहेगी, लेकिन इसके लिए हर नागरिक की भागीदारी और गंभीरता अनिवार्य है।
जीवन रक्षा का जरूरी माध्यम
हमारे देश में आपदाएं अचानक आती हैं और अधिकतर लोग उनके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होते। मॉक ड्रिल लोगों में आत्मविश्वास और त्वरित निर्णय लेने की क्षमता विकसित करती है। यह सिर्फ एक औपचारिक अभ्यास नहीं, जीवन रक्षा का जरूरी माध्यम है।
हेमंत कुमार, सेक्टर वार्डन, नागरिक सुरक्षा
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आपदा की घड़ी में घबराहट और भ्रम सबसे बड़ा दुश्मन होता है। जब आम लोग पहले से मॉक ड्रिल में भाग लेते हैं, तो उनका मानसिक संतुलन बना रहता है और वे प्रभावी रूप से संकट का सामना कर पाते हैं। यह मनोवैज्ञानिक रूप से भी बेहद उपयोगी है।
डॉ. अंतरा माथुर, मनोचिकित्सक
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हमने 1971 के युद्ध में भी देखा कि प्रशिक्षित नागरिक कितने काम आते हैं। अब तो खतरे और भी ज्यादा हैं। आतंकी हमले से लेकर जैविक आपदाओं तक। ऐसे में मॉक ड्रिल केवल जिम्मेदारी नहीं, एक राष्ट्रीय आवश्यकता बन चुकी है।
कर्नल आर के सिंह
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आपदा के इस समय में कई स्थानों पर मॉक ड्रिल कराई गई हैं। बच्चों में पहले डर था, लेकिन अभ्यास के बाद वे शांत और व्यवस्थित तरीके से बाहर निकले। हर स्कूल में ऐसे ट्रेनिंग कार्यक्रम आयोजित होने बेहद जरूरी हैं।
रामेश्वर, सेक्टर वार्डन, नागरिक सुरक्षा
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हलमे या अग्निकांड में समय का सबसे ज्यादा महत्व होता है। एक मिनट की देरी जान पर भारी पड़ सकती है। मॉक ड्रिल के जरिए लोग यह सीखते हैं कि आग लगने पर क्या करें और क्या नहीं। यह जानकारी जीवन बचाने में मददगार है।
राजीव अग्रवाल, नोडल, एसपीओ
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शहरी युद्ध या हवाई हमलों की आशंका को नकारा नहीं जा सकता। युद्धकाल में जब सेना अपने काम में व्यस्त होती है। तब आपदा प्रबंधन और आम नागरिकों की भूमिका अहम हो जाती है। मॉक ड्रिल से हम फर्स्ट रिस्पॉन्डर तैयार करते हैं।
सरदार चरनजीत सिंह टीटू, एसपीओ
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आपदा प्रबंधन का पहला सूत्र है तैयारी। जब तक आम जनता को सीपीआर देना, बेसिक फर्स्ट एड और सुरक्षित निकासी प्रक्रिया की जानकारी नहीं होगी। तब तक कोई भी योजना अधूरी है। मॉक ड्रिल इन्हीं बिंदुओं को आम जनता तक पहुंचाती है।
नरेंद्र व्यास, नोडल आपदा प्रबंधन
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आपदाएं न सिर्फ जान लेती हैं। समाज में अव्यवस्था और अविश्वास फैलाती हैं। अगर मॉक ड्रिल के जरिए हम सामाजिक सहयोग, अनुशासन और जागरूकता पैदा करें, तो हम न सिर्फ बच सकते हैं दूसरों के भी मददगार बन सकते हैं।
हिमांशु गुप्ता, आपदा प्रबंधन
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