निजी स्कूल संचालकों को सरकार से संजीवनी का इंतजार
जनपद के मान्यता प्राप्त स्कूल संचालक तमाम समस्याओं से जूझ रहे है। लगातार अपनी मांगों को लेकर विभागीय अधिकारियों के जरिए सरकार तक अपनी बात पहुंचा रहे है,लेकिन स्कूल संचालकों की समस्याओं का निस्तारण आज तक सरकार नहीं कर सकी है। ।
जनपद की सरकारी व्यवस्था के अलावा मान्यता प्राप्त स्कूलों के जरिए बच्चों को शिक्षित किया जाता है। जिससे कि बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान कर उनका बेहतर भविष्य बन सके। निजी स्कूल संचालक अपनी तमाम समस्याओं को लेकर आज भी अपने आपको उपेक्षित महसूस करते है। सुविधाओं के लिए सरकार की ओर निहारते रहते है,लेकिन इसके बाद भी निजी स्कूल संचालकों की कोई सुनवाई नहीं होती है। हिन्दुस्तान ने निजी स्कूल संचालकों के पास पहुंचकर जब उनकी पीड़ा सुनी तो उनका दर्द छलक उठा। शिक्षक श्यामवीर ने बताया कि सरकार मोटा वेतन सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को देती है,लेकिन मान्यता प्राप्त विद्यालयों में तैनात शिक्षकों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। शिक्षक रेशम पाल ने बताया कि सरकारी स्कूलों की तरह मान्यता प्राप्त विद्यालयों में ईमानदारी के साथ शिक्षक व शिक्षिकाएं बच्चों को शिक्षित करने का कार्य करते है,लेकिन इसके बाद भी कोई सुविधा नहीं दी जाती है। शिक्षक कैलाश कुमार ने बताया कि नई शिक्षा नीति के तहत सबको समान शिक्षा दिए जाने की बात करते हैं,लेकिन इसके बाद भी मान्यता प्राप्त विद्यालयों के शिक्षकों के लिए कुछ नहीं किया जा रहा। सूर्य प्रकाश ने कहा कि बच्चों को बेहतर शिक्षा मिले। इसके लिए निजी स्कूलों में काफी मेहनत की जाती है,लेकिन इसके बाद भी सरकार कोई सुनवाई नहीं करती। मान्यता प्राप्त स्कूल संचालक चाहते है कि आरटीई के तहत पढ़ने वाले बच्चों की फीस साढ़े चार सौ से बढ़ाकर आठ सौ रुपये की जाए। विद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए मानदेय की व्यवस्था सरकार की ओर से होनी चाहिए। नई शिक्षा नीति के तहत जब समान पढ़ाई की बात हो रही है। तो सभी स्कूलों में कोर्स भी एक जैसा होना चाहिए। हीनभावाना की दृष्टि से विभागीय अधिकारी मान्यता प्राप्त विद्यालयों का न देखे।
आरटीई के तहत पढ़ते है बच्चे
शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत मान्यता प्राप्त विद्यालयों में प्री प्राइमरी और कक्षा एक में बच्चों का निशुल्क दाखिला लॉटरी सिस्टम के जरिए होता है। जिन्हें सरकार की ओर से पांच हजार रुपये किताब कॉपी आदि के लिए दिया जाता है। जबकि विद्यालय संचालकों को साढ़े चार सौ रुपये महीने शुल्क प्रतिपूर्ति के रूप में मिलते है। निजी स्कूल संचालक चाहते है लगातार बढ़ती मंहगाई को देखते हुए शुल्क प्रतिपूर्ति करीब आठ सौ रुपये महीने होनी चाहिए। जिससे कि विद्यालय संचालन करने में दिक्कतों का सामना न करना पड़े।
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सरकारी स्कूलों जैसी मिले सुविधाएं
निजी स्कूल संचालक चाहते हैं कि जिस तरह से बेसिक शिक्षा विभाग के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों को सुविधाएं दी जाती है। उसी के अनुसार मान्यता प्राप्त विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को उसी प्रकार की सुविधाएं दी जाए। सरकारी स्कूलों में डीबीटी के माध्यम से 1250 रुपये दिए जाते है,जिससे कि बच्चों के अभिभावक उनकी यूनिफार्म आदि खरीदते है। इसके अलावा दोपहर के वक्त एमडीएम का लाभ सरकारी स्कूलों में दिया जाता है। उसी प्रकार निजी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब व असहाय परिवारों के बच्चों को एमडीएम का लाभ मिलना चाहिए। जिससे कि बच्चे अपने आपको उपेक्षित महसूस नहीं कर सके।
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मानदेय की होनी चाहिए व्यवस्था
सरकार एक ओर जहां निजी स्कूलों में आरटीई के तहत गरीब बच्चों को पढ़ा रही है। निजी स्कूलों में शिक्षण कार्य करने वाले शिक्षकों को काफी कम वेतन स्कूलों की ओर से मिलता है। जिस वेतन के जरिए वो अपने परिवार का भरण पोषण तक नहीं कर पाते है। निजी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक व शिक्षिकाएं चाहते है कि सरकार उनके लिए भी मानदेय की व्यवस्था करें। शिक्षकों की मांग है कि कम से कम दस हजार रुपये महीने मानदेय सरकार की ओर से निजी स्कूलों में तैनात शिक्षक व शिक्षिकाओं को दिया जाना चाहिए। मानदेय को लेकर निजी स्कूलों में तैनात शिक्षक व शिक्षिकाएं लंबे समय से संघर्ष कर रहे है,लेकिन शिक्षकों के संघर्ष करने के बाद आज तक मानदेय को लेकर सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
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लगातार सालों से कर रहे गुहार
निजी स्कूल संचालक अपनी मांगों को लेकर लगातार विभागीय अधिकारी बीएसए, डीआईओएस, एडी बेसिक के अलावा कमिश्नर, एमएलसी, सांसद, क्षेत्रीय विधायक आदि के संपर्क में है। विभागीय अधिकारियों को मुख्यमंत्री के नाम संबोधित ज्ञापन मांगों का निजी स्कूल संचालकों की ओर से लगातार दिए जाते है। जिससे कि सरकार में बैठे लोग निजी स्कूल संचालकों की पीड़ा को समझे। लेकिन कई साल बीत जाने के बाद आज तक सरकार की ओर से निजी स्कूल संचालकों की मांगों को पूरा करने के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई गई। जिस वजह से स्कूल संचालक अपने आपको उपेक्षित कर रहे है। जब चुनाव होते है तो पार्टिया जीतने के बाद मांगों को पूरा किए जाने का आश्वासन देती है,लेकिन वो आश्वासन आज तक निजी स्कूल संचालकों का पूरा नहीं हो सका है।
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निरीक्षण के नाम पर न हो शोषण
शासन के निर्देश पर हर साल मान्यता प्राप्त व बिना मान्यता के चल रहे स्कूलों की पड़ताल विभागीय अधिकारियों के जरिए कराई जाती है। ब्लाक के खंड शिक्षा अधिकारियों आदि के जरिए विद्यालयों में जाकर पड़ताल की जाती है। विभाग के स्तर से निजी स्कूलों के संचालकों का शोषण किए जाने के आरोप पूर्व में लगते रहे है। जिस वजह से निजी स्कूल संचालकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। निजी स्कूल संचालक चाहते है कि निरीक्षण आदि के नाम पर शोषण न किया जाए। यदि किसी के पास मान्यता की पत्रावली पूरी नहीं है या कोई कमी रह गई है। तो ऐसे स्कूल संचालकों को विभाग की ओर से परेशान न किया जाए। उन्हें अपनी पत्रावली को पूरा किये जाने का पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए।
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शिकायत
- आरटीई के तहत मिलने वाली शुल्क प्रतिपूर्ति को नहीं बढ़ाया जा रहा।
- निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को नहीं मिलता सरकारी सुविधाओं का लाभ।
- लंबे समय से तैनात शिक्षक व शिक्षिकाओं के लिए नहीं सरकारी मानदेय की व्यवस्था।
- निरीक्षण के नाम पर अधिकारियों के स्तर से किया जाता है परेशान।
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सुझाव
- सरकार को आरटीई के तहत पढ़ने वाले बच्चों की शुल्क प्रतिपूर्ति बढ़ाई जाए।
- सरकारी सुविधाओं का लाभ निजी स्कूलों के बच्चों को मिलना चहिए।
- सरकार को लंबे समय से तैनात शिक्षकों के लिए मानदेय की व्यवस्था करनी चाहिए।
- निरीक्षण के दौरान यदि कोई कमी मिले तो उसको पूरा करने के लिए दिया जाए समय।
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फैक्ट फाइल
मान्यता प्राप्त प्राथमिक विद्यालय- 845
मान्यता प्राप्त उच्च प्राथमिक विद्यालय-365
शिक्षक व शिक्षिकाओं की संख्या-1123
जनपद में संचालित ब्लाक- 07
नगर क्षेत्र-02
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