बोले देवरिया : संविदाकर्मी का टैग उतरे तब संवरेगा भविष्य
Deoria News - Deoria News: स्वास्थ्य महकमे में एचआईवी से जुड़े कार्यक्रम में तैनात संविदाकर्मी जोखिम उठाकर कार्य करते हैं। जिला मुख्यालय से लेकर सीएचसी तक ये लोग एच
देवरिया। एचआईवी मरीजों की जांच को जिला मुख्यालय पर वर्ष 2005 में जांच व परामर्श केन्द्र खुला। जिले में बढ़ती एचआईवी मरीजों की संख्या को देख वर्ष 2008 में जिला मुख्यालय के अलावा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर भी एचआईवी, एड्स की जांच और परामर्श के लिए केन्द्र खोल दिए गए। वहां पर लैब टेक्निशियन और परामर्शदाता की तैनाती गई और सभी केन्द्रों पर गर्भवती की एचआईवी जांच अनिवार्य कर दिया गया। इस बीमारी से लोगों को जागरुक करने के लिए सीएमओ ऑफिस में जिला एड्स नियंत्रण एवं रोकथाम इकाई का गठन किया गया। जगह-जगह जांच केन्द्र खुलने से जिले में एचआईवी मरीजों की पहचान भी ज्यादा से ज्यादा होने लगी। मगर इन मरीजों से रोज-रोज रूबरू होने वाले एचआईवी कार्यक्रम से जुड़े संविदाकर्मी आज भी काफी कम मानदेय पर कार्य करने को मजबूर हैं।
संविदाकर्मी उपेन्द्र तिवारी कहते हैं कि संदिग्ध मरीजों की जांच सबसे अधिक जोखिम भरी होती है। इसे देखते हुए हम लोगों को मानदेय भी मिलना चाहिए। बृजेश कुमार तिवारी ने कहा कि इस बढ़ती महंगाई में मानदेय बढ़ाने की जगह वार्षिक वृद्धि को 10 से घटाकर 5 फीसदी कर दिया गया, जबकि इस कार्यक्रम से जुड़े डाक्टरों।
विद्या प्रकाश गौतम ने कहा कि कोरोना काल में भी वे लोग खुद और परिवार की जान जोखिम में डालकर संदिग्ध मरीजों की जांच, परामर्श व एचआईवी मरीजों को दवा पहुंचाने में लगे रहे। उन्हें आयुष्मान कार्ड तक का लाभ नहीं दिया जाता है। शिरीष कुमार तिवारी ने कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद एकमुश्त धनराशि या पेंशन आदि की कोई व्यवस्था नहीं होने से जीवन कटना मुश्किल हो जाएगा।
अमरेन्द्र कुमार यादव ने कहा कि कार्यक्रम को दिशा में कन्वर्ट कर दिया गया है, इससे देवरिया पर गोरखपुर मंडल के सभी चार जिलों की मानिटरिंग की जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन मानदेय में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई। अरविंद प्रजापति ने कहा कि विधायक, सांसद व स्वास्थ्य मंत्री तक को अपनी मांगों का ज्ञापन दिया गया, लेकिन उनकी एक भी मांग पूरी नहीं की गई। अधिकांश कर्मी ओवरएज हो गए हैं, जिससे उन्हें दूसरी जगह नौकरी मिलना भी मुश्किल हो गया है।
सांसद, विधायक, स्वास्थ्य मंत्री से कर्मचारी कर चुके हैं फरियाद
एचआईवी एड्स के कार्यक्रम से जुड़े संविदा कर्मचारी नियमित करने, वार्षिक मानदेय वृद्धि तथा अन्य मांगों को लेकर लगातार मुखर रहे हैं। करीब दो साल पूर्व तत्कालीन सदर सांसद डाॅ.रमापति राम त्रिपाठी से मिलकर उन्हें ज्ञापन दिए। सांसद ने उनकी मांगों को प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक व केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री तक पहुंचाने का आश्वासन दिया। सदर विधायक डाॅ. शलभ मणि त्रिपाठी एवं स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक को भी मांग पत्र सौंपा। पिछले साल मुबारकपुर के विधायक अखिलेश ने विधानसभा में इन संविदाकर्मियों को 20 फीसदी अतिरिक्त मासिक पारिश्रमिक देने का मुद्दा उठाया था। जवाब में कहा गया कि यह कार्यक्रम नाको व स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित है। मानदेय वृद्धि का निर्धारण नाको और भारत सरकार द्वारा ही किया जायेगा।
शिकायतें
1. सालों से कार्य करने के बाद भी नौकरी पक्की नहीं है। संविदाकर्मियों को हर साल नवीनीकरण कराना पड़ता है।
2. सामान कार्य के बाद भी अन्य कर्मियों की तुलना में संविदाकर्मियों को काफी कम मानदेय मिलता है।
3. जोखिम का कार्य करने के बाद भी आयुष्मान कार्ड का लाभ नहीं।
4. हमारी मांग 20 फीसदी वार्षिक वेतन वृद्धि की थी लेकिन हमारा मानदेय सिर्फ पांच फीसदी बढ़ता है।
5. रिटायरमेंट के बाद पीएफ, पेंशन की कोई सुविधा नहीं मिलती।
सुझाव
1. संविदाकर्मियों की नौकरी पक्की की जाए जिससे उनका भविष्य सुरक्षित हो सके।
2. समान कार्य करने वाले सभी कर्मियों को समान वेतन की सुविधा दी जाए।
3. सभी संविदाकर्मियों और उनके परिजनों के लिए आयुष्मान कार्ड की सुविधा दी जाए।
4. महंगाई को देखते हुए सभी कर्मचारियों का वेतन दोगुना करें।
5. सभी कर्मचारियों को पीएफ और पेंशन की सुविधा दी जाए।
हमारी भी सुनिए
हम लोग एचआईवी, एड्स मरीजों के बीच काफी जोखिम उठाकर काम करते हैं। खुद तथा परिवार के भी संक्रमित होने का खतरा बना रहता है। हमारे जीवन पर हमेशा संकट बना रहता है।
उपेन्द्र तिवारी, सुपरवाइजर
समान कार्य करने के बाद भी हम लोगों को समान मानदेय का भुगतान नहीं किया जाता है। एचआईवी संविदाकर्मी शासन से इसकी वर्षों से मांग करते आ रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
बृजेश कुमार तिवारी, संविदाकर्मी
महंगाई को देख 20 फीसदी वार्षिक वेतन वृद्धि की मांग की गयी, लेकिन मानदेय बढ़ाने की जगह 10 फीसदी घटा दिया गया। बादे में वेतन वृद्धि पांच फीसदी कर दी गई। यह अन्याय है।
विद्या प्रकाश गौतम, परामर्शदाता
डेढ़ दशक से अधिक समय से कार्य करने के बाद भी हमें नियमित नहीं किया गया है। हमारा भविष्य असुरक्षित दिख रहा है। सरकार हमारे परिवार की चिंता करे और हमें स्थाई करें।
अमरेन्द्र कुमार यादव, संविदाकर्मी
15 साल से नौकरी करने के बाद भी हम लोगों को हर साल सेवा का नवीनीकरण कराना पड़ता है। हमारे नौकरी की गारंटी नहीं रहती है और भविष्य अनिश्चित बना हुआ है।
अरविंद प्रजापति, एलटी
हम लोगों का मानदेय काफी कम है और जो मानदेय मिलता भी है उसकी तिथि तय नहीं है। अब-तक मार्च महीने का मानदेय नहीं मिला है, इससे परिवार चलाने में काफी दिक्कत होती है।
रोहित त्रिपाठी, संविदाकर्मी
