Even if they are not married men and women can live together for the sake of children Allahabad High Court orders शादी नहीं की तो भी संतान के लिए साथ रह सकते हैं स्त्री-पुरुष, इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश, Uttar-pradesh Hindi News - Hindustan
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शादी नहीं की तो भी संतान के लिए साथ रह सकते हैं स्त्री-पुरुष, इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश

  • संतान के लिए शादी किए बिना भी स्त्री-पुरुष साथ रह सकते हैं। कोर्ट ने यह आदेश संभल के लिव-इन दंपती की नाबालिग बेटी की ओर से दायर याचिका पर दिया है। लिव-इन जोड़े को पुलिस सुरक्षा देने को कहा है।

Deep Pandey प्रयागराज, विधि संवाददाता।Fri, 11 April 2025 06:09 AM
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शादी नहीं की तो भी संतान के लिए साथ रह सकते हैं स्त्री-पुरुष, इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि संतान के लिए शादी किए बिना भी स्त्री पुरुष साथ रहने के हकदार हैं। कोर्ट ने अंतरधार्मिक लिव-इन जोड़े को पुलिस सुरक्षा देने का निर्देश दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने संभल के लिव-इन दंपती की नाबालिग बेटी की ओर से दायर याचिका पर दिया।

याची के अधिवक्ता सैय्यद काशिफ अब्बास ने बताया कि बच्ची की मां के पहले पति की एक बीमारी के कारण मृत्यु हो गई। इसके बाद महिला अलग धर्म के एक युवक के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगी। इस दौरान उसे एक बच्चा भी हुआ। इस रिश्ते से महिला के पहले ससुराल वाले नाखुश हैं। धमकी दे रहे हैं। ऐसे में बच्ची की ओर से याचिका दाखिल कर सुरक्षा की मांग की गई है। कहा गया कि पुलिस उनकी प्राथमिकी दर्ज नहीं कर रही है।

खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि बिना विवाह के बालिग माता-पिता को साथ रहने का अधिकार है। अदालत ने संभल पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया कि यदि माता-पिता संबंधित पुलिस स्टेशन से संपर्क करते हैं तो प्राथमिकी दर्ज की जाए। कानून के अनुसार बच्चे और माता-पिता को आवश्यकतानुसार सुरक्षा दी जाए। कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली।

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करदाता को 19 लाख से अधिक मुआवजा देने का निर्देश

जीएसटी का भुगतान करने के बावजूद करदाता पर जुर्माना लगाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्रा​धिकरण (नोएडा) को निर्देश दिया है कि वह करदाता को 19,22,778 रुपये मुआवजा दे। यह आदेश न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने सुरेंद्र गुप्त की याचिका निस्तारित करते हुए दिया। याचिकाकर्ता ने गौतमबुद्ध नगर में अपनी संपत्ति किराए पर दी थी। जीएसटी एक्ट के तहत किराया कर योग्य था। याची ने नोएडा में 97,18,500 रुपये का एकमुश्त पट्टा कराया और 17,49,330 रुपये का कर जमा किया। उसने अपना रिटर्न दाखिल किया। नोएडा प्राधिकरण की गलती से याची की ओर से जमा किया गया कर जीएसटीआर थ्री-बी फार्म में नहीं दिख रहा था। याची ने कर जमा करने का साक्ष्य प्रस्तुत किया लेकिन उस पर विचार नहीं किया गया और कर तथा जुर्माना लगा दिया गया। अपीलीय प्राधिकारी राज्य जीएसटी ने भी अपील को खारिज करते समय रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री की अनदेखी की। इस पर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई।