Parents Struggle with Rising Costs of Private School Books and Uniforms बोले फिरोजाबाद: किताबों के बोझ से टूटी बच्चों की कमर, दामों से परिवार परेशान, Firozabad Hindi News - Hindustan
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बोले फिरोजाबाद: किताबों के बोझ से टूटी बच्चों की कमर, दामों से परिवार परेशान

Firozabad News - प्राइवेट स्कूलों में किताबों और यूनिफॉर्म की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। कक्षा तीन की किताबों का सेट 4000 रुपये और कक्षा सात का सेट 8000 रुपये है। अभिभावक महंगी किताबों और फीस के बोझ तले दबे हुए हैं।...

Newswrap हिन्दुस्तान, फिरोजाबादSat, 3 May 2025 01:52 AM
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बोले फिरोजाबाद: किताबों के बोझ से टूटी बच्चों की कमर, दामों से परिवार परेशान

क्षा तीन की किताबों का सैट 4000 रुपये। कक्षा सात का सैट 8000 रुपये। यह कीमते हैं प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली किताबों की। स्कूलों के स्टैंडर्ड के हिसाब से कोर्स की कीमत तय होती है। सिर्फ किताबों में ही नहीं, स्कूलों का यूनिफॉर्म में भी कमीशन तय होता है। अभिभावकों की कई बार दुकानों पर हॉट-टॉक हो जाती है। कई बार अभिभावक संघ स्कूलों की मनमानी के खिलाफ आवाज उठा चुके हैं। जिला प्रशासन को भी शिकायती पत्र सौंप चुके हैं, लेकिन इस वर्ष न तो स्कूलों से बिकती किताबों की जांच हो सकी है तो न ही अंकुश लगाने की पहल।

