Public Proposal for 40-45 Reduction in Electricity Rates Amidst 30 Increase by Power Corporation कॉरपोरेशन के बढ़ोतरी प्रस्ताव के खिलाफ 45% कमी का जनता प्रस्ताव, Lucknow Hindi News - Hindustan
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कॉरपोरेशन के बढ़ोतरी प्रस्ताव के खिलाफ 45% कमी का जनता प्रस्ताव

Lucknow News - - विद्युत नियामक आयोग ने उपभोक्ता परिषद ने दाखिल किया प्रस्ताव - मांग : बिजली

Newswrap हिन्दुस्तान, लखनऊTue, 20 May 2025 08:52 PM
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कॉरपोरेशन के बढ़ोतरी प्रस्ताव के खिलाफ 45% कमी का जनता प्रस्ताव

लखनऊ, विशेष संवाददाता पावर कॉरपोरेशन द्वारा बिजली दरों में 30% बढ़ोतरी के खिलाफ मंगलवार को नियामक आयोग में बिजली दरों में 40-45% कटौती का जनता प्रस्ताव राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने दाखिल किया। पावर कॉरपोरेशन के वास्तविक आय-व्यय के आंकड़ों को भी उपभोक्ता परिषद ने चुनौती दी है। बिजली की नई दरें तय करने के लिए आयोग बिजली कंपनियों के दावों और जनता की आपत्तियों पर सुनवाई जून में शुरू कर सकता है। उपभोक्ता परिषद ने कॉरपोरेशन के संशोधित प्रस्ताव को खारिज करने की मांग उठाई है। परिषद ने कहा कि नोएडा पावर कंपनी पर भी उपभोक्ताओं का बकाया था, जिसकी वजह से तीन साल से 10% की कटौती हो रही है।

यह व्यवस्था बाकी बिजली कंपनियों पर क्यों नहीं लागू की गई? उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि जब 3 सितंबर 2019 को बिजली दरों का आदेश जारी किया गया था तब नियामक आयोग ने माना था कि बिजली कंपनियों पर वित्तीय वर्ष 2017-18 तक उपभोक्ताओं का 13,337 करोड़ रुपये बकाया है। आयोग के आदेश में यह भी कहा गया था कि जब तक इसकी अदायगी बिजली कंपनियां नहीं कर देतीं तब तक इस रकम पर कैरिंग कॉस्ट यानी ब्याज भी जुड़ेगा। 12% की ब्याज दर के हिसाब से यह रकम बीते वित्तीय वर्ष में 33,122 करोड़ रुपये पहुंच गई थी। इस वित्तीय वर्ष की सुनवाई करते वक्त यह रकम 35 हजार करोड़ रुपये के पार हो जाएगी। बकाया रकम के हिसाब से तत्काल कटौती का आदेश जारी किया जाए। बकाया कैसे हो गया घाटा? उपभोक्ता परिषद ने आयोग में दाखिल प्रस्ताव में यह भी कहा है कि कॉरपोरेशन बिजली उपभोक्ताओं पर बकाया राशि को घाटे में दर्ज किया है। पूरे देश में कहीं भी बकाया घाटे में नहीं जोड़ा जाता क्योंकि बिजली कंपनियां इस रकम की मय ब्याज वसूली करती हैं। प्रदेश के उपभोक्ताओं पर बिल के तौर पर बकाया 10 हजार करोड़ रुपये की वसूली की जिम्मेदारी पावर कॉरपोरेशन की है। अगर वह वसूल नहीं सकता है तो उसे प्रबंधन छोड़ देना चाहिए। बिजली बिल न देने वाले उपभोक्ताओं में से 54 लाख उपभोक्ताओं को सौभाग्य योजना में गुमराह करके मुफ्त कनेक्शन दिए गए। सब्सिडी सरकार की जिम्मेदारी उपभोक्ता परिषद ने कहा पावर कॉरपोरेशन का तर्क कि घाटा बढ़ रहा है और सरकार अब और मदद नहीं करेगी। यह उसकी भूल है। भाजपा के संकल्प पत्र में किसानों को मुफ्त बिजली और 100 यूनिट तक तीन रुपये प्रति यूनिट बिजली का ऐलान था। विद्युत अधिनियम-2003 की धारा 65 के तहत अगर कोई सरकार राजनीतिक लाभ लेने के लिए कोई घोषणा करती है तो उसे सब्सिडी के तौर पर सहायता देनी ही होगी। दावा मंजूर नहीं तो सार्वजनिक क्यों? उपभोक्ता परिषद ने कॉरपोरेशन द्वारा सोमवार को जारी आंकड़ों पर भी सवाल खड़े किए हैं। आयोग में लिखित आपत्ति दर्ज कराई है कि जब अभी तक कॉरपारेशन का संशोधित आंकड़ा आयोग ने स्वीकार नहीं किया है तो उसे सार्वजनिक क्यों किया गया? जो वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर) प्रस्ताव ने स्वीकार कर लिया है, उसे तो अब तक सार्वजनिक किया नहीं गया। ऐसा लग रहा है कि पावर कॉरपोरेशन ने आंकड़े परीक्षण और स्वीकारे जाने से पहले सार्वजनिक कर नियामक आयोग पर दबाव बनाने की कोशिश की है। बताई घाटे की असल वजहें भी उपभोक्ता परिषद ने आयोग में दाखिल प्रस्ताव में कॉरपोरेशन के घाटे के कुछ वजहें भी गिनाई हैं, जिनके लिए सीधे तौर पर प्रबंधन जिम्मेदार है। मसलन, स्मार्ट प्रीपेडमीटर की पूरी परियोजना के लिए केंद्र सरकार ने 18,885 करोड़ रुपये अनुमोदित किए थे जबकि बिजली कंपनियों ने ₹27,342 करोड़ रुपये के टेंडर किए। यह अतिरिक्त रकम की जवाबदेही उपभोक्ताओं की कैसे? कॉरपोरेशन में लेटरल एंटी से विभागीय अभियंताओं से ज्यादा वेतन पर भर्ती की गई। प्रदेश में 78,000 करोड़ रुपये की बिजली खरीद होती है, जिसमें से 54% फिक्स कॉस्ट है। महंगी बिजली खरीद की जिम्मेदारी कॉरपोरेशन की है। पिछले साल तो बिना बिजली खरीदे कंपनियों को 6 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का भुगतान किया गया।

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