हीमोफीलिया से लड़ना आसान नहीं, फैक्टर-8 चढ़ाने का नहीं है जिले में इंतजाम
Kushinagar News - कुशीनगर में आज विश्व हीमोफीलिया दिवस मनाया जा रहा है। इस साल का विषय महिलाओं और लड़कियों के रक्तस्राव पर ध्यान केंद्रित करता है। हीमोफीलिया एक आनुवंशिक बीमारी है, जिसमें खून जमने की क्षमता कम होती है।...

कुशीनगर। आज विश्व हीमोफीलिया दिवस है। 17 अप्रैल को प्रति वर्ष मनाए जाने वाला यह दिवस इस बार सभी के लिए पहुंच: महिलाओं और लड़कियों को भी होता है रक्तस्राव, थीम के साथ मनाया जा रहा है। विश्व हीमोफीलिया दिवस उन लोगों की आवाज बनता है, जो खून बहने संबंधी दुर्लभ विकार से जूझ रहे हैं। इस दिवस विशेष का उद्देश्य है कि जानकारी फैलाना, मिथकों को तोड़ना और बेहतर इलाज तथा सहयोग की दिशा में एकजुट करना। यह एक ऐसी बीमारी है, जो मरीज के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। इससे पीड़ित मरीज को घाव हो जाने, चोट लग जाने या ऑपरेशन की जरूरत पड़ने पर खून का बहना रुकता ही नहीं है। इससे मरीज की जान पर बन आती है। वजह यह कि इस बीमारी की चपेट में आने वाले मरीज में प्लाज्मा में फैक्टर का बनना पूरी तरह से बंद हो जाता है। चिंताजनक बात यह है कि ऐसे मरीजों के लिए जरूरी फैक्टर-8 चढ़ाने का इंतजाम कुशीनगर जिले में कहीं भी नहीं है।
हीमोफीलिया आनुवंशिक बीमारी है। इसकी चपेट में आने वाले व्यक्ति के शरीर में खून जमने की शक्ति कम हो जाती है। यह बीमारी बच्चे के शरीर में उसकी मां के जरिए आती है। चोट अथवा अन्य कारणों से बच्चों के घुटने में सूजन हो जाता है, जो आगे चलकर हड्डियों को कमजोर कर देता है। बच्चों में ब्रेन हैमरेज और पेट में चोट के कारण भी ऐसी स्थिति आ सकती है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है तो बीमारी बढ़ती जाती है और जब चोट अथवा घाव के कारण रक्तस्राव होने लगता है तो वह रुकता नहीं है। चिकित्सकों की मानें तो इस बीमारी की कैरियर महिलाएं भले होती हैं, लेकिन इससे 99 प्रतिशत पुरुष भी प्रभावित होते हैं, जबकि एक प्रतिशत ही महिलाएं इसकी चपेट में आती हैं। मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. उपेंद्र चौधरी ने बताया कि हीमोफीलिया आनुवंशिक बीमारी है। इस रोग के कारण शरीर में फैक्टर-8 और फैक्टर-9 की कमी हो जाती है। ऐसी स्थिति में शरीर में खून जमने की शक्ति कम होती है। बच्चों के घुटने में सूजन की वजह से बोन के डैमेज होने का खतरा बना रहता है। यह बीमारी आनुवंशिक होने के कारण मां से उसके बच्चे में ट्रांसफर होती है। इस बीमारी की पहचान के लिए एपीटीटी नामक ब्लड सैंपल टेस्ट कराया जाता है। घाव या फिर कटने पर खून का बहना रुकता नहीं है। ऐसे में मरीज को प्लाज्मा चढ़ाया जाता है। डॉ. चौधरी ने बताया कि खून का बहना न रुकने पर मरीज को ट्रैक्सामिनिक एसिड का टैबलेट अथवा इंजेक्शन दिया जाता है। एबीपी नामक हारमोन भी दिया जाता है। यह फैक्टर-8 को बढ़ा देता है, जिससे रक्त का बहना रुक जाता है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कमलेश वर्मा ने बताया कि हीमोफीलिया जेनेटिक बीमारी है। खून को जमाने वाला फैक्टर-8 (प्लाज्मा) नहीं बन पाता है। इंग्लैंड का शाही परिवार कई पुश्तों से इस बीमारी की चपेट में है। इस बीमारी से ज्यादातर पुरुष ही प्रभावित होते हैं। ऐसे मरीजों के ऑपरेशन के दौरान खून बंद न होने पर जान जाने का डर भी बना रहता है। इस तरह के मरीजों को फ्लोटिंग फैक्टर देने की जरूरत पड़ जाती है। डॉ. कमलेश वर्मा की मानें तो बहुत करीबी अथवा एक ही गोत्र में विवाह नहीं करना चाहिए। इससे यह बीमारी फैलने का डर बना रहता है। बच्चों में फैक्टर-8 की कमी होने के कारण यह बीमारी होती है। यह आनुवंशिक बीमारी है। हल्का कट जाने पर ऐसे मरीज का खून बहना बंद नहीं होता है। इसमें मरीज को रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है।
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सरकारी आंकड़ों में नहीं हैं मरीज, निजी में पहुंचते हैं मासूम :
हीमोफीलिया के मरीज जिले के सरकारी आंकड़ों में नहीं हैं। ऐसे मरीज निजी अस्पतालों में पहुंचते हैं। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कमलेश वर्मा ने बताया कि उनके निजी अस्पताल में एक साल में तीन से चार बच्चे हीमोफीलिया से पीड़ित आते हैं। आवश्यक उपचार करने के बाद ऐसे बच्चों को गोरखपुर बीआरडी भेजा जाता है। वहां फैक्टर-8 चढ़ाने की व्यवस्था है। जिले में इस बीमारी से निपटने की कोई सुविधा नहीं है। फैक्टर-8 व फैक्टर-9 ही इस बीमारी के पीड़ित को चढ़ाया जाता है। अगर यहां भी उपचार की सुविधा होती तो मरीजों को उपचार में राहत मिलती।
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कुशीनगर में हीमोफीलिया के मरीजों के समुचित इलाज की व्यवस्था नहीं है। क्योंकि इसमें पूरा ब्लड नहीं चढ़ाया जाता। रक्त से फैक्टर-8 को अलग करके ही मरीज को चढ़ाया जाता है। इसकी सुविधा यहां नहीं है। जांच और इलाज की सुविधा भी महानगरों के बड़े अस्पतालों में है। इस बीमारी के प्रति जागरुकता के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाया जाता है।
-डॉ आरके शाही, प्राचार्य-स्वशासी मेडिकल कॉलेज-कुशीनगर
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