बोले इटावा: हमें भी मिले काम तो समस्याएं हल हो जाएं तमाम
Etawah-auraiya News - खेतिहर मजदूरों की स्थिति बहुत खराब है। उन्हें रोजाना केवल 300-350 रुपये मिलते हैं, जिससे परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल होता है। बुढ़ापे में काम न मिलने पर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। मजदूरों...
खेतिहर मजदूर खेतीबाड़ी से जुड़े काम करते हुए अपनी आजीविका चलाते हैं। मजदूरी के तौर पर उन्हें जों मिलता है उससे घर-परिवार का भरण पोषण करना मुश्किल पड़ जाता है। महज 300 से 350 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से ही काम करना पड़ता है। युवावस्था में तो किसी तरह काम चल जाता है पर बुढ़ापे में काम न मिलने पर खाने तक के लाले पड़ जाते हैं। ऐसे में खेतिहर मजदूरों को सरकारी योजना जैसे आयुष्मान और जीवन बीमा आदि की दरकार है। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान से अपनी समस्याओं को साझा करते हुए खेतिहर मजदूरों ने साफ कहा कि उन्हें भी खेत की मेड़ की तरह सीधी और सरल तरह से चलने वाले जीवन की दरकार है। बोले कि अगर काम मिलता रहे तो समस्याएं कम हो सकती हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों में काम करने वाले मजदूरों की दशा सही सलामत नहीं है। उन्हें न तो सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है और न ही बुढ़ापे के दौरान मजदूरी छूटने पर पेंशन आदि की व्यवस्था है। मजदूरों का कहना है कि उन्हें आयुष्मान कार्ड और जीवन बीमा जैसी योजनाओं का लाभ मिल जाए तो जीवन कुछ ठीक हो सकता है। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान से अपनी चर्चा के दौरान खेतिहर मजदूर मालती देवी ने कहा की बीमारी और अन्य हालात में आर्थिक सहायता उपलब्ध होनी चाहिए। साल के सभी दिन काम मिलना चाहिए। हाकिम सिंह कहते हैं की खेतिहर मजदूरों की स्थिति अब ज्यादा खराब हो गई है। हरविलास ने कहा कि जीवन सुरक्षा की गारंटी सरकार से चाहते हैं आयुष्मान कार्ड की सुविधा उपलब्ध हो जिससे हम जैसे लोगों को बीमारी की स्थिति में परेशान न होना पड़े। नितिन कुमार का कहना था कि जिन खेतिहर मजदूरों का आकस्मिक रूप से निधन हो जाता है उनको सरकारी स्तर पर कम से कम 5 लाख की मदद मिलनी चाहिए।
शैलेन्द्र कुमार कहते हैं कि खेती और मजदूरों की फिक्र आखिर किसको है। समस्या किससे कहीं जाए कोई सुनवाई को तैयार नहीं। खेतिहर मजदूर हर स्तर से अनदेखी का शिकार हैं। किशुना देवी कहतीं हैं कि उनके लिए न तो बीमा योजना है और न ही पेंशन। बहुत से पात्र परिवार अभी भी पेंशन से वंचित हैं। खेती किसानी में सबसे प्राथमिक कड़ी खेती और मजदूरों को नजरअंदाज किया जा रहा है। केंद्रीय बजट से लेकर राज्य सरकार के बजट में भी खेतिहर मजदूरों के लिए कोई विशेष योजना नहीं है। मनरेगा में भी बहुत अधिक बढ़ोतरी नहीं हुई लिहाजा खेतों पर काम करने के साथ-साथ समय-समय पर बाहर मजदूरी करने जाना पड़ता है। मनरेगा मजदूरी से जीवन यापन तो किया जा सकता है लेकिन स्थाई रोजगार की व्यवस्था न होने से खेतिहर मजदूरों के सामने कई बड़ी समस्याएं है। बच्चों की शादी से लेकर बच्चों की पढ़ाई, बीमारी के इलाज और न जाने कितनी समस्याएं हर दिन मुंह बाए खड़ी रहती है। खेतिहर मजदूर मालती का कहना था कि ग्रामीण क्षेत्र के मुख्य स्थान पर कैंटीन की सुविधा, प्रत्येक गरीब परिवार को खेती योग्य जमीन की सुविधा होनी चाहिए। जिससे कि वह अपने परिवार को सही तरीके से गुजर बस कर करके आगे बढ़ा सके। आयुष्मान योजना का लाभ भी मजदूरों को दिलाया जाए। रिंकू राठौर कहते हैं कि अभी भी खेती-बाड़ी से जुड़े ऐसे काम है जो कि मजदूरों के बिना संभव नहीं है। जिसमें आलू बुवाई से लेकर गेहूं कटाई, धान रोपाई जैसे काम शामिल है लेकिन धीरे-धीरे बढ़ते मशीनों के प्रयोग से खेतिहर मजदूरों को रोजगार की चिंता सता रहीं है। ऐसे में प्रतिदिन 300 से 350 रुपए की मजदूरी मिलती है। जिससे घर चलाना थोड़ा मुश्किल होता है।