हिन्दुस्तान ने बोले फिरोजाबाद के तहत गांधी पार्क में अभिभावकों से संवाद किया तो अभिभावकों की जुबां पर स्कूलों की मनमानी का दर्द झलक उठा। कई तो किताब ले चुके हैं तो कई अभी भी किताबों के लिए रुपयों का इंतजाम करने में जुटे हैं। प्राइवेट नौकरी करने वाले अभिभावकों के समक्ष दिक्कत है कि उनकी पगार ज्यादा नहीं है। बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए अच्छे स्कूलों में दाखिला दिला दिया है। हर महीने 1000-1200 रुपये फीस तो दे देते हैं लेकिन अब कोर्स के लिए एक साथ रुपये कहां से लाएं। अभिभावकों ने कहा कि दो बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। किसी तरह से एक बच्चे का सैट खरीद लाए तो दूसरे बच्चे के सैट के लिए अब अगली पगार का इंतजार है। अभिभावकों का कहना था कि सरकार हर बार कहती है कि स्कूलों की यूनिफॉर्म एवं किताबों में मोनोपोली नहीं चलेगी, लेकिन यह दावे खोखले साबित होते है। कई अभिभावकों ने कहा कि फिरोजाबाद में तो अभिभावक संघ कई बार इस संबंध में शिकायती पत्र भी दे चुके हैं। लाखों अभिभावकों की समस्या पर जनप्रतिनिधि भी चुप स्कूलों में महंगे कोर्स की समस्या से लाखों परिवार जूझ रहे हैं लेकिन इसके बाद भी किसी भी जनप्रतिनिधि का भी ध्यान इस पर नहीं है, जबकि शहर की एक बड़ी आबादी महंगी किताबों का दर्द झेल रही है। इसके पीछे यह भी बताया जाता है कि कई प्राइवेट स्कूल संचालक सत्ताधारी दल से सीधे तौर पर जुड़े हैं तो कइयों के विपक्षी दलों से भी संबंध हैं। यही वजह है जनप्रतिनिधि भी इस पर चुप्पी साधे हुए हैं। राजनैतिक दलों को भी पता है कि एक-दो महीने अभिभावक परेशान रहेंगे तो इसके बाद में फिर से भूल जाएंगे। नए सत्र के प्रारंभ में ही फिर इन्हें फिर किताबों की महंगाई दिखाई देगी। पुस्तक विक्रेताओं की भी कराई जाए जांच, कर रहे राजस्व की चोरी अभिभावकों ने कई पुस्तक विक्रेताओं का नाम लेते हुए कहा कि कमीशन के खेल में पुस्तक विक्रेता शामिल हैं। अभिभावक कोटला रोड स्थित कई पुस्तक विक्रेताओं के नाम बताते हुए कहते हैं कि इनकी जांच होनी चाहिए। बगैर बिल के लाखों की किताबें बेचने वाले सरकार के राजस्व की भी चोरी कर रहे हैं। इन दुकानों पर पहुंच कर किताबों के बिल देखे जाएं। अभिभावक संघ भी इसकी जांच में सहयोग करने के लिए तैयार है। उनका कहना है कि अगर ईमानदारी से जांच की जाए तो शहर के कई बड़े पुस्तक विक्रेताओं में हरेक का टर्न ओवर 70 से 90 लाख रुपये बैठेगा, जबकि कागजों पर यह काफी कम टर्न ओवर दिखाते हैं। मन की बात प्राइवेट स्कूलों की किताबें काफी महंगी हैं। दुकानदार पहले से तय होते हैं, उन पर ही किताबें मिलती हैं। किताब एवं यूनिफॉर्म के नाम पर जमकर लूट हो रही है। कुछ भी कहो, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती है। जिला प्रशासन भी अभिभावकों के दर्द को नहीं समझ पा रहा है। -लोकेश कुमार हमारा बच्चा यूकेजी में पढ़ता है, उसकी कॉपी और किताबें भी हजारों रुपये की आ रही हैं। कोर्स महंगा होने के कारण अभी तक खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा सके हैं, एक दो दिन में रुपये का इंतजाम कर कोर्स लेंगे। प्रशासन इसे कैसे भी रोके। -विपिन पचौरी प्राइवेट स्कूलों में किताबों के नाम पर हो रही लूट किसी से छिपी नहीं है। कई बार शिकायत कर चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद भी अधिकारी कार्रवाई करने में रुचि नहीं दिखा रहा है। कमेटी में भी स्कूल संचालकों एवं उनके खास लोगों को शामिल किया गया है। -मोहित अग्रवाल साल-दर-साल किताबें महंगी होती जा रही हैं। बच्चों की कॉपी किताब इस बार काफी महंगी है। स्थिति यह हो गई है कि अप्रैल में बच्चों की कॉपी किताब के साथ में यूनिफॉर्म खरीदने के लिए रुपये उधार लेने पड़ते हैं। कम से कम कॉपी किताब सस्ती होनी चाहिए। -पुनीत जैन, अचार वाले हमारे बच्चा यूकेजी में है। हर महीने 1200 रुपये फीस जाती है। हर वर्ष फीस बढ़ा दी जाती है। सरकार घोषणाएं करती है, लेकिन स्थानीय स्तर पर अधिकारी इनका अनुपालन कराने पर ध्यान नहीं देता है। स्कूल संचालकों द्वारा यूनिफॉर्म के नाम पर लूट पर कोई अंकुश नहीं है। -सुमित सिंह स्कूल प्रशासनों पर पुलिस को शिकंजा कसना चाहिए। पांच वर्ष तक यूनिफॉर्म एवं कोर्स नहीं बदलना चाहिए, लेकिन यहां तो जब दिल चाहे यूनिफॉर्म एवं कोर्स बदल दिया जाता है। कम से कम सरकार के नियमों का पालन अधिकारियों को कराना चाहिए। -कुलदीप गुप्ता कई स्कूल तो अपनी ही दूसरी बिल्डिंग से किताबों की बिक्री कर रहे हैं। इनके द्वारा मनमानी कीमतें वसूली जाती हैं। इस पर पूरी तरह रोक लगनी चाहिए। जिला प्रशासन को इस पर ध्यान देते हुए कार्रवाई करनी चाहिए। इससे अभिभावकों को राहत मिलेगी। -एमएल अग्रवाल अन्य कई जिलों में सुनने में आया है कि प्रशासन ने स्कूलों की फीस तय करने के साथ में कोर्स की भी कीमत घोषित कर दी हैं, लेकिन जिले में किसी का ध्यान इस तरफ नहीं है। अभिभावकों द्वारा कई बार मांग उठाने पर एक बार भी जांच नहीं हुई है कि स्कूलों का कोर्स कितना महंगा है। -संजय मलिक

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