अपनी मांगों और समस्याओं को लेकर विधायक, सांसद और स्वास्थ्य मंत्री तक को ज्ञापन दिया गया, लेकिन समस्याएं जस की तस हैं। सरकार का उपेक्षापूर्ण रवैया हमें आहत करता है।
राजेश कुमार सिंह, संविदाकर्मी
जोखिम वाला कार्य करने के बाद भी हमें आयुष्मान कार्ड का लाभ नहीं मिलता है। इससे खुद व परिजनों के बीमार होने पर अपने पास से पैसा खर्च कर इलाज कराना पड़ता है।
अनिता पाण्डेय, संविदाकर्मी
सेवा पूरी होने के बाद एक मुश्त धनराशि या पेंशन की कोई व्वस्था नहीं हैं। मानदेय काफी कम है इससे बचत भी नहीं होती। रिटायर होने के बाद आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
प्रदीप, संविदाकर्मी
नाको द्वारा जिला कार्यक्रम इकाई को दिशा में कन्वर्ट कर दिया गया है, इससे देवरिया को मंडल के चारों जिलों की माॅनीटिरिंग करनी पड़ रही है, लेकिन हमारा मानदेय नहीं बढ़ा है।
श्वेता वर्मा, संविदाकर्मी
एचआईवी, एड्स मरीजों की जांच, परामर्श, इलाज में हमेशा खुद और परिवार के संक्रमित होने का खतरा बना रहता है।हमेशा सतर्क होकर कार्य करना पड़ता है।
रूबी, संविदाकर्मी
कोविड काल में सभी कर्मचारी जोखिम उठाकर एचआईवी मरीजों तक नियमित दवा पहुंचाने से लेकर उन्हे परामर्श देने में लगे रहे। इसके लिए हमें कभी अतिरिक्त भत्ता तक नहीं दिया गया।
जितेन्द्र, संविदाकर्मी
कार्यरत कर्मचारी की मौत होने पर भी स्वास्थ्य विभाग द्वारा परिवार को कोई धनराशि नहीं दी जाती है, इससे कर्मी आपस में चंदा जुटाकर मृतक के परिवार को मदद करते हैं।
नंदिनी, संविदाकर्मी
संविदा पर तैनात कर्मियों को बिना जांच, नोटिस के ही मामूली बात पर नौकरी से बाहर कर दिया जाता है। इससे सालों कार्य करने के बाद हमें दूसरी जगह काम नहीं मिलता है।
ब्रह्मस्वरूप त्रिपाठी, संविदाकर्मी
बोले पदाधिकारी
एचआईवी एड्स के संविदा कर्मचारी काफी जोखिम उठाकर कार्य करते हैं, इसके बाद भी उन्हे अल्प मानदेय दिया जाता है। बार-बार मांग के बाद न तो 20 फीसदी वार्षिक वृद्धि की गयी और न नौकरी की गारंटी दी गयी। हर साल नवीनीकरण से कर्मियों को नौकरी जाने का भय बना रहता है। स्वास्थ्य विभाग में सबसे जोखिम में काम करने के बाद भी उनकों आयुष्मान कार्ड का लाभ नहीं दिया जाता है। सेवा पूरी होने के बाद उन्हे कोई धनराशि देने, पेंशन की योजना नहीं है। हमारी समस्याओं को देखते हुए जनप्रतिनिध व अधिकारी पहल करें।
सुरेन्द्र शुक्ला, अध्यक्ष, उप्र एड्स नियंत्रण सोसाइटी, देवरिया
बोले जिम्मेदार
एड्स नियंत्रण कार्यक्रम में सभी कर्मचारियों की भर्ती संविदा पर होती है। इनकी वेतन बृद्धि, सेवा शर्तों तथा अन्य सुविधाएं शासन स्तर पर तय होती है। वेतन में बढ़ोतरी, आयुष्मान कार्ड का लाभ तथा जोखिम भत्ता आदि भी उप्र राज्य एड्स नियंत्रण सोसाईटी के स्तर का मामला है। स्थानीय स्तर पर जो भी मांग, समस्या होगी उसे प्राथमिकता के आधार पर पूरा कराया जाएगा।
डॉ. अनिल कुमार गुप्ता, सीएमओ
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