ठेके पर मिलें काम तो बन जाएं जीवन आसान
खेतिहर मजदूर कहते है ठेके पर काम मिलें तो उससे लाभ मिल जाता है पप्पू कहते हैं कि अब तो बड़ी संख्या में किसानों ने अपनी जमीन पर फसल करना छोड़ दिया वह अपनी खेती ठेके पर दे रहे हैं जिससे उन्हें एक मुक्त रकम मिल जाती है। ठेके पर खेती करने वाले लोग मजदूर को कम दिहाड़ी देकर काम निकलवाना चाहते हैं। पूनम देवी कहतीं हैं कि खेती बाड़ी में मजदूरी की स्थिति ठीक नहीं है। ऐसे में तमाम मजदूर तो दूसरे प्रदेशों में काम के लिए निकल जाते। अपना दर्द साझा करते हुए शैलेन्द्र कुमार कहते हैं कि अब तक सही सलामत है पर जब तक मजदूरी मिल रही है तभी तक ठीक है बुढ़ापे में सबसे अधिक समस्या रोजी-रोटी की होती है। गोविन्द कुमार ने बताया की खेतिहर मजदूरों के लिए पेंशन की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। जिससे उन्हें इधर-उधर हाथ न फैलाना पड़े, पेंशन मिले तो जीवन सुधर जाएगा।
सरकार को चाहिए कि श्रम विभाग में पंजीकरण कराएं और हमें भी सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाए। आयुष्मान का लाभ मिले।
- पप्पू
ठेके पर काम मिलने पर थोड़ी राहत मिलती है बड़े किसान मशीनों का सहारा लेने लगे जिसके चलते काम की कमी होती जा रही है।
- नितिन
न तो परिवार के लिए कुछ जोड़ पाए हैं और न ही अपना बुढ़ापा सुरक्षित करने के लिए हाथ में कुछ बचा है। सरकारी योजनाओं का लाभ मिलें।
- गोविन्द कुमार
आकस्मिक मृत्यु की स्थिति में परिवार को 5 लाख की सरकारी सहायता मिलनी चाहिए। बच्चों को अच्छी शिक्षा भी मिलनी चाहिए।
- रिंकू राठौर
खेतिहर मजदूरों को बीमा योजना का लाभ मिले जिससे बीमारी की स्थिति में उन्हें परेशान न होना पड़े। साथ ही आयुष्मान कार्ड भी मिलें।
- विशना देवी
दिहाड़ी में जो मजदूरी मिल रही है वह मेहनत के हिसाब से कम है मजदूरी बढ़ाई जाए साथ ही मनरेगा में स्थाई रोजगार मिले।
- शैलेन्द्र कुमार
गेहूं कटाई, आलू खुदाई जैसे काम ठेके पर मिल जाए तो इससे आमदनी थोड़ी बेहतर हो जाती है। सरकारी योजनाएं संचालित हो।
- पूनम देवी
रोजगार का संकट पैदा हो गया गांव में मजदूरी के पैसे से घर चलाना मुश्किल हो रहा है सरकार को चाहिए कि जीवन का गुजर बसर हो।
- मालती
योजनाओं का भी लाभ नहीं मिल पा रहा यह तो सही है कि कारखाने में मजदूरी अधिक मिलती है इस वजह से गांव खाली हो चुके हैं।
- लाली देवी
मजदूरों को किसी भी पेंशन योजना का लाभ नहीं मिलता पता नहीं किस वजह से सरकार की नजरअंदाजी झेलनी पड़ रही है।
- कुशमा देवी
खेतिहर मजदूरों के बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए प्रयास होना चाहिए क्योंकि उन लोगों का जीवन स्तर पिछड़ा हैं।
- हाकिम सिंह
खेतिहर मजदूरों की तरक्की के लिए प्रयास होना चाहिए उनके लिए योजनाएं बने इसके लिए वह बेहतर जीवन जी सके।
- हरविलाश
सुझाव--
1. खेतिहर मजदूरों का जिला स्तर पर पंजीकरण कराया जाना जरूरी है।
2. मजदूरों को बेहतर जीवन के लिए कल्याणकारी योजनाएं शुरू की जाए।
3. खेतिहर मजदूरों और उनके परिवार के लिए स्वास्थ्य और जीवन बीमा जैसी योजनाएं शुरू की जाए।
4. आकस्मिक मृत्यु होने की दशा में खेतिहर मजदूरों के परिवार को 5 लाख रुपये सहायता मिलनी चाहिए।
5. सर्दी के मौसम में खेती और मजदूरों को कंबल और जैकेट वितरित किए जाने चाहिए।
शिकायत---
1. रोजाना खेतिहर मजदूरों को काम नहीं मिल पाता है, इससे मुश्किल से आजीविका चलती है।
2. खेतिहर मजदूरों का पंजीकरण नहीं होता है इसलिए उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता।
3. आकस्मिक मृत्यु की दशा में परिवार को आर्थिक सहायता नहीं मिलती जिससे परिवार टूट जाते हैं।
4. आयुष्मान कार्ड न होने से बीमारी की स्थिति में परेशानी आती है।
5. आर्थिक स्थिति खराब होने से बच्चों को अच्छी शिक्षा तक नहीं मिल पाती।
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